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अलीगढ़ में किसानों की तकदीर बदलेगा बासमती, पैदावार बढ़ाने को अपनाई खास तकनीक Aligarh News

धान पर निर्भर किसान इस बार रोग रहित फसल कर सकेंगे। बासमती धान की नई किस्म जनपद के किसानों के लिए वरदान साबित होंगी। कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि बासमती की पूसा 1718 व पूसा 1728 प्रजाति का उत्पादन सामान्य धान से कहीं अधिक है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Fri, 21 May 2021 07:26 AM (IST)Updated: Fri, 21 May 2021 07:26 AM (IST)
अलीगढ़ में किसानों की तकदीर बदलेगा बासमती, पैदावार बढ़ाने को अपनाई खास तकनीक Aligarh News
धान की ये प्रजाति 20 फीसद कम पानी की बचत करती हैं।

अलीगढ़, लोकेश शर्मा। धान पर निर्भर किसान इस बार रोग रहित फसल कर सकेंगे। बासमती धान की नई किस्म जनपद के किसानों के लिए वरदान साबित होंगी। कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि बासमती की पूसा 1718 व पूसा 1728 प्रजाति का उत्पादन सामान्य धान से कहीं अधिक है। इसमें रोग नहीं लगता, लागत भी कम आती है। इन प्रजातियों के चावल का निर्यात भी अधिक होता है। दोनाें ही प्रजातियां इस सीजन में किसानों को उपलब्ध होंगी। 

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रोग, कीट का असर नहीं होगा

जनपद में धान का रकबा 95,500 हेक्टेयर हैं। 85 हजार हेक्टेयर में सिर्फ बासमती होता है। यहां बासमती की 1509, 1121, पी-10 प्रजाति अधिक प्रचलित हैं। अब किसानों काे धान की पूसा 1718 व पूसा 1728 प्रजाति भी उपलब्ध होगी। धान की ये प्रजाति 20 फीसद कम पानी की बचत करती हैं। खास बात ये कि इसमें रोग, कीट का असर नहीं होगा। कृषि विज्ञान केंद्र प्रभारी व प्रभारी फसलाेत्पादन डा. अतहर हुसैन वारसी बताते हैं कि धान की 38 प्रजातियां हैं। अधिक पैदावार देने वाली प्रजातियां पूसा बासमती 1509, बल्लभ बासमती 23 व 24, पी- 10 हैं। लेकिन, इनमें रोग, कीट लगने का खतरा रहता है। अलीगढ़ में बकानी रोग धान में अधिक लगता है। जबकि, धान की नई प्रजातियां कीटनाशक का उपयोग कम करेंगी। इनमें जलवायु परिवर्तन को भी झेलने की क्षमता है। उत्पादन भी 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर से अधिक है। जबकि, सामान्य प्रजातियाें का उत्पादन 40-42 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। 

ऐसे तैयार करें नर्सरी

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि जून के दूसरे हफ्ते में नर्सरी तैयार करनी चाहिए। बोआई से पहले बीज का शुद्धिकरण होना जरूरी है। इसके लिए 10 लीटर पानी में एक किलाे सादा नमक डालकर बीज को धीरे-धीरे इसमें छोड़ें। इससे हल्के बीज पानी की ऊपरी सतह पर तैरने लगेंगे। इन्हें निकाल कर फेंक दें। बाकी बीजों को साफ पानी में तीन बार धाेएं। बीज उपचार के लिए 20 ग्राम कार्बेंडजिम और एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन को पानी में घोलकर 10 किलो बीज भीगो दें। फिर इन्हें 10 से 24 घंटे छाया में रखें। बीज उपचार के बाद बीजों को जूट के बैग या ढेर बनाकर छाया में 24 घंटे अंकुरित होने के लिए रखें। बीज काे सड़न से बचाने के लिए नमी अवश्य बनाए रखें, इससे एक समान अंकुरण होगा। एक किलाे बीज की बोअाई के लिए 25 वर्गमीटर क्षेत्र आवश्यक है। 25 वर्गमीटर में 500 ग्राम यूरिया, 1.25 किलो सिंगल सुपर फास्फेट या 500 ग्राम डीएपी का प्रयोग करें। अंकुरित बीज की शाम के समय एक समान छिटक कर बोआई करनी चाहिए। बीज छिटकते समय नर्सरी में 2-3 सेंटीमीटर पानी भरा होना चाहिए। रोपाई के लिए 20-25 दिन के पौधे का ही प्रयोग करें।


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