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सपनों को दी उड़ान, अलीगढ़ की दिव्यांग ने खेल में बनाई पहचान

शेखा गांव की कनक जादौन ने फोर्थ नेशनल पैरा बैडमिटन में कांस्य जीता।

By JagranEdited By: Published: Fri, 07 Jan 2022 08:19 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jan 2022 08:19 PM (IST)
सपनों को दी उड़ान, अलीगढ़ की दिव्यांग ने खेल में बनाई पहचान
सपनों को दी उड़ान, अलीगढ़ की दिव्यांग ने खेल में बनाई पहचान

जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : प्रतिभा कभी सुविधाओं की मोहताज नहीं होती है। प्रतिभावान मुश्किलों को पार करते हुए नई ऊंचाइयों तक पहुंच जाते हैं। शेखा गांव की कनक जादौन भी उनमें से एक हैं। दिव्यांग होने के बाद भी उन्होंने बैडमिटन में एक नया मुकाम हासिल किया है। फोर्थ नेशनल पैरा बैडमिटन चैंपियनशिप में उन्होंने पहली ही बार में कांस्य जीता। कनक के पास बैडमिटन किट खरीदने तक के पैसे नहीं थे, अच्छे कोच से प्रैक्टिस भी नहीं कर सकीं, मगर हौसले की उड़ाने से उन्होंने नया मुकाम हासिल किया है। कनक पैरालिपिक में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहती हैं।

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धनीपुर ब्लाक क्षेत्र के गांव शेखा निवासी कनक जादौन लखनऊ के डा. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुर्नवास विश्वविद्यालय से बीए कर रही हैं।

पिता महेश पाल सिंह ट्रैक चालक हैं, मां मीना देवी गृहिणी हैं। कनक जन्म से ही दिव्यांग हैं। उनके दोनों हाथ कमजोर हैं और एक पैर में दिक्कत है। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ठीक नहीं है। कनक के जन्म के बाद जब ऐसी स्थिति हुई तो परिवार मायूस हो गया। परिवार के सदस्यों ने सोचा किसी तरह ये लड़की पढ़ाई कर ले यही बड़ी बात है। सभी उसे दया के भाव से देखते। मगर, उम्र संभालने के बाद कनक कभी मायूस नहीं हुईं। उन्होंने किस्मत का खेल मानते हुए आगे पढ़ाई शुरू कर दी। साथ ही दौड़ और बैडमिटन की तैयारी शुरू कर दी। हाईस्कूल और इंटर की पढ़ाई उन्होंने अलीगढ़ से की। लखनऊ में डा. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुर्नवास विवि में मौका मिला तो बैडमिटन के लिए खूब पसीना बहाया। साथ एथलीट की भी तैयारी करतीं रहीं। फोर्थ यूपी पैरा एथलीटी चैंपियनशिप 2019 में मेरठ में डिस्कश थ्रो में गोल्ड जीता। 100 मीटर की दौड़ में सिल्वर बाजी मारी।

फोर्थ नेशनल पैरा बैडमिटन चैंपियनशिप, भुवनेश्वर में कांस्य पदक जीता। कनक बताती हैं कि दिव्यांग होने से उन्हें आने-जाने में दिक्कतें आती हैं, मगर वो कभी मायूस नहीं होती हैं, उन्होंने आगे बढ़ना ही जीवन का सिद्धांत बना लिया है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते वो अच्छे कोच आदि नहीं कर पा रही हैं, मगर वो कहती हैं कि खुद कठिन परिश्रम करके खेल में एक नया मुकाम हासिल करेंगी। दिन में छह घंटे के करीब प्रैक्टिस करती हैं। पैरालिपिक में पहुंचकर वो देश का नाम रोशन करना चाहती हैं। उनके खेल और पढ़ाई में शिक्षक प्रदीप ठाकुर मदद करते हैं।


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