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अलीगढ़ के जाम के झाम में भी किस्से तमाम, थानेदार को भुगतना पड़ा खामियाजा

आखिरकार थानेदार को खामियाजा भुगतना पड़ गया लेकिन मुकदमा खत्म करने के लिए जो कवायद की गई वो ठीक नहीं थी। आधी रात पुलिस एक पीडि़त परिवार के घर पहुंच गई और दबाव बनाकर कुछ भी लिखवा लिया गया। ये कहां का न्याय था?

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Sat, 19 Dec 2020 11:16 AM (IST)Updated: Sat, 19 Dec 2020 11:16 AM (IST)
अलीगढ़ के जाम के झाम में भी किस्से तमाम, थानेदार को भुगतना पड़ा खामियाजा
आखिरकार थानेदार को खामियाजा भुगतना पड़ गया।

अलीगढ़, सुमित शर्मा। हर तरफ जाम... और खस्ताहाल सड़कें। यही हमारे शहर की बदनुमा पहचान बनती जा रही हैं। जाम ने एक बच्ची की जान ले ली, फिर गड्ढे ने एक डॉक्टर की। ये घटनाएं अंदर तक झकझोर देने वाली थीं, लेकिन जिम्मेदार विभाग पर रत्तीभर फर्क नहीं पड़ा, न कोई कार्रवाई हुई। लेकिन, थानेदार नप गए। गलती थोड़ी जरूर थी कि तहरीर में जो लिखा था, उसे देखा नहीं। आखिर बिना वजह और जांच के किसी पर मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए था। अधिकारियों पर मुकदमा हुआ तो खलबली मचना लाजिमी था। आखिरकार थानेदार को खामियाजा भुगतना पड़ गया, लेकिन मुकदमा खत्म करने के लिए जो कवायद की गई, वो ठीक नहीं थी। आधी रात पुलिस एक पीडि़त परिवार के घर पहुंच गई और दबाव बनाकर कुछ भी लिखवा लिया गया। ये कहां का न्याय था? इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए। डॉक्टर की मौत के दोषी पर भी गाज गिरनी चाहिए।

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मौत पर कई सवाल

दो महीने पहले बागपत के सिपाही के घर में खुशियां आई थीं। नियुक्ति के बाद परिवार की सारी तमन्नाएं पूरी हो गई थीं। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि सिपाही को जीवनलीला समाप्त करनी पड़ी। मैनपुरी में ट्रेङ्क्षनग कर रहा सिपाही आधी रात को गायब हो गया और किसी को फर्क ना पड़ा। अगले दिन उसका शव अलीगढ़ में अकराबाद के जंगल में मिला। पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर हैंङ्क्षगग करार दिया। दावा किया जा रहा है कि आत्महत्या है, लेकिन सवाल कई खड़े हैं। उस रात को हुआ क्या था? कब और कैसे सिपाही इतनी दूर आ गया? अकराबाद में आकर ही आत्महत्या क्यों की? पुलिस को सिपाही का मोबाइल मिला है। मोबाइल की लोकेशन व कॉल डिटेल में क्या कोई संदिग्ध बात नहीं मिली? कहीं सिपाही के साथ अनहोनी तो नहीं हुई? एक जवान की जान गई है, पुलिस को सारे सवालों के जवाब तलाशने होंगे।

छिटपुट घटनाओं पर भी दो ध्यान

बड़ी वारदात और घटनाएं सबकी नजर में आ जाती हैं, लेकिन छिटपुट चोरी, छिनैती व धोखाधड़ी छिप जाती हैं। इन दिनों साइबर ठगी का यही हाल है। 10 से 50 हजार की ठगी पर पुलिस भी कोई ध्यान नहीं देती है। इसी तरह छोटी चोरियोंं की तरफ खाकी का ध्यान नहीं जाता है। रही बात झपटमारी व छिनैती की तो यहां भी पुलिस का रवैया गैर जिम्मेदाराना है। दीपावली पर कई मकानों, दुकानों में चोरियां हुईं। ठगी हुई। झपटमारी तो आएदिन होती है। पुलिस के पास ढेरों शिकायतें आईं, लेकिन जांच के नाम पर इधर से उधर पीडि़तों को टरका दिया जाता है। लोगों में धारणा बन चुकी है कि पुलिस सिर्फ बड़ी वारदात पर ही काम करती है। ऐसे में अफसरों को इस पर मंथन करने की जरूरत है। छोटी वारदात में गरीब की जमापूंजी चली जाती है। इन घटनाओं पर पुलिस ध्यान दे तो सार्थक परिणाम मिलने लगेंगे।

मासूम की तलाश में पल-पल भारी

सिविल लाइन क्षेत्र से चार साल का एक मासूम गायब है। पुलिस ने तलाशने के हर संभव प्रयास किए, लेकिन कोई सुराग हाथ नहीं लग सका। मासूम घर के बाहर खेल रहा था। पास में ही पोखर है, जिसमें दो दिन तक उसे ढूंढा गया। माना जा रहा है कि बच्चा पोखर में नहीं डूबा तो फिर गया कहां? आसपास झुग्गियों को खाकी ने छान मारा। सीसीटीवी खंगाल डाले। तस्वीरों को इंटरनेट मीडिया पर वायरल किया। अन्य जिलों की भी मदद ली, लेकिन कुछ पता नहीं चला। एक बच्चे के चले जाने से परिवार पर जितना बड़ा दुख का पहाड़ टूटा है, उतनी ही परेशानी खाकी के सामने है। जांच पूरी तरह अंधेरी गलियों में है। पुलिस जुटी है, लेकिन इसमें और गंभीरता से काम करना होगा। हर बारीक कड़ी पर ध्यान देना होगा। हर संदिग्ध को टटोलना होगा। इस तरह की ङ्क्षचतनीय घटना पर पूरे महकमे को जुटना होगा।


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