हिंदू-मुस्लिम की राजनीति नहीं चाहती एएमयू, चाहत है प्रदेश विकसित राज्य बने
UP Assembly Elections 2022 सरकार ऐसी हो जो सभी के लिए छत की व्यवस्था कराए। मुस्लिमों के लिए अलग से कोई मुद्दे नहीं है। उन्हें भी रोजगार चाहिए। चुनाव में हिंदू-मुस्लिम नहीं होना चाहिए। हिंदू-मुस्लिम की बात करना बंटवारे की राजनीति करना है।
संतोष शर्मा, अलीगढ़ । UP Assembly Elections 2022 चुनाव है, तो बातें राजनीति की होंगी। पर, इस पर चर्चा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के बिना शायद पूरी नहीं मानी जाती। यहां से देश की सियासत में राजनीति के कई सितारे निकले हैं। लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा का चुनाव, एएमयू बिरादरी सब पर नजर रखती है। हर दल की निगाहें भी एएमयू भी टिकी रहती है। सभी दलों को पता है कि यहां से उठने वाली आवाज दूर तक जाती है।
शिक्षकों और छात्रों में भी चुनाव को लेकर दिलचस्पी
उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर शिक्षक और छात्र उतनी ही रुचि ले रहे हैं जितनी राजनीतिक दल। कोरोना की वजह से दो साल से यूनिवर्सिटी बंद है। आनलाइन कक्षाएं चल रही हैं। परंतु, कड़ाके की सर्दी में सियासी गरमाहट खासी है। चुनाव से पहले नेताओं के दल-बदलने की खींचतान के बीच एएमयू बिरादरी प्रदेश में ऐसी सरकार की चाहत रखती है जो हर वर्ग के विकास की बात करे। हिंदू-मुस्लिमों के बंटवारे की राजनीति न हो। इससे किसी का भला नहीं होता, नफरत जरूर पैदा होती है। राजनीति में मुसलमानों की हिस्सेदारी की भी हाे।
एएमयू में माहौल एकसा है। कैपंस में जगह-जगह चुनाव की ही बातें करते छात्र व शिक्षक नजर आए। इनकी चर्चाओं में न कोई जाति प्राथमिकता में दिखी और न कोई दल।
प्रदेश का जितना विकास होगा विकास के उतने दरवाजे खुुुुलेंगे
राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर व सामरिक और सुरक्षा अध्ययन विभाग के चेयरमैन प्रो. आफताब आलम तो विकास और सदभाव की लहर पैदा करने की वकालत करने लगे। उनका मानना है कि अगर शिक्षा को बेहतर करना है तो स्कूलों को सुधारना होगा। प्रदेश का जितना विकास होगा रोजगार के दरवाजे उतने ही खुलेंगे। कोरोना काल में हम सबने देखा कि स्वास्थ्य ढांचा किस तरह चरमरा गया था। इसे और मजबूत करना होगा। बहुत से लोग आज भी खुले आसमान में सोते हैं। ये पूरे समाज पर एक बड़ा तमाचा है। सरकार ऐसी हो जो सभी के लिए छत की व्यवस्था कराए। मुस्लिमों के लिए अलग से कोई मुद्दे नहीं है। उन्हें भी रोजगार चाहिए। चुनाव में हिंदू-मुस्लिम नहीं होना चाहिए। हिंदू-मुस्लिम की बात करना बंटवारे की राजनीति करना है। राजनीति में मुस्लिमों की हिस्सेदारी भी होनी चाहिए।
दिल्ली का रास्ता प्रदेश से जाता है
इसी विभाग के प्रो. मुहीबुल हक का कहना था कि उत्तर प्रदेश से दिल्ली का रास्ता जाता है। योगी जी की राजनीति से एएमयू के बहुत से लोग कंफरटेबल महसूस नहीं करते हैं। उनके ऐसे बयान तक आए है कि अब्बा जान कहने वाले तमाम लोग राशन खा जाते हैं। सीएम ऐसी बात कहें तो राजनीतिक बदलाव की बात उठेगी ही। मुसलमानों में भी एक सोच के लाेग नहीं होते। सभी अपने-अपने हिसाब से राजनीति में रुचि रखते हैं। एएमयू प्रदेश को एक विकसित राज्य के रूप में देखना चाहती है। यूपी में ऐसी सरकार हो जो सेकुलरिज्म हो। हिंदू-मुस्लिम की राजनीति