World Environment Day: नौकरी रहे या जाए प्रदूषण न सताए, जानिए क्यों हो रहा महानगरों से मोहभंग
ताजा सर्वे के मुताबिक बढ़ते वायु और जल प्रदूषण के चलते उत्तर भारत के महानगरों की मोहक जीवन शैली से मोहभंग हो रहा है।
आगरा, कुलदीप सिंह। देश में ही गर सिला मिलता तो क्यूं जाते परदेश। करीब ढाई दशक पहले चर्चित पत्रिका की इस कवर स्टोरी में युवाओं के लिए अवसरों की उपलब्धता को लेकर जताई गई चिंता अभी भी मुंह बाए खड़ी है। लेकिन, ताजा सर्वे के मुताबिक इस दौरान एक नया वर्ग तैयार हो गया है। जिसका बढ़ते वायु और जल प्रदूषण के चलते उत्तर भारत के महानगरों की मोहक जीवन शैली से मोहभंग हो रहा है। वितृष्णा इस हद तक है कि तबादला न होने पर नौकरी तक छोडऩे को तैयार हैं।
आगरा के एक निजी कॉलेज में मैनेजमेंट के छात्रों को पढ़ा रहे अभिषेक सक्सेना को ही लें। कुछ साल पहले तक दिल्ली में एक बैंक में अधिकारी थे। सांसों में प्रदूषण का जहर घुला तो बीमार हो गए। अंतत: बैंक की नौकरी छोड़ आगरा लौट आए।
ऐसा ही मामला है रोहता निवासी रवि प्रताप का। अमेरिका की एक आइटी कंपनी में कार्यरत थे। प्रोजेक्ट खत्म होने पर दिल्ली तबादला हुआ तो दो महीने तक ज्वाइन ही नहीं किया। कंपनी ने अब चेन्नई ब्रांच में तैनाती दी तो ज्वाइन किया। अरुचि का कारण वही दिल्ली की प्रदूषित आबोहवा।
आगरा स्थित दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (डीईआइ) द्वारा इस साल मार्च-अप्रैल में 900 लोगों पर कराया गया सर्वे भी युवाओं की इस बदलती मनोदशा पर मुहर लगाता है। सर्वे के मुताबिक निजी क्षेत्र के 46 फीसद व सरकारी क्षेत्र के 32 फीसद युवा प्रदूषण के आगे नौकरी तक की परवाह नहीं कर रहे। चाहते हैं कि इनका तबादला कहीं ऐसी जगह कर दिया जाए जहां की आबोहवा बेहतर हो।
छोटे शहर या दक्षिण भारत बना पसंद
सर्वेक्षण निष्कषों के अनुसार बढ़ते प्रदूषण के कारण लोग दिल्ली जैसे उत्तर भारत के महानगरों के बजाए दक्षिण के शहरों को प्राथमिकता देना पसंद कर रहे हैं। 76 फीसद का मानना है कि महानगरों के बजाए छोटे शहरों में रहना ज्यादा बेहतर है।
सर्वे में 21 से 40 आयु वर्ग के 38 फीसद महिला-पुरुष शामिल थे। इनमें निजी क्षेत्र से 70 और सार्वजनिक क्षेत्र से 30 फीसद लोगों से सवाल किये गए। 81 फीसद पुरुष और 19 फीसद महिलाएं नौकरी को भी तिलांजलि देने को तैयार थे।
चौंकाने वाले तथ्य..
अलामिर्ंग स्थिति के बावजूद लोगों में जागरूकता की कमी है। सर्वेक्षण में सामने आया कि 68 फीसद लोगों को एयर क्वालिटी इंडेक्स की जानकारी ही नहीं है। वे सिर्फ धूल उड़ने को ही वायु प्रदूषण समझते हैं। 95 फीसद लोगों की नजर में वायु प्रदूषण की जानकारी का सर्वश्रेष्ठ माध्यम सिर्फ प्रिंट मीडिया है।
जरूरत है मूल्य अाधारित शिक्षा की
प्रदूषण से बचने के लिए लोग नौकरी तक छोडऩे को तैयार हैं। अब मूल्य आधारित शिक्षा की जरूरत है जिससे आने वाली पीढ़ी को बचाया जा सके। अभी से सकारात्मक प्रयास शुरू करने की जरूरत है।
डॉ. रंजीत कुमार, प्रवक्ता रसायन विज्ञान
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