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विदेशी धरती पर बढ़ी तांबे की चमक, विलुप्त हो रही ठठेरा कला को नया आयाम दे रहे अलीगढ़ के अदनान

भारत में जन्मी ठठेरा कला अब विदेशों में धाक जमा रही है। इस कला को नया आयाम देकर अदनान ने तांबे की क्राकरी और एंटीक शोपीस का जो कारोबार दुबई से शुरू किया था वह अन्य देशों में भी फैल चुका है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Tue, 16 Nov 2021 10:36 AM (IST)Updated: Tue, 16 Nov 2021 10:45 AM (IST)
विदेशी धरती पर बढ़ी तांबे की चमक, विलुप्त हो रही ठठेरा कला को नया आयाम दे रहे अलीगढ़ के अदनान
भारत में जन्मी ठठेरा कला अब विदेशों में धाक जमा रही है।

लोकेश शर्मा, अलीगढ़ । भारत में जन्मी ठठेरा कला अब विदेशों में धाक जमा रही है। इस कला को नया आयाम देकर अदनान ने तांबे की क्राकरी और एंटीक शोपीस का जो कारोबार दुबई से शुरू किया था, वह अन्य देशों में भी फैल चुका है। यूके, यूएस और मलेशिया के लोग भी इस कला के मुरीद हैं। खासकर विदेशों के होटलों में मांग बढ़ रही है। अब आर्डर मांगने नहीं पड़ते, वेबसाइट पर ही मिल रहे हैं।

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कोरोना की पहली लहर में लगे लाकडाउन में शुरू किया था कारोबार

यूके (लंदन) से एमबीए कर चुके मेडिकल रोड स्थित नाज प्लाजा अपार्टमेंट निवासी अदनान ने कोरोना की पहली लहर में लगे लाकडाउन के दौरान ये कारोबार शुरू किया था। मुरादाबाद में उन्होंने सदियों पुरानी स्वदेशी ठठेरा कला को बारीकी से समझा और कारीगरों के बनाए तांबे और पीतल के बर्तनों को नया लुक देकर बाजार में उतारने का निर्णय लिया। आगरा, लखनऊ, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र के बाजारों में जाकर आर्डर लिए। फिर दुबई में निर्यात शुरू कर दिया। वो ऐसा समय था, जब कोरोना के चलते लोग तांबे के बर्तनों का अधिक उपयोग कर रहे थे। अदनान बताते हैं कि बर्तनों की मांग बढ़ी तो आत्मविश्वास भी बढऩे लगा। 'कंट्री क्राफ्ट' नाम से कंपनी बना ही चुके थे, फिर इसी नाम से वेबसाइट शुरू कर इंटरनेट मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया। इसके बाद अन्य देशों से आर्डर मिलने लगे। दुबई के अलावा अब यूके, यूएस और मलेशिया में भी निर्यात किया जा रहा है। विदेशियों की मांग के मुताबिक कारीगरों से क्राकरी तैयार कराते हैं। नए लुक में पूजा की थाली, कलश, सागर, दीपक भी पंसद किए जा रहे हैं। उनके मित्र अतीफुर्रहमान कारोबार बढ़ाने में काफी मदद कर रहे हैं।

कभी चस्पा किए थे पोस्टर

अदनान बताते हैं कि एक समय ऐसा था, जब अपने प्रोडक्ट की मार्केङ्क्षटग करना मुश्किल हो रहा था। इतना पैसा नहीं था कि किसी एजेंसी को हायर कर लें। तब दोस्तों के साथ शहर-शहर घूमकर रात में दीवारों पर पोस्टर चस्पा कर कंपनी का प्रचार किया था। छह महीने कड़ी मेहनत के बाद होटल- रेस्टोरेंट से आर्डर मिलने शुरू हुए थे। इसके बाद फिर मुड़कर नहीं देखा।

कारीगरों को कमाई का हिस्सा

मुरादाबाद में जो कारीगर तांबे-पीतल के बर्तन बनाते हैं, उन्हें कंपनी के लाभ का एक हिस्सा दिया जाता है। अतीफुर्रहमान बताते हैं कि ठठेरा कला को जीवित रखने के लिए हाथ से बने बर्तनों पर खास छूट दी है। कारीगरों को मेहनताने के अलावा अतिरिक्त लाभ भी देते हैं।


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