हिंदुस्तान के लिए ठीक नहीं है। रोजगार की सबको जरूरत है। अगर लव जिहाद , घर वापसी पर राजनीति होगी तो मुख्य मुद्दे पीछे रह जाएंगे। आवैसी पर बात की तो बोले, ओवैसी का यूपी की राजनीति में कोई प्रभाव नहीं है। इसी साल पीएचडी करने वाले आंबेडकर नगर के मंसूर इलाही का भी मानना है कि युवाओं को रोजगार की दरकार है। सरकार ऐसी बने जो पांच साल का सफर तय करे और राेजगार के अवसर पैदा करे। इससे छात्र विकास यादव, अनुपम गुप्ता, मोमिन अली भी सहमत दिखे। बोले, युवा अपने बेहतर भविष्य के लिए मेहनत कर रहा है। यह सपना प्रदेश-देश में सकारात्मक और विकास की सोच वाली सरकार होने पर ही पूरे हो सकेंगे।
साफ सुधरे सिस्टम को जन्म दे सरकार
भूगर्भ विभाग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर व राजनीति में समझ रहने वाले डा. अहमद मुजतबा सिद्दीकी का मानना है कि सरकार एेसी हो जोे साफ-सुथरे सिस्टम को जन्म दे। शिक्षा को बढ़ावा दे और समाज के अंदर संतुलन पैदा करे। अल्पसंख्यक समुदाय को वोटों के ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एएमयू के शिक्षकों का रोल राजनीति में हमेशा सकारात्मक रहा है। यहां के संस्थापक सर सैयद अहमद खा ने बगावत हिंद खिताब खिलकर ये संदेश दिया था। किताब को पढ़कर लगेगा कि आज का जो सियासी माहौल है उसका जिक्र उन्होंने डेढ़ सौ साल पहले ही कर दिया था।
एएमयू छात्र राजनीति से मंत्री से राष्ट्रपति तक
एएमयू की छात्र राजनीति से ऐसे नेता पैदा किए जो मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल व राष्ट्रपति तक बने। देश के तीसरे राष्ट्रपति बने डा. जाकिर हुसैन (1897-1969) छात्र संघ के उपाध्यक्ष रहे। जम्मू कश्मीर के पूर्व मंत्री फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला एएमयू के छात्र रहे। बाद में वह जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। बिहार के मुख्यमंत्री रहे अब्दुल गफूर भी एएमयू के छात्र रहे। आसाम की मुख्यमंत्री रहीं अनवरा तैमूर एएमयू के वीमेंस कालेज में पढ़ी थीं। 1920-21 में हुए छात्र संघ के पहले चुनाव में केएम खुदा बख्श पहले छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए थे। छात्र संघ अध्यक्ष रहे आरिफ मोहम्मद खान जनता पार्टी के स्याना (बुलंदशहर) से विधायक बने और डिप्टी मिनिस्टर बनाए गए। वर्तमान में केरल के राज्यपाल हैं। जावेद हबीब भी पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के विशेष दूत रहे और राज्यसभा सांसद भी चुने गए। छात्र संघ सचिव रहे एमए फातिमी दरभंगा से सांसद बने और केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री बने। संघ अध्यक्ष चुने गए सरवर हुसैन बुलंदशहर से सांसद बने। 2006-07 में अध्यक्ष चुने गए नफीस अहमद बलरामपुर से विधायक हैं। अब्दुल हफीज गांधी सपा के नेता हैं। सपा के कद्दावर नेता व पूर्व मंत्री आजम खान भी एएमयू छात्र संघ के सचिव रहे हैं। 1974 में इमरजेंसी के दौरान उनकी छात्र राजनीति कैंपस में चमकी थी।
कांग्रेस ने छात्र नेता को उतारा चुनाव में
एएमयू में 2018 में छात्र संघ अध्यक्ष बने सलमान इम्तियाज को कांग्रेस ने शहर सीट से प्रत्याशी बनाया है। ऐसा 44 साल बाद हुआ था जब शहर के छात्र को एएमयू छात्र संघ का अध्यक्ष बनने का मौका मिला था। इससे पहले 1974 में अलीगढ़ के मुर्शिद खान छात्र संघ अध्यक्ष बने थे।