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अलीगढ़ पुलिस की पहले ही मदद ले लेती बदायूं पुलिस तो बेहतर होता, जानिए पूरा मामला

बदायूं में हैवानियत की आवाज ने सबकी नींद उड़ा दी। बदायूं पुलिस आरोपित महंत की तलाश में थी लेकिन चतुराई ने गच्चा दिला दिया। अलीगढ़ में महंत की भांजी के होने की जानकारी पर बिना बताए बदायूं पुलिस दौड़ी चली आई।

By Sandeep kumar SaxenaEdited By: Published: Sat, 09 Jan 2021 09:47 AM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2021 09:47 AM (IST)
अलीगढ़ पुलिस की पहले ही मदद ले लेती बदायूं पुलिस तो बेहतर होता, जानिए पूरा मामला
बदायूं में हैवानियत की आवाज ने सबकी नींद उड़ा दी।

अलीगढ़, जेएनएन। हाथरस कांड का शोर थमा नहीं था कि बदायूं में हैवानियत की आवाज ने सबकी नींद उड़ा दी। बदायूं पुलिस आरोपित महंत की तलाश में थी, लेकिन चतुराई ने गच्चा दिला दिया। अलीगढ़ में महंत की भांजी के होने की जानकारी पर बिना बताए बदायूं पुलिस दौड़ी चली आई। मडराक क्षेत्र में अपनी खिचड़ी अलग पकाने लगी, लेकिन कुछ होता तो मिलता। संयोगवश एक साधु इगलास में मिला तो सबकुछ छोड़कर वहां पहुंच गई। साधु आरोपित नहीं निकला, जिसके बाद टीम लौटकर मडराक आई तो बचा-कुचा सुराग भी हाथ से फिसल गया। गांव में निवर्तमान प्रधान व विपक्षी गुट महंत के आने को लेकर अलग-अलग बातें कर रहे थे। खैर, महंत की गिरफ्तारी के बाद यह तय है कि वह अलीगढ़ नहीं आया था। ऐसे में बेहतर होता कि अलीगढ़ पुलिस की पहले ही मदद ले ली जाती तो शायद समय व्यर्थ न जाता और अतिरिक्त कसरत न करनी पड़ती।

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फेरबदल अच्छा है...

अच्छी पुलिसिंग की रीति है कि बदलाव होता रहे। कप्तान ने बीते साल में सभी थानों में प्रभारी बदल दिए। जिन्होंने लापरवाही की, उन पर कार्रवाई की गई। साल की शुरुआत में 175 सिपाहियों को इधर से उधर करने से निचले स्तर पर सुधार आएगा। ऐसे में बड़े स्तर पर हेरफेर होना जरूरी था। क्षेत्राधिकारियों के तबादले इसी का हिस्सा हैं। अतरौली क्षेत्र में बीते दो-तीन प्रकरण में पुलिस ने अच्छा काम किया तो क्षेत्राधिकारी को इस बार शहर के महत्वपूर्ण सर्किल की जिम्मेदारी मिल गई। इगलास में चल रही सुस्त चाल को रफ्तार देने के लिए तेजतर्रार क्षेत्राधिकारी की तैनाती की। उन्हें पहले गभाना का कार्यभार मिला था, लेकिन यहां राजनीति हावी होने के चलते ऐन मौके पर बदलाव किया गया। बरला क्षेत्र की कमान पहले से बेहतर हाथों से मानी जा सकती है। बहरहाल, अब पूरे जिले में बदलाव हो चुका है तो परिणाम निश्चित ही बेहतर आएंगे। 

खुफिया हैं, इनसे कुछ न पूछिए 

टेरर फंडिंग में एटीएस की छापेमारी के बाद जो चर्चाएं हो रही हैं, वो पहली दफा नहीं हैं। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की आग ने कई महीनों शहर को सुलगाए रखा था, तब भी खुफिया तंत्र कुछ भी भांपने में असफल रहा था। भीड़ एकत्रित हो जाती और किसी को कानों-कान खबर न होती। साल के जाते-जाते प्रतिबंधित संगठन सिमी के सदस्य की अलीगढ़ से गिरफ्तारी ने ठीकरा मढ़ दिया। सालों से देशद्रोह का आरोपित रह रहा था और खुफिया तंत्र को पता नहीं। अब टेरर  फंडिंग  में एक युवक को हिरासत में लिया गया है, जो 22 साल से यहां था। इस बार भी हमारा तंत्र कार्रवाई के बाद जागा। एटीएस के छापे के बाद इलाके में टीम घूमने लगी हैं। खुफिया इसलिए खुफिया है, चूंकि वो थाना पुलिस से अलग है। बड़ी कार्रवाई होगी तो सवाल उठेंगे। समय के साथ तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। 

दबा रह गया खुदकुशी का राज

क्वार्सी थाना क्षेत्र से गायब युवती की जांच अंधेरी गली में सुई ढूंढने जैसी है। जिस युवक पर शक था, वो सारे राज दबाए चला गया और तमाम सवाल पीछे छोड़ गया। एक युवती बिना बताए गायब हुई। दिल्ली में युवक के पास पहुंची। अगले दिन युवक उसे अलीगढ़ छोड़ गया। यहां मंदिर में पांच दिन रही। पुजारिन को बताया कि जल्द उसका पति आकर ले जाएगा। युवती की मां ने युवक से बात की तो तकरीबन सब ठीक था। मां ने युवक पर शक जताया तो पुलिस ने उसे बयान देने के लिए अलीगढ़ बुलाया। फिर अचानक युवक ने खुदकुशी क्यों कर ली? युवती मंदिर से कहां गायब हो गई? कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हुई? युवक के स्वजन युवती पक्ष से अनावश्यक दबाव बनाने को खुदकुशी के पीछे का कारण बता रहे हैं। इन सब सवालों के जवाब तब तक नहीं मिलेंगे, जब तक युवती सामने नहीं आएगी।


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