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Tantra Ke Gan: मरीजों और तीमारदारों की सेवा में 20 वर्ष से मगन हैं आगरा की रश्मि, पढ़ें कैसे एक हादसे ने बदल दी जिंदगी

तंत्र के गणः दो दशक पहले हुए एक हादसे ने बदल दी शहर के उद्यमी की पत्नी की जिंदगी। मरीजों और उनके तीमारदारों की सेवा में समर्पित की जिंदगी। हरीपर्वत के आजाद नगर खंदारी निवासी रश्मि मगन लेदर उद्यमी अनिल मगन की पत्नी हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 20 Jan 2021 09:46 AM (IST)Updated: Wed, 20 Jan 2021 09:46 AM (IST)
Tantra Ke Gan: मरीजों और तीमारदारों की सेवा में 20 वर्ष से मगन हैं आगरा की रश्मि, पढ़ें कैसे एक हादसे ने बदल दी जिंदगी
विगत 20 वर्षाें से सरकारी अस्पताल में मरीजों की सेवा करने वालीं रश्मि मगन।

आगरा, जागरण संवाददाता। कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों। शहर के लेदर उद्यमी की पत्नी रश्मि मगन ने भी कुछ यही किया। करीब 24 वर्ष पहले हुए एक हादसे ने उनकी जिंदगी को एक उद्देश्य दे दिया। उन्होंने मरीजों और उनके तीमारदारों के लिए सस्ता भोजन मुहैया कराना अपना अपनी जिंदगी का उद्देश्य बना लिया। रश्मि इसमें 20 वर्ष से मगन हैं, उनकी यह शुरूआत एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुकी है।

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हरीपर्वत के आजाद नगर खंदारी निवासी रश्मि मगन, लेदर उद्यमी अनिल मगन की पत्नी हैं। रश्मि ने बताया कि उनके परिवार के सदस्य के साथ वर्ष 1996 में एक हादसा हुआ। इसके चलते उन्हें एक महीने तक सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटने पड़े। इस दौरान उन्होंने वहां इलाज के लिए दूर-दराज से आने वाले मरीजों और उनके तीमारदारों की तकलीफों को नजदीक से देखा। उनके घर से जो खाना आता था। वह उसे मरीजों और उनके तीमारदारों में बांट देती थीं। मरीजों के लिए सबसे ज्यादा समस्या, परहेज वाला खाना, दूध, दलिया और गरम पानी एवं चाय की थी। सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए आने वाले अधिकांश लोग आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। ऐसे में उनके तीमारदारों के लिए इस सबका इंतजाम करना इतना आसान नहीं होता।

उन्होंने एसएन में इलाज के लिए आने वाले मरीजों के बारे में कुछ करने की सोची। परिवार के लोगों को इसके बारे में बताया। परिवार ने भी उनका हौसला बढ़ाया और सहयोग किया। इसके बाद दो दशक पहले उन्होंने एसएन मेडिकल कालेज जाना शुरू किया। वह अपने साथ खाने के दो बड़े टिफिन लेकर जाती थीं। विभिन्न वार्ड में भर्ती मरीजों और उनके तीमारदारों को यह खाना देतीं। इससे उन्हें आत्मिक संतुष्टि मिलती।इस बीच उनके परिचितों को इसके बारे में पता चला तो वह भी अपने यहां से खाना तैयार करके उन्हें देते। जिसे वह रोज दिन में एसएन में जाकर बांट देती थीं।

रश्मि मगन के मुताबकि उन्होंने वर्ष 2004 में इसे संगठित रूप से करने के लिए संकल्प चैरिटेबिल इंस्टीट्यूशन नाम से संस्था बनाई।

वर्ष 2007 में एसएन के तत्कालीन प्राचार्य ने मरीजों के प्रति उनका समर्पण देखकर मेडिकल कालेज परिसर में ही कैंटीन चलाने को जगह दी।इसके बाद यह मरीजों के लिए उन्हें घर से खाना बनाकर नहीं लाना पड़ता है। कैंटीन में सुबह चाय और दलिया निशुल्क मिलता है। मरीजों और उनके तीमारदारों के लिए पांच रुपये में थाली दी जाती है। करीब 14 साल पहले शुरू हुई यह कैंटीन एसएन के साथ ही शहर में भी अपनी पहचान बना चुकी है।

कोरोना काल में भी जारी रहा सेवा का सिलसिला

मरीजों और उनके तीमारदारों की सेवा का यह सिलसिला कोरोना काल में भी नहीं रुका। मरीजों को सुबह चाय और दलिया निशुल्क देना जारी रहा। एसएन में दूर-दराज से आने वाले मरीजों और उनके तीमारदारों के लिए रश्मि मगन किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं। यहां के डाक्टर से लेकर स्टाफ तक मरीजों के प्रति उनके सेवा भाव के कायल हैं। 


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