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घर लौटे Corona योद्धा, परिवार का साथ पाकर हुए खुश, अब ऐसे बिता रहे समय Aligarh News

कोरोना से लड़ते हुए एक साल से ज्यादा वक्त बीत गया। इस जंग में हमारे डाक्टर नर्स फार्मासिस्ट वार्ड ब्वाय स्वीपर आदि योद्धा? बनकर लड़े। महिला कर्मियों ने बच्चों को घर पर छोड़ दिया। कोविड अस्पताल ही जैसे घर हो गया और मरीज परिवार।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Sat, 05 Jun 2021 11:10 AM (IST)Updated: Sat, 05 Jun 2021 11:10 AM (IST)
घर लौटे Corona योद्धा, परिवार का साथ पाकर हुए खुश, अब ऐसे बिता रहे समय Aligarh News
कोरोना से जंग में हमारे डाक्टर, नर्स, फार्मासिस्ट, वार्ड ब्वाय, स्वीपर आदि योद्धा? बनकर लड़े।

अलीगढ़, जेएनएन।  कोरोना से लड़ते हुए एक साल से ज्यादा वक्त बीत गया। इस जंग में हमारे डाक्टर, नर्स, फार्मासिस्ट, वार्ड ब्वाय, स्वीपर आदि योद्धा? बनकर लड़े। महिला कर्मियों ने बच्चों को घर पर छोड़ दिया। कोविड अस्पताल ही जैसे घर हो गया और मरीज परिवार। कई बार मन में बुरे ख्याल भी आए, क्योंकि लड़ाई लंबी खिंचती गई और खतरा भी बढ़ गया। फिर भी, ये कोरोना योद्धा? सेवा और फर्ज की राह पर अडिग रहे। अब जबकि, कोरोना की दूसरी लहर खत्म होने के कगार पर है। ज्यादातर स्टाफ की कोविड ड्यूटी खत्म हो चुकी है तो सभी अपने परिवार के पास लौटने लगे हैं। चुनौतियों से भरे दिन भुलाकर परिवार के साथ भरपूर समय गुजार रहे हैं। कोई बच्चों को पढ़ा रहा है तो कोई दोस्त बनकर खेल रहा है। ड्राइंग रूम में खूब गपशप हो रही है, साथ में सैर-सपाटा भी। और क्या-क्या कर रहे हैं हमारे कोरोना योद्धा? यह जानने के लिए जागरण टीम शुक्रवार को उनके घर पहुंची। पेश है एक रिपोर्ट...

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सुबह-शाम वाक, डाइनिंग रूम में हो रही गपशप

पं. दीनदयाल अस्पताल के कार्डियोलाजिस्ट डा. एसके सिंघल इन दिनों अपने परिवार के साथ काफी खुश हैं। दरअसल, पिछले दिनों ही संक्रमण कम होने के कारण कोविड ड्यूटी खत्म करके घर लौटे हैं तो खुशी ज्यादा ही है। रमेश विहार में परिवार संग रहते हैं। पत्नी रेणु सिंघल डीएस कालेज में प्रवक्ता हैं। बेटे ने एएमयू से एमबीबीएस किया है। डा. सिंघल के अनुसार कोविड में ड्यूटी  की वजह से वह परिवार के साथ नहीं बैठ पाए। हमेशा यही चिंता रहती थी कि मेरी वजह से परिवार मुसीबत में न आ जाए। नान कोविड ड्यूटी के दौरान भी लंबा समय आइसोलेशन में गुजारना पड़ा। मरीजों की सेवा करते हुए खुद भी संक्रमित हो गए। जबकि, दोनों टीके भी लगवाए थे। वायरस की घातकता को देखते हुए परिवार चिंतित था, मगर लोगों की दुआएं और वैक्सीन काम आई। कोविड ड्यूटी के बाद अब दिनचर्या सामान्य हुई है। सुबह छह-सात बजे पत्नी और बेटे के साथ अस्पताल कालोनी में ही वाक करते हैं। लौटकर नित्य कार्य से निवृत्त होकर साथ में नाश्ता होता है। गपशप के बीच समसामयिक मुद्दों पर चर्चा होती है। डा. सिंघल आठ बजे ओपीडी करने चले जाते हैं। पत्नी भी 10 बजे कालेज के लि्ए निकल जाती हैं। बेटा पीजी की तैयारी में जुट जाता है। दोपहर बाद दोनों घर लौटते हैं। खाने के टेबल पर फिर सभी साथ होते हैं। थोड़ा आराम करने के बाद शाम को संयुक्त रूप से टीवी देखते हैं। कुछ इधर-उधर की बातें होती हैं। डिनर के बाद वाक के लिए फिर कालोनी में निकल जाते हैं। डा. सिंघल के अनुसार अप्रैल-मई का बहुत भयानक दौर था, पता नहीं था क्या होगा? जो मरीज हमारे हाथ से ठीक हुए, शायद उनकी दुआ से परिवार फिर से एक साथ है और खुश है। नाते-रिश्तेदारी में भी बात कर लेते हैं।

