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Coronavirus से अलीगढ़ की ताला इंडस्‍ट्री बुरी तरह प्रभावित, जानिए विस्‍तार से

कोरोना संकट के बीच ताला-हार्डवेयर कारोबार ठहर सा गया है। कच्चे माल के दाम नए रिकार्ड बना रहे हैं। टाटा जैसी कंपनी की आयरन फ्रेस सीट 90 रुपया प्रतिकिलो पार कर गई है। बुधवार को पीतल 430 रुपये प्रतिकिलो तक बिकी है।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Thu, 22 Apr 2021 07:01 AM (IST)Updated: Thu, 22 Apr 2021 07:01 AM (IST)
Coronavirus से अलीगढ़ की ताला इंडस्‍ट्री बुरी तरह प्रभावित, जानिए विस्‍तार से
कोरोना संकट के बीच ताला-हार्डवेयर कारोबार ठहर सा गया है।

अलीगढ़, जेएनएन। कोरोना संकट के बीच ताला-हार्डवेयर कारोबार ठहर सा गया है। कच्चे माल के दाम नए रिकार्ड बना रहे हैं। टाटा जैसी कंपनी की आयरन फ्रेस सीट 90 रुपया प्रतिकिलो पार कर गई है।  बुधवार को पीतल 430 रुपये प्रतिकिलो तक बिकी है। दिनोंदिन बढ़ती उत्पादन लागत से उद्यमी परेशान हैं। माल के आर्डर जमी पर हैं। कच्चे माल के दाम आसमां पर हैं।

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बाजार में माल की मांग है नहीं

ताला निर्माण में दो तरह की आयरन सीट का प्रयोग किया जाता है, उसमें फ्रेस सीट व मेल्टिंग स्क्रेप (आटो कंपनियों से निलाम होने वाली कटिंग सीट)। मंगलवार को फ्रेस सीट 18 फीसद जीएसटी सहित 90 रुपया प्रतिकिलो के रिकार्ड दाम पर बिकी। जबकि यह सटी दिसंबर तक 55 रुपया प्रतिकिलो तक बाजार में उपलब्ध थी। कूलर, बाक्स व अन्य संसाधनों में प्रयोग करेन वाली जस्ती सीट भी 90 से 95 रुपया तक बाजार में बिकी है।आयरन फ्रेस सीट व मेल्टिंग स्क्रेप के बिक्रेता विष्णु भैया ने बताया है कि बाजार में माल की मांग है नहीं, ताला निर्माता व अन्य व्यापारी आर्डर दे नहीं रहे। कच्चे माल की कीमत आसमां पर पहुंच रही हैं। आज ही टाटा कंपनी की फ्रेस आयरन सीट थोक में दो से तीन रुपया चढ़कर आई है। हर रोज कीमत बढ़ रही हैं। कंपनी वाले कुछ बताने के लिए तैयार नहीं है।

उत्पादन के पैसा चाह कर भी नहीं बढ़ा सकते

ताला-हार्डवेयर निर्माता सतेंद्र जैन का कहना है कि कोविड के चलते कई राज्यों में लाकडाउन लगा हुआ है। बाजार में न तो आर्डर है, ना ही मांग। दिसंबर तक कारोबार ठीक था। जनवरी से कच्चे माल की बढ़ती कीमतों ने अप्रैल तक डेढ़ गुना तक महंगा हो गया है। आयरन की सीट तो दो गुना तक पहुंच गई है। पिछले साल अप्रैल में मेल्टिंग स्क्रेप 21 रुपया प्रतिकिलो थी, अब वहीं स्क्रेप 42 रुपया प्रतिकिलो तक पहुंच गई है। लागत मूल्य बढ़ता जा रहा है। मुनाफा ना के बरावर रह गया है। आपस में इतनी प्रतिस्पर्धा है, कि उत्पादन के पैसा चाह कर भी नहीं बढ़ा सकते।


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