मां से दूर बच्चों के जीवन में रोशनी भर रहा अलीगढ़ का एक संगठन, जाने विस्तार से
मां के बिना बच्चे की परवरिश की कल्पना भी नहीं की जा सकती। फिर जरा सोचिये कि अगर मां जेल में हो तो उस बच्चे का भविष्य कैसे संवरेगा? आजाद फाउंडेशन ने ऐसे ही बच्चों के जीवन में रोशनी भरने का काम कर रहा है।
अलीगढ़, सुमित शर्मा। मां के बिना बच्चे की परवरिश की कल्पना भी नहीं की जा सकती। फिर, जरा सोचिये कि अगर मां जेल में हो तो उस बच्चे का भविष्य कैसे संवरेगा? आजाद फाउंडेशन ने ऐसे ही बच्चों के जीवन में रोशनी भरने का काम कर रहा है। यह संगठन उन बच्चों की न सिर्फ देखभाल कर रहा है, बल्कि उनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा भी उठा रहा है।
यह हैं कारागार में हालात
अलीगढ़ जिला कारागार में करीब चार हजार कैदी-बंदी हैं। इनमें 160 महिला बंदी हैं। 10 बच्चे भी हैं, जो जेल के क्रच में ही रह रहे हैं। इनकी देखभाल को जेल प्रशासन कर लेता है, लेकिन, कई मां ऐसी हैं, जो अपने बच्चों से दूर रहकर सजा काट रही हैं। इनके बच्चे बाहर कैसा जीवन बिता रहे हैं? उन्हें खबर तक नहीं होती। इन्हीं बच्चों की परवरिश के लिए आजाद फाउंडेशन ने सार्थक पहल की है। संस्था की सचिव शाजिया सिद्दीकी कहती हैं कि टीम ने अलग-अलग सदस्यों ने बच्चों को गोद ले लिया था। सप्ताह में पांच दिन बच्चों के पास जाते हैं। उन्हें चेहरे पर खुशी लाने के लिए खेल प्रतियोगिताएं, कलात्मक गतिविधि करवाई जाती हैं। साथ ही टीम के सदस्य खुद ही बच्चों को पढ़ाते भी हैं। बच्चे भी इन गतिविधियों में रम जाते हैं और कुछ समय के लिए ही सही, अपने दर्द को भूलकर जीवन जीते हैं। शुरुआत में करीब 40 बच्चे ऐसे थे, जिनकी मां जेल में थीं। कोराना काल में यह संख्या आधी हो गई है।
केक काटकर मनाते हैं जन्मदिन
हर अवसर पर संस्था बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करती है। अगर किसी भी बच्चे का जन्मदिन होता है तो संस्था के सदस्य उसके घर जाते हैं। केक काटकर बच्चे का जन्मदिन मनाया जाता है। अन्य बच्चों को बुलाकर उस दिन को खास बना दिया जाता है।
हफ्ते में पांच दिन लगती है बच्चों की क्लास
संस्था में अध्यक्ष शहनीला सिद्दीकी, सचिव शाजिया सिद्दीकी के अलावा सीआरपीएफ के रिटायर्ड कमांडर इमरान खान, एएमयू छात्र सईद बिलाल, आशीष, हिबा, डा. जुनैद आलम, दानिश खान, उबैद इसरार, कशीबा सिद्दीकी, युसरा खान शामिल हैं। इनमें से दो-दो सदस्य रोजाना बच्चों के पास जाकर क्लास लगाते हैं। क्लास में खेल व शैक्षिक गतिविधियां होती हैं।
जेल में बंद महिलाओं के बच्चों के चेहरे के मुस्कान लाने के उद्देश्य से यह पहल की गई थी। इसमें बच्चों की देखभाल के साथ उनकी पढ़ाई लिखाई का भी ध्यान रखा जाता है। साथ ही खेल व रचनात्मक गतिविधियां भी करवाई जाती हैं। फिलहाल कोरोना के चलते सबकुछ बंद कर रखा है। कोरोना का प्रभाव खत्म होते ही इसे फिर से शुरू किया जाएगा।
शाजिया सिद्दीकी, सचिव, आजाद फाउंडेशन