एएमयू यूनियन हॉल : वो जान-ए-इंतजार आज हो जाएगा खत्म, हेमवती नंदन बहुगुणा ने भी दिया प्रशिक्षण
वो जान-ए-इंतजार आज हो जाएगा खत्म। हसरत से देख रहा हूं गुजरती सवारियां। कुछ ऐसा ही हाल एएमयू के छात्रसंघ भवन यूनियन हॉल का है। यूनियन हॉल की पथराई आंखें एक साल से बाट जोह रही हैं।
अलीगढ़ (संदीप सक्सेना)। वो जान-ए-इंतजार आज हो जाएगा खत्म। हसरत से देख रहा हूं गुजरती सवारियां। कुछ ऐसा ही हाल एएमयू के छात्रसंघ भवन यूनियन हॉल का है। यूनियन हॉल की पथराई आंखें एक साल से बाट जोह रही हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी हॉल की सुंदरता बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
ऑक्सफोर्ड को देखकर प्रभावित हुए थे सर सैयद
उल्लेखनीय है कि सर सैयद अहमद खान 1869 में लंदन गए थे। जहां उन्होंने कैम्ब्रिज व ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को देखा था। वहां के छात्रसंघ को देखकर श्री खान बेहद प्रभावित हो हुए। उन्होंने एएमयू के अस्तित्व के आने से पहले एमएओ कालेज में डिबेटिंग क्लब स्थापित करने का निर्णय लिया।
पहले था सिंडस यूनियन हॉल
26 अगस्त 1884 को सिंडस यूनियन क्लब का नाम दे दिया गया। इस क्लब में पहली वाद विवाद प्रतियोगिता 15 नवंबर 1884 को हुई। जिसका विषय ' नारी शिक्षा की जरूरत है परंतु घर पर हो या टयूशन व स्कूल में ' था। इसके बाद कैम्ब्रिज स्पीकिंग पुरस्कार शुरू हुआ। पहला पुरस्कार आफताब अहमद खान ने जीता था। बाद में यह पुरस्कार गुलाबो सकलैन, शौकत अली तथा वूमेंस कालेज के संस्थापक शेख अब्दुल्ला ने जीता।
1952 तक उपकुलपति ही होते थे छात्रसंघ के अध्यक्ष
सिन्डस यूनियन क्लब को 1921 में यूनियन क्लब का दर्जा दे दिया गया। 1884 से लेकर 1952 तक उपकुलपति ही छात्रसंघ के अध्यक्ष होते थे। 1953 से अध्यक्ष चुने जाने लगे। तभी यह तय किय गया कि कालेज के छात्रों को उसी तरह का माहौल दिया जाए, जिस तरह संसद व विधानसभा में जनप्रतिनिधियों को मिलता है। उसके लिए छात्रों को भाषण दिए जाने के तरीके व माहौल उपलब्ध कराया गया।
भाषण का प्रशिक्षण देने के लिए आए ये विद्वान
इस तरह का प्रशिक्षण देने के लिए 1958 में लोकसभा स्पीकर अनंत श्यानम अयंगर को बुलाया गया। इस यूनियन हॉल में 1959 में वीके कृष्णनन मेनन, 1962 में आनम नरायन मुल्ला, 1968 में जयप्रकाश नरायन, 1971 में न्यायमूर्ति एम हिदायतुल्ला, 1974 में लोकसभा स्पीकर पीलू मोदी, 1978 में देवराज अर्स व 1979 में हेमवती नंदन बहुगुणा आदि यहां आए और उन्होंने छात्रों को प्रशिक्षण भी दिया।
महात्मा गांधी समेत ये रहे एएमयू छात्रसंघ के आजीवन सदस्य
एएमयू यूनियन एक्ट के अनुसार आजीवन सदस्य भी नियुक्त होते रहे हैं। 1920 में महात्मा गांधी, 1928 में सैयद अल्लामा इकबाल, 1931 में नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन, 1934 में सीमांत गांधी, 1948 में जवाहर लाल नेहरू, 1948 में सी राजगोपालचारी, 1949 मौलाना अब्दुल कलाम, 1951 डॉ.राजेंद्र प्रसाद, मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल अनवार सादात तथा सऊदी अरबी के किंग सऊद इब्ने अब्दुल अजीज आदि आजीवन सदस्य रहे हैं।