अदालतों में हिंदी के लिए अलीगढ़ से उठी थी आवाज, तोताराम ने की थी पैरवी Aligarh News
साहित्यकार बाबू तोताराम वर्मा की पहल पर यहां से शुरू हुआ आंदोलन हिंदीभाषी प्रदेशों में फैला और पंडित मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में आगे बढ़ा। इसके दबाव में अंग्र्रेजों को झुकना पड
विनोद भारती, अलीगढ़ : अदालतों में कामकाज की भाषा हिंदी यूं ही नहीं बनी। इसके पीछे लंबा संघर्ष रहा। इसकी आवाज अलीगढ़ से उठी थी। ङ्क्षहदी प्रचारक व साहित्यकार बाबू तोताराम वर्मा की पहल पर यहां से शुरू हुआ आंदोलन हिंदीभाषी प्रदेशों में फैला और पंडित मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में आगे बढ़ा। इसके दबाव में अंग्र्रेजों को झुकना पड़ा। ङ्क्षहदी प्रचारकों की यह बड़ी जीत थी, जिसने आजादी के आंदोलन को भी ताकत दी।
तब होता था उर्दू में काम
बात 1875 की है। तब कोर्ट-कचहरी में उर्दू में काम होता था। सभी आदेश और बयान उर्दू में ही दर्ज होते थे। इसे समझना हिंदीभाषी लोगों के लिए सहज नहीं था। बाबू तोताराम को यह ठीक न लगा। वे बनारस से नौकरी छोड़कर अलीगढ़ आ गए और वकालत करने लगे थे। पहले ही दिन कचहरी में हिंदी की हिमायत ली। मुंशी, बाबू सभी ने ङ्क्षहदी में काम करने में असहजता जता दी। अंग्र्रेजी हुकूमत के आदेश बता डाले। यहीं से आंदोलन का बिगुल फुंका। 1878 में तोताराम ने ङ्क्षहदी के प्रचार के लिए भारतवर्षीय नेशनल एसोसिएशन का गठन किया।
तोताराम ने कायस्थों को किया एकजुट
उसके वर्तमान सचिव एमके माथुर बताते हैं कि तोताराम कायस्थ थे। अदालतों में 80 फीसद काङ्क्षरदे, मुंशी व मुख्तार कायस्थ ही थे। इन्हें एकजुट करना उनके लिए आसान था। धरना, प्रदर्शन व ज्ञापन के सिलसिले शुरू होने के बाद कोर्ट-कचहरी में ङ्क्षहदी उपयोग की मांग हिंदीभाषी राज्यों में उठने लगी। पंडित मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन गवर्नर एंटोनी मैक्डॉनल से मिला। 60 हजार हस्ताक्षरों से युक्त प्रतिवेदन सौंपा। यह देश में हिंदी के लिए पहली सुनियोजित लड़ाई थी। 15 अगस्त 1900 को उर्दू के साथ ङ्क्षहदी को भी मान्यता मिल गई।
कई शहरों में की नौकरी, अखबार भी निकाला
अलीगढ़ के नगला मानसिंह में हिंदी के विद्वान ज्ञानचंद के यहां 1847 में तोता राम वर्मा का जन्म हुआ। बीए करने के बाद नौकरी की तलाश में अलीगढ़ से चले गए थे। फतेहगढ़, बनारस व देहरादून में प्रधानाध्यापक रहे। बनारस में गुजराती, मराठी व बांग्ला भाषा सीखी। एलएलबी की। हिंदी प्रचारक के रूप में उनकी पहचान होने लगी। अलीगढ़ में प्रेस खोलकर 'भारतबंधु' साप्ताहिक पत्र निकाला। ङ्क्षहदी के उत्थान को संघर्षरत भारतेंदु हरिश्चंद्र का साथ देने वालों में बाबू तोताराम भी थे। इन्होंने 'भाषासंवर्धिनी' नाम से सभा स्थापित की। इनके द्वारा स्थापित भारतवर्षीय नेशनल एसोसिएशन ने ही 1889 में सार्वजनिक पुस्तकालय की नींव रखी, जिसे अब मालवीय पुस्तकालय के नाम से जाना जाता है। सात दिसंबर 1902 को उनका निधन हो गया।
साहित्य के निर्माता
तोताराम साहित्य निर्माता भी थे। उन्होंने उपदेश रत्नावली, नीति रत्नाकर, विवाह विडंबना, नाटक, स्त्री धर्म-बोधिनी, ब्रजविनोद, राम-रामायण बालकांड, नीतिसार, रामायण रत्नावली, 'कीर्तिकेतुÓ आदि नाटक लिखे। उनके योगदान को तमाम साहित्यकारों ने रेखांकित किया है।