Dainik Jagran Sanskarshala : खुद करेंगे शुरुआत, तभी बदलेगा समाज Aligarh News
दैनिक जागरण में संस्कारशाला में प्रकाशित कहानी जल ही जीवन है के बारे में विस्तार से बताया। दैनिक जीवन में जल के उपयोग के साथ उसकी बचत करने के तरीके बताए।
अलीगढ़ (जेएनएन)। शंकर विहार स्थित सर्वोदय पब्लिक स्कूल में कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें स्कूल के निदेशक एके पाल ने दैनिक जागरण में संस्कारशाला में प्रकाशित कहानी 'जल ही जीवन है' के बारे में विस्तार से बताया। दैनिक जीवन में जल के उपयोग के साथ उसकी बचत करने के तरीके बताए। समाज में अन्य लोगों को भी प्रेरित करने की शपथ दिलाई। कहा कि दैनिक जागरण ने संस्कारशाला कहानी के जरिए बच्चों को संस्कारों के प्रति जागरूक करने की सराहनीय पहल की है।
जल ही जीवन
स्कूल के खेल शिक्षक जितेंद्र कुमार ने अखबार में प्रकाशित 'जल ही जीवन है' लेख को पढ़कर बच्चों को सुनाया। विद्यार्थियों ने भी विषय से संबंधित तमाम प्रश्न पूछे जिनका जवाब प्रधानाचार्य पाजमीन सईद ने दिए। उन्होंने विद्यार्थियों से जल संरक्षण की अपील भी की।
पानी के प्रति सजग होना जरूरी
कहा कि स्कूल हो या घर आमतौर पर बच्चे कुछ ज्यादा पानी बरबाद करते हैं। इसके लिए अब सजग होना पड़ेगा। खुद से शुरुआत करेंगे तभी समाज को बदल पाएंगे।
ऐसे बचा सकते हैं पानी
- जल संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करें। बाल्टी या टब में पानी भरकर स्नान करें। दाढ़ी बनाते समय टोंटी बंद रखें। महिलाएं रसोई में बाल्टी या टब में बर्तन साफ करें तो जल की बहुत हानि रोकी जा सकती है।
- टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख देने से 'एक लीटर जलÓ बचा सकते हैैं।
- घरेलू प्रयोग में लाए जाने वाले सबमर्सिबल में ऑटोकट लगवाएं।
- घर में इस्तेमाल होने वाले पानी का इस्तेमाल पेड़-पौधों की सिंचाई में करें।
जल के बिना जीवन की कल्पना भी मुश्किल
नौरंगीलाल राजकीय इंटर कालेज के प्रधानाचार्य शीलेंद्र कुमार का कहना है कि जल है तो कल है। जल के बिना कल की कल्पना नहीं की जा सकती है। हमें जीवन में रोज जल की जरूरत होती है। फिर भी जल को बर्बाद किया जा रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल संकट का समाधान 'जल संरक्षणÓ से ही हो सकता है। पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों में जल महत्वपूर्ण है। जल पृथ्वी पर सभी सजीवों के जीने का आधार है।
97 प्रतिशत खारा पानी
धरती का तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है। इसमें 97 प्रतिशत खारा है और पीने के योग्य नहीं है। तीन प्रतिशत ही ऐसा पानी है, जिसे पिया जा सकता है। इसमें भी दो प्रतिशत ग्लेशियर व बर्फ के रूप में है। तेजी बढ़ रहे नगरीकरण, उद्योगिकीकरण, प्रदूषण के साथ जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए सभी के लिए पेयजल उपलब्धता बड़ी चुनौती है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण करने लगती है। कुछ साल पहले तक धरती में 80 से 100 फीट की गहराई पर आसानी से पेयजल मिल जाता था। आज 200 से 250 फीट पर मिल पाता है। गर्मी का मौसम आते-आते हैंडपंप व सबमर्सिबल पानी छोडऩे लगते हैं। प्रतिवर्ष यह समस्या बढ़ती जा रही है। लेकिन हम यही सोचते हैं कि गर्मी का सीजन निकल जाए, बारिश आते ही समस्या दूर हो जाएगी और जल संरक्षण के प्रति बेरुखी अपनाते हैं। नलकूल, सबमर्सिबल के जरिये पानी का अत्यधिक दोहन भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। जल संकट से उबरना है तो धरती की कोख को भरना होगा। धरती की कोख हरियाली व तालाब भरने से ही भरेगी। वरना पानी की समस्या और विकराल होती जाएगी। विश्व आर्थिक मंच संस्था की मानें तो दुनिया में 75 प्रतिशत से भी ज्यादा लोग पानी पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। 22 मार्च को 'विश्व जल दिवस' मात्र औपचारिकता का दिन नहीं है, बल्कि इस दिन को जल संरक्षण का संकल्प लेकर एक-दूसरे को जागरूक करना चाहिए। जहां लोगों को बड़ी मुश्किल से पीने को पानी मिल रहा है, वे ही इसका महत्व समझ रहे हैं। जिन्हें बिना किसी परेशानी के पानी मिल रहा है, वे बेपरवाह नजर आते हैैं। शहर में ऐसे की लोग फर्श चमकाने, गाड़ी धोने और गैरजरूरी कामों में पानी को बर्बाद कर रहे हैं। खुशी की बात है कि जिला प्रशासन पोखर-तालाबों को कब्जा मुक्त कराकर जल संरक्षण का प्रयास कर रहा है।