अच्छाइयां आत्मसात करें, बुराइयां भाग जाएंगी, विजयदशमी आज
दशहरा पर लें सादगी शुचिता मर्यादा और नैतिकता का संकल्पसबसे बड़ा दुश्मन कोरोना सतर्कता और सावधानी से करना है नाश जल और पर्यावरण संरक्षण जैसे सरोकारों के प्रति भी रहना होगा संजीदा
रविवार को दशहरा है। इस दिन बुराई के प्रतीकस्वरूप दशानन का पुतला दहन होगा। ये अवसर विजयादशमी यानी काम, क्रोध, लोभ, मोह, दंभ जैसी आसुरी शक्तियों पर संस्कार, नैतिकता, सच्चाई, सहयोग जैसी दैवीय संस्कृति की विजय का पर्व है, तो स्वधर्म (सादगी, शुचिता, मर्यादा, नैतिकता) के अनुपालन का संकल्प दिवस भी। कोरोना वायरस की भयावहता के दौर से हम गुजर रहे हैं, संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है। सतर्कता और सावधानी बरतने का संकल्प लें ताकि हम सुरक्षित और आप भी। समाज और प्राकृतिक संपदा का भावनात्मक रिश्ता निराला है। मानव सहित समस्त जीव मात्र की सुरक्षा के लिए हम प्रकृति की रक्षा के प्रति संकल्पित हों। आए दिन ही भ्रूण हत्या, छेड़छाड़, दुष्कर्म जैसी जघन्य घटनाएं विचलित अवश्य करती होंगी। बेटी बचाओ, महिला सुरक्षा जैसे सामाजिक सरोकारों को आत्मसात करना है। जातिवाद और सांप्रदायिकता का जहर घोलकर कुत्सित मंसूबे पूरे करने वालों से सतर्क रहना है। तो आइए, हम बुराइयों का नाश करें और अच्छाइयों को आत्मसात करें। 1-मास्क जरूर लगाएं
कोरोना वायरस से बचाने वाली वैक्सीन भले ही ट्रायल पीरियड में है, मगर सटीक उपचार नहीं खोजा जा सका है। विज्ञानियों ने एक ही रास्ता सुझाया है, वायरस को रोकना है तो मास्क लगाना है। चूंकि दुनिया के कई देशों में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है, भारत भी इस आसन्न खतरे से बाहर नहीं है। त्योहारी सीजन है, बाजार में भीड़ उमड़ेगी। ऐसे में विज्ञानियों की सलाह मानना ही हितकर है। मास्क लगाएं, खुद बचें औरों को भी बचाएं। 2-करते रहें सैनिटाइजेशन
लाकडाउन का वो दौर आप भूले नहीं होंगे। बाजार से कोई भी खाद्य सामग्री लाने पर उसे गुनगुने पानी में धोते थे। बार-बार हाथ धोते थे। कोई परिचित घर आए तो उसके हाथ सैनिटाइज कराते थे। अब हम बेफिक्र हो गए हैं। अनलाक भले ही हो, मगर कोरोना संक्रमण से बचने को हमें सतर्कता लाकडाउन की तरह ही बरतनी होगी। हमें उसी तरह से सैनिटाइजेशन पर पूरा ध्यान रखना होगा। घर लौटने पर हाथ धोने की आदत छोड़नी नहीं है। खाद्य सामग्री को कुछ देर धूप में रखना, पानी से धोना है। अभी खतरा टला नहीं है। जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक ढिलाई नहीं बरतनी है। 3-जहरीली न होने दें हवा
कुछ महीने पहले का दौर याद करें। जब आकाश नीला नजर आने लगा था। छत पर खड़े होकर हमारी आंखें दूर का नजारा साफ देख लेती थीं। चिड़ियों की चहचहाहट फिर सुनने को मिल रही थी। अब ऐसा नहीं है। सबसे बड़ा कारण, खेत में फसल के अवशेष (पराली) को जलाना है। विज्ञानी निरंतर आगाह कर रहे हैं, सरकार हिदायत दे रही है, कानून सख्त है। बावजूद इसके कुछ किसानों की आंखें नहीं खुल रही हैं। उन्हें शायद ये पता नहीं कि जलती पराली से उठता धुआं आसमान से निगरानी कर रहे सैटेलाइट से चुगली कर देता है। और तब, उन पर कानून का शिकंजा कस जाता है। इसलिए कानून का पालन करने और पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए जरूरी है कि पराली न जलाएं। उसे गोशाला में दे दें, गायों का पेट भरेगा। 4-शहर को सफाई पसंद है
अपने घर का दरवाजा साफ रहे, पड़ोसी से क्या लेना-देना। ये सोच बदलनी होगी। अपना घर ही नहीं, आस-पड़ोस में भी सफाई के लिए जागरूकता लानी है। हर शहर में स्वच्छता का आकलन किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर नियमित रूप से इसकी मानीटरिग होती है और बाकायदा अंक भी मिलते हैं। एटा और कासगंज सहित ब्रज के कुछ शहर ही हैं जो स्वच्छता की सीढ़ी पर निरंतर चढ़ रहे हैं। संकल्प लें कि हमें अपने शहर को स्वच्छ बनाना है। 5-पानी बचाना है
