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अलीगढ़ में लाकडाउन से बदला जीने का अंदाज, नए अंदाज में दिखेे बाजार Aligarh news

उस दिन मानो सब कुछ थम गया। जो जहां था वहीं ठहर गया। हर तरफ सन्नाटा और घरों में कैद लोग खिड़कियों से झांककर शहर का हाल जानने की कोशिश कर रहे थे। पिछले साल आज के ही दिन का यह नजारा हर किसी को चौंका रहा था।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Thu, 25 Mar 2021 05:49 AM (IST)Updated: Thu, 25 Mar 2021 07:45 AM (IST)
अलीगढ़ में लाकडाउन से बदला जीने का अंदाज, नए अंदाज में दिखेे बाजार  Aligarh news
लाकडाउन के बाद शहर के बाजारों में फिर से लौटी रौनक।

अलीगढ़, जेएनएन : उस दिन मानो सब कुछ थम गया। जो जहां था, वहीं ठहर गया। सड़कें सूनी थीं। हर तरफ सन्नाटा और घरों में कैद लोग खिड़कियों से झांककर शहर का हाल जानने की कोशिश कर रहे थे। पिछले साल आज के ही दिन का यह नजारा हर किसी को चौंका रहा था। पूरे देश में एक साथ लाकडाउन का यह पहला दिन था। हालांकि, अलीगढ़ में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद से ही लाकडाउन लगा दिया गया था और कुछ घंटेे छूट का प्रावधान दिया, लेकिन 25 मार्च 2020 को किसी को सड़क पर आने की इजाजत नहीं थी। जो आया, उसके खिलाफ मामले दर्ज हुए। एक ही दिन में 17 मुकदमे दर्ज किए गए। इसी दिन से जिंदगी का नया संघर्ष शुरू हो गया। कोरोना दरवाजे पर दस्तक दे रहा था। शहर और कस्बों में 24 घंटे दौड़ती भागती जिंदगी पर  बैरियर लगाया जा रहा था।  शादी व अन्य समारोह टाल दिए गए थे। ऐसे में जीने का भी तरीका बदल रहा था। रहने और बाजारों में आने का अंदाज भी बदल रहा था। सैनिटाइजर और मास्क लोगों ने अपना लिए और लाकडाउन से मुक्ति मिली तो शहर में भी सब कुछ बदल चुका था।  शोरूम का इंटीरियर बदल चुके थे। कोविड गाइडलाइन के साथ जिंदगी को रफ्तार मिल गई। इस बीच हुई दिक्कतें भले पीछे रह गईं, पर यादें साथ कहां छोड़ती हैं। एक साल पूरा होने पर बुधवार को उस दौर के किस्सेे बाजारों मेंं थेेे। 

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घर बन गए मंदिर 

25 मार्च 2020 को चैत्र नवरात्र व नव संवत्सर था। जहां महिलाएं मां जगदंबे की आराधना के लिए नई पोशाक, पूजा समाग्री, फलाहार सामान खरीदने के लिए तैयारियां कर रहीं थी, तब भीड़-भाड़ वाले महावीरगंज में दुकाने बंद थी। अंबागंज, गुड़ की मंडी में पूरी तरह बंद थीं। नवरात्र पर कोई मंदिर नहीं गया। घर ही मंदिर से लगे।   

दूर तक सुनाई दे रही थी बूटों की आवाज  

रेलवे रोड पर सन्नाटा को चीरते हुए सब्जी मंडी चौक तक सिर्फ केंद्रीय सुरक्षा बल, यूपी पुलिस, पीएसी के जवानों के बूट की आवाज सुनाई दे रही थीें। साइरन बजाती हुई पुलिस की गाड़ियां सन्नाटा चीर रही थीं। इस बाजार में शोरूम बंद थे। दवा बाजार फफाला के हालात भी कुछ इसी तरह के थे। आवश्यक सेवा के तहत खुलने वाली दवा की दुकानें खुद ही व्यापारियों ने बंद कर रखीं थीं। वारहद्वारी, रसलगंज बाजार में सड़कें सूनीं थी। रसलगंज जीटी रोड स्थित अग्रचौक पर जहां रोडवेज की बसे व कारें दौड़ती थी, वहां बीरानी छायी हुई थी। मसूदाबाद रोडवेज बस के बाहर न तो यात्री थे, न ही राहगीर। गांधीपार्क जीटी रोड पर पुलिस ने वैरीकेडिंग लगाई थी। आगरा रोड की हालत कुछ जुदा थी। यहां सड़के वीरान थीं, गलियां गुलजार। बच्चे मोहल्लों के चौक में जमकर क्रिकेट खेला।  दुकानदारों को बस एक ही इंतजार था, कि आखिर नई गाइड लाइन क्या होंगी। अब सब सामान्य हैं। बाजार पहले की तरह खुले हैं।   

इस तरह बदले शोरूम 

लाक डाउन में छूट मिलने पर अधिकांश शोरूम का इंटीरियर बदल गया था। सेवा देने का तरीका भी पहले से बहुत हटकर है।  बिना मास्क लगाए प्रवेश वर्जित की सूचना गेट पर लगी थी। बड़े शोरूमों के गेट पर गार्ड अलर्ट थे। हाथों को सैनिटाइज करने के लिए डिस्पेंसर मशीन लगी थी। तापमान की चेकिंग कराना जरूरी हो गया था।  शीशा के काउंटरों पर रेड रिबन बंधा है, ताकि ग्राहक के हाथ काउंटर को न छूएं। आर्डर दूर से ही लिए जा रहे थे। एक काउंटर पर एक ग्राहक  को ही वहां बने घेरे में खड़े होने की अनुमति है। अतिथि देवो भव का तरीका ही बदल गया था। सरकारी कार्यालयों में भी काफी बदलाव किया गया था।  

..,.फिर भी हार नहीं मानी  

हर तरफ सन्नाटे के बीच जीने की लालसा ने जीवटता को बरकरार रखा। ऐसे में जिंदगी की आवश्यकताएं रोटी और दवा भी जरूरी थी। खत्म हो रहे थे तो सिर्फ रोजगार के साधन। फिर भी लोगों ने हार नहीं मानी। घर के लिए पैदल ही निकल पड़े। शहरों और गांवों में आकर मेहनत-मजदूरी कर परिवार की रोजी-रोटी चलाई। स्कूल-कॉलेज भी बंद हो चले थे, लेकिन कोर्स पूरा करने के लिए पढ़ाई जरूरी थी। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा और वर्क फ्रॉम होम की सृजनता ने जीवन को नए आयाम दिए। इस दौरान वाहनों और फैक्ट्रियों के निकलते धुएं पर रोक लगने से प्रकृति भी घुटन से उबर रही थी। खुले आम पशुओं का विचरण और घर-आंगन में भी पक्षियों का कलरव भी लगातार बढ़ रहा था।


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