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अभी नहीं चेती भाजपा तो 2022 की राह होगी मुश्किल Aligarh News

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को भाजपा 2022 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल मान रही थी। इसके लिए एक साल से तैयारियों में जुटी हुई थी। पहली बार प्रदेश कार्यालय से जिला पंचायत सदस्यों की सूची जारी की गई थी।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Fri, 07 May 2021 11:38 AM (IST)Updated: Fri, 07 May 2021 11:38 AM (IST)
अभी नहीं चेती भाजपा तो 2022 की राह होगी मुश्किल Aligarh News
पहली बार प्रदेश कार्यालय से जिला पंचायत सदस्यों की सूची जारी की गई थी।

अलीगढ़, जेएनएन। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को भाजपा 2022 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल मान रही थी। इसके लिए एक साल से तैयारियों में जुटी हुई थी। पहली बार प्रदेश कार्यालय से जिला पंचायत सदस्यों की सूची जारी की गई थी। सभी 47 सीटों पर प्रत्याशी उतारकर पार्टी ने यह साबित कर दिया था कि चुनाव पूरे दमखम के साथ लड़ेगी। मगर, चुनाव में करारी शिकस्त मिलने से भाजपाइयों के होश उड़े हुए हैं। भाजपा को मात्र नौ सीटें मिलीं हैं। यह तब है जब मेयर को छोड़कर जिले के सभी जनप्रतिनिधि भाजपा के हैं। यदि भाजपा अभी नहीं चेती तो 2022 की राह मुश्किल हो जाएगी।

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2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इतिहास रचने का काम किया था। जिले की सातों विधानसभा सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया था। ऐसा करिश्मा भाजपा रामलहर में भी नहीं कर पाई थी। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। इसके बाद भाजपा ने सहकारी समितियों के चुनाव पर अपना दबदबा जमा लिया, जिसपर बसपा और सपा का कब्जा हुआ करता था। एमएलसी स्नातक सीट जीतकर एक बार फिर इतिहास रच दिया। आजादी के बाद पहली बार भाजपा एमएलसी स्नातक की सीट जीत पाई थी।

भारी लाव-लश्कर भी नहीं कर सका कुछ

वर्तमान में भाजपा जितनी सशक्त और संपन्न है शायद उतनी कभी हो। जिले से तीन सांसद हैं। राजवीर सिंह राजू भैया एटा से सांसद, सांसद सतीश कुमार गौतम अलीगढ़ और राजवीर दिलेर हाथरस सांसद हैं। विधानसभा की सातों सीटों पर भाजपा का कब्जा है। अतरौली विधायक संदीप सिंह सूबे में वित्त राज्यमंत्री हैं। श्रम एवं सन्निर्माण परामर्शदात्री के अध्यक्ष ( राज्यमंत्री ) ठा. रघुराज सिंह जिले से हैं। दो एमएलसी भी हैं। पूर्व मंत्री और एमएलसी ठा. जयवीर सिंह व स्नातक एमएलसी डा. मानवेंद्र प्रताप सिंह हैं। अन्य पदों पर भी आसानी हैं। ऐसे में जनप्रतिनिधियों ने एक-एक सीट की भी जिम्मेदारी ले लेते तो भाजपा 13 सीटें वैसे ही जीत जाती। जिलाध्यक्ष और वरिष्ठ पदाधिकारी जुट जाते तो 20 का आंकड़ा बड़े आराम से पार कर जाते।

निर्दलीय की तरह लड़े प्रत्याशी

हार के बाद भाजपा प्रत्याशियों का गुस्सा फूट पड़ा है। तमाम प्रत्याशी हैं जो जिला संगठन और जनप्रतिनिधियों पर मदद न करने का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि कुछ सीटों को वीआईपी मानकर ध्यान दिया गया, बाकी सीटें प्रत्याशियों के भरोसे छोड़ दी गईं। प्रत्येक जनप्रनिधि को स्टार प्रचारक बनाकर घर-घर प्रचार करने के आदेश दिए गए थे, मगर वो कुछ जगहों पर ही गए। स्थिति यह हुई कि भाजपा समर्थित प्रत्याशी निर्दलीय होकर जूझता रहा। उसने अपने संसाधनों से कार्यकर्ताओं को एकत्र किया।

आगे की राह होगी कठिन

जिस प्रकार से विधानसभा के सेफीफाइनल की तस्वीर सामने आई है, उससे फाइनल की जमीन दरकती हुई नजर आ रही है। कार्यकर्ता भी मुखर होने लगे हैं। उनका आरोप है कि संगठन में उनके कोई काम नहीं होते हैं। अधिकारी सुनते नहीं और जनप्रतिनिधि उनकी पैरवी नहीं करते हैं। ऐसे में कब तक वह समर्पण भावना के साथ कार्य करेंगे।

संगठन ने पूरा सहयोग किया है। प्रत्येक वार्ड में पदाधिकारी गए और उन्होंने दमदारी से चुनाव लड़ाया है। यह कहना बिल्कुल गलत है कि संगठन और जनप्रतिनिधियों ने साथ नहीं दिया।

चौधरी ऋषिपाल सिंह, जिलाध्यक्ष


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