एएमयू ने पैदा किए भारत रत्न व पद्म विभूषण Aligarh News
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवॢसटी (एएमयू) ज्ञान का वो गुलदस्ता है जहां हर तरह के फूल खिले हैं। यहां पढ़े छात्रों ने यूनिवॢसटी का तो नाम दुनियाभर में रोशन किया ही देश के सर्वोच्च पदों पर भी आसीन हुए। देश का हर बड़ा पुरस्कार भी अपने नाम किया।
अलीगढ़, संतोष शर्मा। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवॢसटी (एएमयू) ज्ञान का वो गुलदस्ता है, जहां हर तरह के फूल खिले हैं। यहां पढ़े छात्रों ने यूनिवॢसटी का तो नाम दुनियाभर में रोशन किया ही, देश के सर्वोच्च पदों पर भी आसीन हुए। देश का हर बड़ा पुरस्कार भी अपने नाम किया। यूनिवॢसटी के सौ साल के इतिहास में दो भारत रत्न व छह पद्म विभूषण पुरस्कार यहां पढ़े छात्रों ने पाए हैं। आज का दिन इस लिए खास है, क्योंकि इसी दिन यानी दो जनवरी 1954 को देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न व पद्म विभूषण पुरस्कार की शुरुआत हुई थी। अभी तक देशभर की 48 महान विभूतियों को भारत रत्न दिया जा चुका है। एएमयू की 53 विभूतियों का पद्मश्री से भी सम्मान किया जा चुका है।
नौ साल बाद भारत रत्न
अलीगढ़ से भारत रत्न का नाम 1963 में तब जुड़ा है, जब एएमय के पूर्व कुलपति व देश के तीसरे राष्ट्रपति रहे डॉ. जाकिर हुसैन को यह सम्मान मिला। भारत रत्न देने की शुरुआत 1954 में हुई थी। इसके नौ साल बाद ही डॉ. जाकिर हुसैन को यह सम्मान मिला। 20 साल बाद 1983 में यह सम्मान स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर रहे खान अब्दुल गफ्फार खान उर्फ सीमांत गांधी को दिया गया। सीमांत गांधी ने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में पढ़ाई की थी।
छह विभूतियों को पद्मविभूषण
एएमयू में पढ़े छह पूर्व छात्रों को पद्मविभूषण मिल चुका है। 1954 में शुरू होने पर ही पद्मविभूषण पुरस्कार यहां पढ़े दो लोगों को सम्मान दिया गया था। इनमें पश्चिम बंगाल के सत्येंद्र नाथ बसु व एएमयू के पूर्व कुलपति डॉ. जाकिर हुसैन शामिल थे। हाफिज मोहम्मद इब्राहिम (1967), सैयद वसीर हुसैन जैदी (1976), प्रो. आवेद सिद्दीकी (2006), प्रो. राजा राव (2007) व प्रो. एआर किदवई ( 2010) को भी यह सम्मान मिल चुका है।
पुरस्कारों में पुनर्वर्गीकरण
दो जनवरी 1954 को भारत रत्न व पद्मविभूषण पुरस्कारों की शुरुआत की गई। जनवरी 1955 में पद्म विभूषण को तीन पुरस्कारों में पुनर्वर्गीकृत किया गया। इनमें सबसे ऊपर पद्म विभूषण, उसके बाद पद्म भूषण और अंत में पद्मश्री। इसके लिए मानदंड किसी भी क्षेत्र में एक उच्चक्रम की प्रतिष्ठित सेवा जो सरकारी सेवक भी हो सकते हैं, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं। सार्वजनिक क्षेत्र में इसका अपवाद सिर्फ डॉक्टरों व वैज्ञानिकों के लिए रखा गया।
छात्र राजनीति से राष्ट्रपति तक
देश के तीसरे राष्ट्रपति बने डॉ. जाकिर हुसैन ने एएमयू से शिक्षा हासिल की और यहां कुलपति भी रहे। छात्र राजनीति में सक्रिय रहे और छात्र संघ के उपाध्यक्ष रहे। उन्हेंं राष्ट्रपति बनने का मौका मिला। डॉ. जाकिर हुसैन का जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद में हुआ था।
एएमयू से पढ़ाई
खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्म छह फरवरी 1890 में पाकिस्तान के पश्तून परिवार में हुआ था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाले अब्दुल गफ्फार खान विद्रोही विचारों के व्यक्ति थे, इसलिए पढ़ाई के दौरान से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए थे। खान अब्दुल गफ्फार खान ने पश्तून लोगों को अंग्रेजों के जुल्म से बचाने की कसम खाई थी।
राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता थे हाफिज मुहम्मद इब्राहीम
उत्तर प्रदेश के बिजनौर के नगीना कस्बे में 1889 में जन्मे हाफिज मुहम्मद इब्राहीम प्रसिद्ध राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता थे। आरंभिक शिक्षा मुस्लिम मदरसे में हुई। पूरा कुरान शरीफ कंठस्थ करने के कारण उन्हेंं 'हाफिजÓ की उपाधि दी गई थी। एएमयू से उन्होंने कानून की डिग्री ली। 1937 के पहले चुनाव में वे मुस्लिम लीग के उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए। मंत्रिमंडल के गठन के समय विभागों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस व मुस्लिम लीग में मतभेद होने के कारण उन्होंने मुस्लिम लीग छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए। प्रदेश में वे कई साल मंत्री रहे। मौलाना आजाद की मृत्यु के बाद वे कुछ समय तक केंद्र सरकार में भी मंत्री पद पर रहे। 1963 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद पंजाब का राज्यपाल बनाया गया।
एएमयू के कुलपति भी रहे
सैयद बशीर हुसैन जैदी का जन्म 30 जुलाई 1898 को मुजफ्फरनगर में हुआ था। सोनीपत व दिल्ली में स्कूली शिक्षा के बाद, सेंट स्टीफन कॉलेज दिल्ली और फिजीविलियम कॉलेज कैंब्रिज में उनकी शिक्षा हुई। जैदी 1923 में भारत लौट आए। उन्होंने 1923 से 1930 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाया। वह पहली लोकसभा के सदस्य रहे थे। 1956 से 1962 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। वे संविधान सभा के सदस्य भी थे।
एएमयू से पद्मभूषण भी निकले
- शेख मोहम्मद अब्दुल्ला (1965)
- प्रो. सैयद जुहूर कासिम (1982)
- प्रो. रईस अहमद (1985)
- प्रो. आले अहमद सुरूर (1992)
- प्रो. नसीरुद्दीन शाह (2003)
- प्रो. इरफान हबीब (2005)
- कुर्रातुल एन हैदर (2005)
- जावेद अख्तर (2007)
- डॉ. अशोक सेठ (2014)
महाकवि नीरज को मिला था पद्मभूषण
महाकवि गोपालदास नीरज को पहले पद्मश्री (1991), उसके बाद पद्मभूषण (2007) से सम्मानित किया गया था। वे साहित्यकार, शिक्षक, व कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक व फिल्मों के लोकप्रिय गीतकार थे। उनका जन्म चार जनवरी 1925 को इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट गांव पुरावली में हुआ। जब वे छह वर्ष के थे, पिता बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना गुजर गए। बचपन अभावों में बीता। प्राइवेट नौकरी करते हुए पढ़ाई पूरी की। 1953 में ङ्क्षहदी साहित्य से एमए करने के बाद मेरठ कॉलेज में प्राध्यापक हुए। इसके बाद अलीगढ़ आकर डीएस कॉलेज में प्राध्यापक की नौकरी की और फिर यहीं के होकर रह गए। इस दौरान काव्य मंचों पर अपार लोकप्रियता हासिल कर चुके थे। वे पहले व्यक्ति थे, जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया। फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। मेरा नाम जोकर, शर्मीली, प्रेम पुजारी, पहचान आदि फिल्मों के गीत लिखे। कारवां गुजर गया, उनकी कालजयी कविता है, जिसे उनकी पहली फिल्म नई उम्र की नई फसल में मोहम्मद रफी ने आवाज दी। 19 जुलाई 2018 को उनकी मृत्यु हो गई।