राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष: ऐ आसमां! और ऊंचा उठ, हौसला अभी जवां है
जज्बे और जुनून से युवाओं ने जीता जहां। संगीत, नृत्य और से कला से मनवाया लोहा
' जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है।' - स्वामी विवेकानंद
आगरा, विनीत मिश्र। कहते हैं मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। ऐसा ही जज्बा और जुनून जब ताजनगरी के कुछ युवाओं ने सहेजा तो सफलता उनके कदम चूमने लगी। किसी ने चित्रकला के जरिए समाज को दर्पण दिखाया तो किसी ने संगीत और नृत्य में अपने हुनर का लोहा मनवाया। किसी ने कम उम्र में ही प्राइवेट नौकरी में वह मुकाम पाया, जो बहुतों के लिए सपना होता है। हम युवा दिवस पर ऐसे ही कुछ युवाओं के बारे में बता रहे हैं।
लगन और ललक से बनाई 'गरिमा'
साहित्यकार डॉ. मधु भारद्वाज की बेटी गरिमा ने सेंट एंथोनी कॉलेज से इंटरमीडिएट की। आइआइटी कानपुर से बीटेक और फिर चेन्नई के ग्र्रेट लिक संस्थान से एमबीए किया। छह वर्ष पहले इंफोसिस में कुछ दिन सर्विस के बाद गोदरेज में मुंबई में मैनेजर बन गईं। इसके बाद उन्होंने ओयो कंपनी को आगरा में लांच कराया। गुरुग्र्राम में साथी के साथ मिलकर 'माम्स एंड को' कंपनी बनाई। ये कंपनी गर्भवती महिलाओं को फूड सेप्लीमेंट मुहैया कराती है। इस वर्ष पांच अप्रैल को इलेक्ट्रॉनिक सेंसर बनाने वाली मुंबई की कंपनी इनलाइट रिसर्च में सीईओ बन गईं। गरिमा कहती हैं मेहनत की और सफलता मिलती चली गई।
पेंटिंग में 'गोल्डन गर्ल' है अलीशा
बात पर्यावरण की हो या फिर नारी सशक्तीकरण की। ऊर्जा संरक्षण की हो या फिर जल संरक्षण। स्वच्छता की हो या फिर धूमपान के खिलाफ जंग की। अलीशा राघव की कूची जब कैनवास पर चलती है, तो समाज को नया दर्पण दिखाई देता है। अलीशा सेंट कॉनरेड्स में दसवीं की छात्रा है। पिता डॉ. अनिरुद्ध राघव इंटीरियर डिजाइनर हैं और मां अभिलाषा सिंह ङ्क्षहदुस्तान कॉलेज में मैनेजमेंट की विभागाध्यक्ष। पेंटिंग के प्रति दीवानगी ही थी कि तूलिका चलती रही और अलीशा की झोली में पुरस्कार आते गए। 2017 में दिल्ली में नेशनल सिंबल आर्ट कॉन्टेस्ट में उसे कमेंडिड आर्टिस्ट अवार्ड मिला, तो ऑल इंडिया इंद्रधनुष पेंटिंग कॉन्टेस्ट में हाइली रिकमंडिड ज्यूरी अवार्ड भी मिला। दिल्ली में क्रिएटिव एंट्री अवार्ड और स्लोवानिया में इंटरनेशनल मरीजा वेरा पेंटिंग प्रतियोगिता में बटरफ्लाई कॉन्टेस्ट में गोल्ड जीता। स्कूल में 'गोल्डन गर्ल' के नाम से जानी जाने वाली अलीशा ने संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से आयोजित इंटरनेशनल डे ऑफ चाइल्ड प्रतियोगिता में दूसरा स्थान पाया। वह कहती है कि मन के भाव को जब कागज पर उकेरती हूं, तो संतुष्टि मिलती है।
ओस के पैरों की थिरकन में है जादू
दयालबाग में रहने वाली ओस गायन, वादन और नृत्य की दुनिया में खासी पहचान बना चुकी हैं। मां वर्षा सत्संगी बताती हैं कि तबले पर जब उसकी अंगुलियां चलती हैं, तो बड़े-बड़े देखते रह जाते हैं। संगीत से एमए कर रही ओस ने देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी प्रतिभा से पुरस्कार झटके। वह बताती हैं कि बचपन से जो ठाना, उसे दृढ़ निश्चय से पूरा किया। इस समय वह मुंबई में एक प्रतियोगिता में देश के टॉप टेन में शामिल हैं। बीते दिनों एफएम 92.7 की इस प्रतियोगिता में पूरे प्रदेश में पहला स्थान हासिल किया था।
