अतरौली की ओर दौड़ी साइकिल
अलीगढ़ की सातों सीटों पर जीत का दावा कर चुके भैयाजी की साइकिल इन दिनों अतरौली की ओर दौड रही है।
अलीगढ़: अलीगढ़ की सातों सीटों पर जीत का दावा कर चुके 'भैयाजी' की साइकिल इन दिनों अतरौली के चक्कर खूब लगा रही है। पिछले एक हफ्ते में प्रदेश स्तरीय जितने नेता यहां सभाएं कर आए, उतने अन्य विधानसभा क्षेत्रों में नहीं पहुंचे। पिछले ही दिनों बिजौली में सभा हुई थी। प्रकोष्ठों के प्रदेश अध्यक्षों ने इसमें शिरकत की। अब दादों में शक्ति प्रदर्शन हुआ। ये शक्ति प्रदर्शन किसके लिए किया जा रहा है? टिकट की कतार में तो कई खड़े हैं। यहां से सीट निकाल चुके नेताजी तो अड़े ही हैं, जिलाध्यक्ष और पूर्व जिलाध्यक्ष ने भी दावा ठोक दिया है। वहीं, कोचिग संचालक रास्ता तलाश रहे हैं। अब चेहरा चमकाने की होड़ लगी है। मार्केटिग में एक फार्मूला है, 'जो दिखता है, वो बिकता है'। यहां भी वही फार्मूला अपनाया जा रहा है। कुछ अन्य क्षेत्रों में दावेदारों ने चेहरा चमकाने के लिए इंटरनेट मीडिया को जरिया बना लिया है। कम हो रहीं दूरियां
इंजीनियर साहब ने जबसे शहर की बागडोर संभाली है, सबकुछ 'उथल-पुथल' हो गया है। मातहत नाराज, 'मुखिया' नाराज, 'कामगार' भी नाराज चल रहे हैं। कह रहे हैं कि इंजीनियर किसी की सुनते ही नहीं। जो मन में आया किए जा रहे हैं। सर्विस 'बिल्डिग' में भय का माहौल बना हुआ है। अक्सर शांत रहने वाले 'मुखिया' के विरोध के स्वर भी फूट रहे हैं। उनकी तमाम फाइलें धूल फांक रही हैं। इंजीनियर साहब परिस्थितियां भांप चुके हैं। परिवर्तन की शुरुआत 'कामगारों' से की है। अवकाश से लौटकर सबसे पहला काम इन्हीं को मनाने का किया। तमाम मांगे थीं इन 'कामगारों' की। कुछ पर समझौता हो गया है, बाकी पर भरोसा दिलाया है। इंजीनियर साहब के केबिन से निकले 'कामगारों' के चेहरे खिले हुए थे। साफ नजर आ रहा था कि दूरियां कम हो रही हैं। अब इंजीनियर साहब शहर के 'मुखिया' और मातहतों को मनाने की कोशिश में लगे हैं।
काम कर गई साहब की युक्ति
प्रशासनिक कौशल शायद इसी को कहते हैं, विवाद में पड़े बिना सामने वाले का काम भी हो जाए और व्यवस्था भी न बिगड़े। पिछले दिनों किसान संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया तो अफसरों की सांसें फूल गईं। 'लालकिला कांड' न दोहरा दिया जाए, इसकी आशंकाएं जोर मार रही थीं। 'राजधानी' समेत देशभर में चौकसी बढ़ा दी। यहां संगठनों ने मंडी को टार्गेट किया था। गेट बंद कर सरकार की खिलाफत करने लगे। अनाज लेकर आए तमाम किसान बाहर खड़े थे। डेढ़ घंटे बाद बड़े साहब पहुंचे। सोचा कि नेताओं ने भड़ास निकाल ली होगी तो समझा लें। मगर, सफल नहीं हुए। फिर धूप में खड़े किसानों को समझाया। फिर क्या था, किसान अंदर जाने की जिद पर अड़ गए। अब जिन किसानों के लिए 10 माह से आंदोलन चलाए हुए हैं, उन्हें नाराज कौन करे? मंडी का गेट खोल दिया। बड़े साहब के कौशल की जमकर तारीफ हुई।
इन किसानों का क्या कसूर
विद्युत महकमे की कार्यशैली पर यूं ही आरोप नहीं लगते, हरकत ही ऐसी होती हैं। अब महकमे में हुए 81 लाख रुपये के प्रकरण को ही देख लीजिए। किसानों से बिल का भुगतान तो करा लिया, लेकिन ये रकम महकमे के खाते में नहीं डाली गई। कुछ कर्मचारियों के नाम इस घोटाले में सामने आए तो मुकदमा दर्ज हो गया। एक को जेल भेज दिया। अब रकम की रिकवरी कैसे हो? कुछ न सूझा तो उन्हीं किसानों पर बकाया राशि निकाल कर कनेक्शन काट दिए, जो भुगतान कर चुके हैं। इनके पास रसीद भी है। उधर, अफसरों का कहना है कि सिस्टम हैक कर रसीदें दी गई थीं। अगर ऐसा भी हुआ है तो इसमें किसानों का क्या कसूर? ये तो बिल का भुगतान कर चुके हैं। विद्युत महकमे से हारे किसान अब प्रशासनिक अफसरों को पीड़ा बता रहे हैं। वहीं, काटे गए कनेक्शन जोड़ने की मांग की गई है।