कोरोना ने कमजोर कर दी परंपराओं की डोर, जानिए पूरा मामला Aligarh news
कोरोना काल में जीवन की तमाम परिभाषाएं बदल गई है। मगर दुखदायी है कि परंपराओं की डोर भी कमजोर होती जा रही है। परिवार में किसी की मौत हो जाने पर अपने ही लोग आगे नहीं आ रहे हैं।
अलीगढ़, जेएनएन । कोरोना काल में जीवन की तमाम परिभाषाएं बदल गई है। मगर, दुखदायी है कि परंपराओं की डोर भी कमजोर होती जा रही है। परिवार में किसी की मौत हो जाने पर अपने ही लोग आगे नहीं आ रहे हैं। यहां तक बेटा स्वयं अपने पिता के शव को कंधा नहीं देना चाहता है। वह अंतिम संस्कार तक को राजी नहीं होता। शहर के ही कई मुहल्लों में ऐसा हुआ कि लोग शव को हाथ लगाने को तैयार नहीं हुए। विगत दिनाें में ऐसे तमाम मामले आए हैं, जहां समाजसेवियों ने आगे आकर शवों का अंतिम संस्कार कराया। परिवार के सदस्य तो तेरहवी संस्कार तक को राजी नहीं हो रहे हैं।
अंतिम दर्शन को भी नहीं आए बेटे
बन्ना देवी क्षेत्र में 10 दिन पहले एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। उनके तीन बेटे थे। सभी अच्छी नौकरीपेशा वाले थे। पिता की मौत की सूचना पर बेटे पहुंच गए। मगर वो सभी शव से 200 मीटर की दूरी पर ही खड़े रहे। तमाम लोगों ने उनसे कहा, मगर वो अंतिम दर्शन को भी नहीं आए। अंत में पड़ोसियों ने शव को ले जाकर अंतिम संस्कार किया। सासनीगेट क्षेत्र में भी एक हफ्ते पहले एक बुजुर्ग की माैत हो गई। उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव थी। मगर, बेटे ने शव का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। वो घर से बाहर ही नहीं निकल रहा था। पड़ोसियों ने उसे समझा-बुझाकर किसी तरह से राजी किया।
गलत पड़ रही है परंपरा
अभी कुछ दिन पहले एक व्यक्ति की मृत्यु पर उनके पुत्र ने अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था। फिर मैने अपने पति को कंधा देने के लिए तैयार किया। पड़ोसियों ने मिलकर अंतिम संस्कार किया। कोरोना के भय के कारण समाज में लोग अपनों से ही दूरियां बनाएं लगे हैं। परंपराओं का भी ख्याल नहीं रख रहे हैं जो गलत है।
गौरी पाठक, समाजसेवी
लोग परंपराओं का निर्वहन तक नहीं कर रहे हैं। त्रयोदशी संस्कार भी नहीं करना चाह रहे हैं। सिर्फ दो दिन में ही हवन-पूजन कराकर कार्य संपन्न कर रहे हैं। यह गलत परंपरा है। क्योंकि हमारे समाज में हर एक चीज का विधान है। संकट के समय में भी परंपराओं का निर्वहन लोगों ने किया है।
कुसुम शर्मा, गृहणी