विदेशी धरती शुभ्रा ने छेड़े सुर
ताजनगरी की शुभ्रा तालेगांवकर को वैसे तो संगीत अपने पिता केशव तालेगांवकर और बाबा रघुनाथ तालेगांवकर से विरासत में मिला है। लेकिन इस विरासत को सहेजा उन्होंने अपने बूते है। आगरा में चालीस से अधिक प्रतियोगिताओं में पुरस्कार लेने वाली शुभ्रा ने देश के विभिन्न हिस्सों में भी शुभ्रा प्रोग्र्राम कर ताज का मान बढ़ाया। चीन, फ्रांस, पेरिस, बीजिंग, शंघाई में भी संगीत के कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोगों को दीवाना बना दिया। शुभ्रा बताती हैं कि चंडीगढ़ से उन्होंने संगीत भास्कर की डिग्र्री ली। संगीत को ही जीवन में रमा लिया है।
एक सच यह भी: सोशल मीडिया युवाओं का कर रहा 'अनसोशल'
बचपन से शांत स्वभाव की आस्था (बदला नाम) कुछ महीनों से काफी चिड़चिड़ी हो गई है। दोस्तों के बीच रहने के बजाय अधिकांश समय मोबाइल पर ही बिताना पसंद करती है। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगती है। वहीं बीटेक का छात्र आकाश (बदला नाम) सिर्फ इसलिए तनाव में रहता है कि वह सोशल मीडिया पर आज क्या नया पोस्ट करे, ताकि उसे अधिक लाइक और कमेंट मिलें। सोशल मीडिया में अधिक सक्रिय रहने की वजह से युवाओं में तनाव बढ़ता जा रहा है।
युवाओं में सोशल मीडिया पर समय बिताना अब उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। इससे होने वाले तनाव का असर उसकी पढ़ाई और उनके प्रदर्शन पर भी पड़ रहा है। साइकोथेरेपिस्ट विवेक पाठक ने बताया कि युवाओं का अधिकांश समय अब मोबाइल के साथ बीत रहा है। युवा सोशल मीडिया पर जितना समय बिताते हैं उतना अपनों के साथ नहीं बिताते। ऐसे में सोशल मीडिया का असर उनके स्वास्थ्य पर भी पडऩे लगा है। हाल ही में हुए शोध में पता चला है कि सोशल मीडिया पर सकारात्मक बातचीत की तुलना में नकारात्मक पोस्ट ज्यादा होती हैं। युवाओं पर इसका सबसे अधिक होता है।
मोबाइल के अधिक उपयोग से होते हैं यह नुकसान
मोबाइल के अधिक उपयोग करने के दौरान आंखों पर प्रभाव, गर्दन एवं हाथ में दर्द, नींद न आना सहित अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आती है। इससे पढ़ाई पर भी विपरीत असर पड़ता है। इन सभी बातों का हमारे करियर पर प्रभाव पड़ सकता है।
मोबाइल से तनाव के यह हैं कारण
- बैटरी खत्म होने पर तनाव
- नेटवर्क न आने और इंटरनेट बंद होने पर तनाव
- फोटो पर कम लाइक्स की टेंशन
- फोन खो जाने पर नम्बर खोने का तनाव
कैसे होता है असर
जब कोई व्यक्ति किसी काम को बार-बार करता है तो दिमाग में मौजूद न्यूरोन उस पैटर्न को आदत बना देते है। सोशल मीडिया पर शुरुआत में बिताए जाने वाले कुछ मिनट का बाद में आदत बनकर घंटों में बदल जाते है। कुछ समय बाद लोगों को सोशल मीडिया की लत लग जाती है। सोशल मीडिया से दूर रहने पर उन्हें बैचेनी महसूस होती है।
कैसे पाएं अवसाद से छुटकारा
रोजाना एक्सरसाइज करने से शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक विचारों से निजात मिलती है। अवसाद ग्रस्त होने पर खुद को कुछ नया करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। आप चाहें तो हॉबी क्लास भी ज्वाइन कर सकते हैं। तनाव में लोग खुद को दूसरों से अलग कर लेते हैं। इससे यह अवसाद और हावी हो जाता है। ऐसे समय में आपको जितना हो सके अपनों के साथ समय बिताना चाहिए।