अब टीचर बन गए डाक्टर साहब

प्रवासी मजदूरी की टेस्टिंग, क्वारंटाइन सेंटर, कंट्रोल रूम और अब दीनदयाल अस्पताल में आरटीपीसीआर टेस्टिंग के नोडल अधिकारी डा. केसी भारद्वाज कहते हैं कि कोविड में ज्यादातर चिकित्सक आइसोलेशन में रहे, उनमें से मै भी एक हूं। परिवार से मिलने वाला भावनात्मक सहारा भी छूट गया था। हमें बीमारी से ही नहीं लड़ना पड़ा, उन विचारों से भी लड़ना था, जो डर से पैदा हो रहे थे। परिवार भी गुस्से में था। बच्चों से दूर हो गए। बुजुर्ग मां का फोन तक पर हालचाल नहीं ले पा रहा था। पत्नी ने तो नौकरी तक छोड़ने की बात कर दी? सभी को समझाया कि कोई तो मेरी जगह ड्यूटी करेगा, वह भी किसी का भाई-बेटा, पिता होगा। ड्यूटी शुरू करने के कुछ समय बाद ही पूरा परिवार संक्रमित हो गया। ठीक हुआ तो मैंने हास्पिटल में ठिकाना बना लिया। अब काम का बोझ कम हुआ है तो परिवार के साथ समय बिताने का फिर से मौका मिलने लगा है। घर का माहौल फिर से अच्छा हो गया है। नौ वर्षीय ओजस चौथी कक्षा व बेटी दिव्यांका नौवीं कक्षा में पढ़ती हैं। जब भी समय मिलता है, उन्हें पढ़ाता हूं। इस बीच हंसी-मजाक भी होती हैं। यूं कहें कि यह मस्ती की पाठशाला भी होती है, जो कोराना संकट काल में खत्म हो गई है। सुबह नाश्ते पर पत्नी व बच्चे साथ होते हैं। सुबह घर से निकलने से पहले मां के पास जाकर हालचाल जरूर पूछ लेता हूं। सभी लोग खुश हैं। खासतौर से बच्चे की खुशी का ठिकाना नहीं।

बच्चों को प्यार-दुलार में बीत रहे फुर्सत के पल

दीनदयाल अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. रश्मि चौधरी को कोविड ड्यूटी करते हुए एक साल से ज्यादा समय बीत गया है। पति डा. अमित सिंह आई सर्जन हैं। साढ़े तीन साल व नौ साल के दो बेटे हैं। डा. रश्मि ने लंबे समय तक बच्चों को छोड़कर पहले होटल में रहना पड़ा। एक-एक माह तक बच्चों से नहीं मिल पाई। इसके बाद घर होम आइसोलेशन। बच्चे देखते ही मेरी तरफ दौड़ते, लेकिन मुझे पीछे हटना पड़ता था। मेरा लाडला दूध तक से वंचित हो गया। काफी डरावना माहौल था। बच्चों के पास आने से भी डर लगता था कि उन्हें संक्रमण न हो जाए। हालांकि, अभी भी कोविड ड्यूटी है, मगर मरीज उतने नही


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