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प्रदूषण का बोझ उठाती रही गंगा में लौटने लगी सांसें, 11 व 12 को होगी डाल्फिन की गणना

अलीगढ़ जागरण संवाददाता। प्रभागीय निदेशक (वन एवं पर्यावरण) दिवाकर कुमार वशिष्ठ ने बताया कि पूर्व में कूड़ा-कचरा व फैक्ट्रियों का अपशिष्ट बहाने से गंगा में घुलनशील आक्सीजन की मात्रा कम हो गई। इससे जलीय जीव विलुप्त होते चले गए।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Mon, 06 Dec 2021 10:03 AM (IST)Updated: Mon, 06 Dec 2021 10:06 AM (IST)
प्रदूषण का बोझ उठाती रही गंगा में लौटने लगी सांसें, 11 व 12 को होगी डाल्फिन की गणना
प्रदूषण का बोझ उठाती रही गंगा नदी में फिर से सांस लौटने लगी है।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता।  प्रदूषण का बोझ उठाती रही गंगा नदी में फिर से सांस लौटने लगी है। जलीय जीवों की उपस्थिति के संकेत मिलने के बाद सरकार ने गंगा में डाल्फिन की गणना शुरू करा दी है। बिजनौर बैराज से कानपुर व बलिया से कानपुर तक डाल्फिन की तलाश में विशेषज्ञों की टीम गंगा में स्टीमर लेकर उतर चुकी हैं। यह मुहिम चार दिसंबर से 21 दिसंबर तक प्रदेश के करीब 17 जनपदों में पहुंचकर गंगा में डाल्फिन की गणना करेगी। 11 व 12 दिसंबर को अलीगढ़ के सांकरा स्थित गंगा में सर्वे की योजना बनाई गई है।

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विलुप्‍त हो रहे जलीय जीव

प्रभागीय निदेशक (वन एवं पर्यावरण) दिवाकर कुमार वशिष्ठ ने बताया कि पूर्व में कूड़ा-कचरा व फैक्ट्रियों का अपशिष्ट बहाने से गंगा में घुलनशील आक्सीजन की मात्रा कम हो गई। इससे जलीय जीव विलुप्त होते चले गए। कछुए तक नहीं प्रधानमंत्री की नमामि गंगे जैसी योजना के फलस्वरूप गंगा का पानी साफ हुआ है। इसमें मगरमच्छ व कछुए ही नहीं, डाल्फिन जैसे जलीय जीवों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई है। बिजनौर, बुलंदशहर, कासगंज समेत करीब 17 जनपदों से गुजर रही गंगा नदी में डाल्फिन के कई पाकेट एरिया पहले से ही चिह्नित हैं। लिहाजा, सरकार ने स्पेशल प्रोजेक्ट के तहत डाल्फिन की गणना शुरू करा दी है। यह मुहिम चार दिसंबर को बिजनौर बैराज से शुरू हो चुकी है। प्रोजेक्ट में वन विभाग व वाइल्ड लाइफ इस्टीट्यूट आफ इंडिया के विशेषज्ञ, अधिकारी व अन्य अनुभवी कर्मचारी शामिल किए गए हैं।

यहां हो रही गणना

प्रदेश में बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, हापुड़, संभल, बुलंदशहर, अलीगढ़, कासगंज, बदायूं, फर्रूखाबाद, उन्नाव, कन्नौज, कानपुर नगर, फतेहपुर, रायबरेली, प्रयागराज, कौशांबी जनपद से गंगा गुजरती है। अलीगढ़ की बात करें तो यहां सांकरा क्षेत्र का ही एरिया आता है। जबकि, कासगंज की 75 किलोमीटर की सीमा से गंगा बहती है। सर्वे के दौरान बिजनौर व मेरठ से डाल्फिन को लेकर अच्छी सूचनाएं मिल रही हैं।

डाल्फिन का संरक्षण

प्रभागीय निदेशक ने बताया कि डाल्फिन का गणना के बाद इनके संरक्षण की दिशा में प्रयास होगा। इसके लिए गंगा नदी के किनारे बसे गांवों के लोगों जागरूक किया जाएगा। उन्होंने डाल्फिन की महत्ता बताते हुए मछुआरों से बचाने के लिए प्रेरित किया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा ब्रीडिंग की संभावना हो। इससे कुछ सालों में ही डाल्फिन आसानी से गंगा में दिखाई देने लगेगी।


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