हर वोट कुछ कहता है: आधी आबादी के हक की मांगों को कितनी मिली आवाज
दैनिक जागरण के हर वोट कुछ कहता है कार्यक्रम में नारी शक्ति ने किया मंथन। शहर के विकास के महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से रखी राय।
आगरा, जागरण संवाददाता। देश की आधी आबादी के सशक्तीकरण की बात तो बहुत हुई, लेकिन महिलाओं की समस्या और उनके बीच के मुद्दों का कितना समाधान हुआ? उनकी कितनी पैरवी हुई? आंकड़ों के पीछे की हकीकत क्या है? इन सब विषयों पर बात हुई, तो दिल की बात जुबां पर आ गई। महिलाओं ने हर मुद्दे पर बेबाकी से अपनी बात रखी और चुनावी मुद्दों में खुद की मांगों को आखिरी से पहले पायदान पर लाने की मांग मजबूती से उठाई।
मौका था दैनिक जागरण के सिकंदरा स्थित कार्यालय में हुए 'हर वोट कुछ कहना है, मेरा शहर-मेरा सांसद' कार्यक्रम का। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाली महिलाओं ने अपने मुद्दों को न सिर्फ उठाया, बल्कि उनके समाधान की अपेक्षा भी भावी सांसद से की। सभी ने माना कि शहर का विकास जरूरी हैं, लेकिन महिला सशक्तीकरण सिर्फ बातों में न हो। पहले की तुलना में महिला अपराध में कमी आई और हालात सुधरे, लेकिन गुंजाइश अब भी बाकी है। उन्हें सशक्त करने की बात हकीकत से ज्यादा कागजों में नजर आती है। महिला अपराधों के साथ घरेलू ङ्क्षहसा पर भी रोक आवश्यक है। वहीं बच्चों को नौकरी के लिए बाहर न जाना पड़े, इसलिए रोजगार, आईटी सिटी और एयरपोर्ट जैसी मूलभूत मांग भी उनके प्रमुख मुद्दों में शामिल रहे। सभी ने माना कि जो प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं, उनमें से जीतने वाले से जितने सवाल-जवाब हों, उतनी ही जिम्मेदारी हारने वालों की भी तय हो, ताकि मजबूत विपक्ष तैयार हो।
भावी सांसद से की अपेक्षाएं
कार्यक्रम में मौजूद हर महिला ने एक-एक संकल्प पत्र भरा। अपनी प्राथमिक मांगों और मुद्दों को लिखकर समाधान की उम्मीद की।
चिंता न करें, हर मांग को मिलेगी आवाज
कार्यक्रम की अध्यक्षता दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर उमेश शुक्ल ने की। उन्होंने कहा कि नवरात्र के तीसरे दिन नारी शक्ति को देखकर प्रसन्न हैं। समस्याएं तो हमेशा रहेंगी, माना उन्हें खत्म नहीं कर सकते, लेकिन समाधान की दिशा में निरंतर प्रयास करना ही होगा। आपको बुलाने का मकसद भी यही है कि भावी सांसद को आपके मुद्दों से अवगत कराकर उनका निस्तारण कराया जाए।
हम सशक्त, तो असहाय क्यों
उन्होंने कहा कि महिलाएं सशक्त हैं, यह तय बात है, तो फिर हक मांगने की क्या जरुरत। हमें अपने अंदर देखकर खुद को झिझोडऩा होगा। झांसी की रानी और कल्पना चावला भी खुद को अकेला मानती, तो कैसे देश का नाम रोशन करतीं। हम में प्रतिरोध करने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। आप बोलेंगे, तो आपके खिलाफ अपराध भी खुद आधे हो जाएंगे। संभव नहीं कि हर महिला के पीछे पुलिसकर्मी हो, लेकिन आत्मरक्षा और आत्मविश्वास को हथियार बनाकर वह किसी भी मुश्किल से लड़ सकती हैं। हां गंभीर समस्या है, तो एक आवाज दीजिए, सहयोग करने को आपके भाई जरूर आ जाएंगे।