कम लागत में अधिक आय का जरिया बन किसानों के जीवन में 'मिठास' घोल रहा मधुमक्खी पालन
लघु किसानों एवं युवाओं के लिए मधुमक्खी पालन एक बेहतर स्वरोजगार के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि इसे कम लागत लगाकर और कृषि के साथ ही शुरू किया जा सकता है। क्षेत्र में कई किसान अतिरिक्त आय के लिए मधुमक्खी पालन कर रहे हैं।
श्याम सुंदर बालाजी, चंडौस / अलीगढ़। लघु किसानों एवं युवाओं के लिए मधुमक्खी पालन एक बेहतर स्वरोजगार के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि, इसे कम लागत लगाकर और कृषि के साथ ही शुरू किया जा सकता है। क्षेत्र में कई किसान अतिरिक्त आय के लिए मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। इन दिनों शहद और इसके उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण मधुमक्खी पालन एक लाभदायक और आकर्षक व्यवसाय बनता जा रहा है। यह किसानों की अतिरिक्त आय के साथ ही फसलों की उत्पादकता बढाने में भी लाभकारी सिद्ध हो रहा है।
चार साल पहले उत्तराखंड के कोटद्वार में ली ट्रेनिंग
गांव सिद्ध नगर के निकट मधुमक्खी पालन कर रहे किसान देवेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने चार वर्ष पहले उत्तराखंड के कोटद्वार से मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली थी। जिसके बाद करीब 20 बाक्स में मधुमक्खी पालन का रोजगार शुरू किया। जिसमें काफी लाभ हुआ। अब वह करीब 184 बाक्स में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। वह बताते हैं कि अगर कोई किसान मधुमक्खी पालन करना चाहता है तो वह 100 बाक्स लेकर अच्छे स्तर पर यह काम शुरू कर सकता है। इसके प्रति बाक्स में करीब 3500 रुपये खर्च आता है। अप्रैल से नवंबर तक मक्खियों की विशेष देखभाल की जरूरत होती है। जिसके बाद प्रति चार महीने में एक बाक्स से 30 से 40 किलोग्राम शहद प्राप्त होता है। अगर 30 किलो प्रति बाक्स भी शहद मिले तो इस स्तर पर कार्य करने से प्राप्त कुल शहद तीन हजार किलोग्राम होगा। जिससे मधुमक्खी पालन करने वाले किसान को लाखों का मुनाफा होता है।
खेती के साथ मधुमक्खी पालन कर किसान बढ़ा सकते हैं आय
वहीं नेशनल बी बोर्ड के विशेषज्ञ सूरज प्रताप सिंह ने बताया कि किसान खेती के साथ साथ मधुमक्खी पालन को अपनी आय का साधन बना सकते हैं। जिससे शहद के साथ फल तथा सब्जियों, दालों के उत्पादन में कीट परागण से किसानों को 35 प्रतिशत ज्यादा उत्पादन प्राप्त होगा। मधुमक्खी पालन देश में एक बड़े स्वरोजगार के रूप में उभरा है। सरकार ने इसे बढ़ावा देने के लिए कई व्यवस्थाएं की हैं। जिसमें ऋण व्यवस्था प्रमुख है। इस व्यवसाय के लिए दो से पांच लाख रुपये तक का लोन दिया जाता है। चूंकि यह उद्योग लघु उद्योग श्रेणी के अंतर्गत आता है, इसलिए सरकार का इस पर और ज्यादा ध्यान है।