सुंदर कांड के बाद साहब का बंध गया बिस्तर, नए साहब ने पढ़ाया टाइम मैनेजमेंट का पाठ
अलीगढ़ जागरण संवाददाता। तेज-तर्रार और तुनकमिजाज आगरा वाले साहब की विदाई के बाद विभागीय कर्मचारियों ने जमकर खुशी मनाई। एक-दूसरे को मिठाई खिलाई। दौर-ए-दावत भी हुआ। किसी को पता नहीं था कि सुंदर कांड के बाद साहब का बिस्तर बंध जाएगा।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। तेज-तर्रार और तुनकमिजाज आगरा वाले साहब की विदाई के बाद विभागीय कर्मचारियों ने जमकर खुशी मनाई। एक-दूसरे को मिठाई खिलाई। दौर-ए-दावत भी हुआ। किसी को पता नहीं था कि सुंदर कांड के बाद साहब का बिस्तर बंध जाएगा। अभी तक कर्मचारी एक-दूसरे को बधाई देते हुए नहीं थक रहे थे कि पड़ौसी जनपद से आए नए साहब ने आते ही तेवर दिखा दिए। अधीनस्थों की बैठक बुलाई। पूर्ववर्ती अधिकारियों की तरह सुधार पर गुड स्पीच दी। उन्हें समयबद्धता और समय प्रबंधन (टाइम मैनेजमेंट) का पाठ भी पढ़ाया। कहा, सुबह 10 बजे तक प्रत्येक कर्मचारी अपने कक्ष में उपस्थित हो जाए। जो कर्मचारी समय पर नहीं आएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। कुछ कर्मचारियों ने तो इसे नए साहब का फरमान ही बता दिया। आपस में कानाफूसी भी हुई कि ये साहब भी पहले वालों की तरह तो नहीं। फिलहाल, सभी ने चुप्पी साध ली।
अब बगलें झांक रहे साहब के ‘खास’
एक विभाग की सेहत दुरस्त करने की बजाय और बिगाड़ देने वाले साहब तो रुखसत हो गए, मगर उनके समय में खुद को सुपर साहब समझने वाले कर्मचारियों की हालत पतली हो गई है। पुराने साहब के खास रहे इन कर्मचारियों को कोई नहीं पूछ रहा। साहब के मुंह-चढ़े ये कर्मचारी, पहले खुद किसी को कुछ नहीं समझ रहे थे। अन्य अधिकारियों के निर्देशों की भी अवज्ञा कर बैठते थे। साहब की शह पर उल्टा जवाब देने में संकोच नहीं होता था। साहब के लिए इन खास लोगों की सौ गलतियां माफ थीं। कभी किसी शिकायत पर तवज्जो नहीं दी। कार्यालय से लेकर साहब की कोठी तक दौड़ने वाले कई कर्मचारी तो अपनी मूल ड्यूटी ही भूल गए। अब निजाम बदलते ही यही कर्मचारी बगलें झांक रहे हैं। अब अन्य कर्मचारियों ने इनकी अनदेखी शुरू कर दी है। किसी ने सही कहा है कि समय बदलते देर नहीं लगती है।
‘रिश्तेदार’ को नहीं मिला टिकट, ‘नेताजी’ उदास
जिले की सबसे वीआइपी सीट पर दमखम दिखाने के लिए दीदी के आह्वान पर दो महिलाअों ने भी ताल ठोंकी। एक नेता भगवा ब्रिगेड छोड़कर आए थे। इनमें एक महिला दावेदार पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेताजी की रिश्तेदार थी। नेताजी चाहते थे कि उसे ही टिकट मिले। नेताजी का ज्यादातर समय लखनऊ में ही बीतता है। प्रदेश संगठन में अहम दायित्व भी है। प्रदेशाध्यक्ष व अन्य नेताअों से भी अच्छा तालमेल भी है। दिल्ली तक पहुंच है। लेकिन, सर्वे टीम ने उनकी रिश्तेदार को बेहद कमजोर मानते हुए पुरुष दावेदार को टिकट देने की सलाह दी थी। दरअसल, केवल चुनाव लड़ाने के लिए नेताजी ने अपनी रिश्तेदार को दावेदार बनवाया था। कांग्रेस से ज्यादा जुड़ाव नहीं रहा। संगठन के लोग भी अचानक सामने आईं महिला दावेदार के पक्ष में नहीं थे। नेताजी ने खूब कोशिश की, मगर टिकट नहीं दिला पाए। हाईकमान ने केवल सर्वे टीम की बात मानी।
गजब, चुनाव में भी गुटबाजी हावी
दीदी ने विधानसभा चुनाव में आधी आबादी को चुनाव लड़ने का नारा दिया है, लेकिन यहां तो पार्टी में ही टिकट को लेकर घमासान शुरू हो गया है। घोषित प्रत्याशियों के खिलाफ सभी दावेदार एकजुट और लामबंद हो गए हैं। यहां तक कि पूर्व में कांग्रेस को जीत दिला चुके वरिष्ठ नेता के खिलाफ भी दावेदारों ने विरोध का झंडा उठा लिया है। अभी हाईकमान ने चार सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए हैं और तीन पर बदलाव की मांग हो रही है। इससे संगठन के नेता भी उलझन में हैं। दरअसल, यह पार्टी में व्याप्त गुटबाजी का परिणाम है, जिसकी हाईकमान और स्थानीय नेताअों ने अनदेखी की। चुनाव से पूर्व आपसी गतिरोध को दूर करना चाहिए थे, ताकि कोई विघ्न न पड़े। अफसोस, ऐसा नहीं किया गया। संगठन के नेता अब प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाएं या फिर असंतुष्टों को मनाएं, इसे लेकर परेशान हैं। जबकि, असंतुष्ट मानने को तैयार नहीं ।