जल ही जीवन है। जल पर संकट है। ये दो वाक्य पानी की उपयोग और दुरुपयोग की स्थिति को दर्शाते हैं। आम दिनचर्या में हम कितना पानी बर्बाद करते हैं, आभास नहीं होता। मगर, ये सत्य है। सबमर्सिबल पंप से कार को धोते हैं, पालतू पशु को नहलाते हैं। पानी का अंधाधुंध दोहन भूगर्भ जलस्तर को निरंतर नीचे गिरा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण धरती का सीना छलनी कर लगाई जा रहीं सबमर्सिबल पंप है। अपने जिले की हालत ही देख लें तो पता चलेगा कि डार्क जोन की संख्या बढ़ती जा रही है। कोई भी ऐसा ब्लाक नहीं है जो डार्क से ग्रे में आया हो। 6-हरियाली बचाएं, खुशहाली लाएं
कुल आबादी के 33 फीसद क्षेत्रफल में हरियाली होने का मानक है। इस मानक को पूरा करने के लिए हर वर्ष सरकारी विभागों द्वारा लाखों पौधे रोपे जाते हैं। सामाजिक संगठन और हरियाली के संरक्षक लोग भी पौधारोपण करते हैं। अगर ये पौधारोपण हकीकत में होता तो आज पर्यावरण की स्थिति ही कुछ और होती। कहीं कागजों पर पौधे रोप दिए गए तो कहीं देखभाल के अभाव में पौधे मर गए। जिंदगी के लिए पेड़-पौधे बहुत जरूरी हैं। ये हमें न केवल आक्सीजन देते हैं बल्कि पर्यावरण को शुद्ध भी रखते हैं। हमें ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपने हैं। निरंतर पौधों की देखभाल एक बच्चे की तरह से करनी होगी। तभी वृक्ष बनकर वे हमें जिंदगी दे पाएंगे। 7-जूठन न छोड़ें
संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (एएफओ) की वर्ष 2015 में जारी रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर रोज 19.4 करोड़ लोग भूखे सोते हैं। रिपोर्ट ने हालांकि भारत में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में कमी आने के संकेत दिए हैं, मगर ये प्रगति काफी नहीं है। हमें भुखमरी के हालात बचाने होंगे। आमतौर पर देखा जाता है कि दावत हो या होटल, व्यंजनों से पूरी प्लेट भर लेते हैं, आधा खाते हैं, आधा छोड़ देते हैं। ये जूठन कूड़े में फेंक दी जाती है। अगर हम जितना खाएं उतना ही प्लेट में लें तो खाना कूड़े में न फेंकना पड़े। हो सकता है कि इससे भूखे लोगों का पेट भरने का इंतजाम हो जाए।
8-बनें बुढ़ापे की लाठी
बुजुर्गो के बीच काम कर रही एक संस्था के सर्वे की बात करें तो भारत में 42 फीसद बुजुर्ग अपने भरण पोषण के लिए आज भी काम कर रहे हैं। दिल्ली में बाबा का ढाबा हो या आगरा में कांजी बड़े वाले बाबा और रोटी वाली अम्मा, हम हर रोज ऐसे बुजुर्ग देखते होंगे जो ढलती उम्र में अपना पेट भरने के लिए पसीना बहाते हैं। कोई रोटी बेचता है तो कोई रिक्शा खींचता है। हमें ऐसे बुजुर्गो के स्वाभिमान के साथ जीने पर दाद तो देनी होगी, जरूरत पर उनकी मदद भी करनी होगी। आगरा में कांजी बड़े वाला बाबा और रोटी वाली अम्मा शहर के लोगों की मदद से ही अब गर्दिश के दिन भूल चुकी हैं। मुरझाए चेहरे खिल गए हैं। हम ऐसे बुजुर्ग को तलाशें और मदद कर उनके बुढ़ापे की लाठी बनें। 9-बेटी बचाओ
भारत में लिंगानुपात की बात करें तो वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार, प्रत्येक एक हजार पुरुषों पर 940 महिलाएं थीं। लाख कोशिशों के बाद भी लिंगानुपात नहीं बढ़ पाया। वर्ष 2014-16 के दौरान लिंगानुपात 898 था। वर्ष 2015-17 के दौरान ये 896 पर आ गया था। नवमी पर कन्या पूजन किया गया। आप ये जानकर ताज्जुब करेंगे कि शहर की एक कालोनी में 50 परिवारों में कन्याओं को ढूंढ़ना पड़ा। सिर्फ चार कन्याएं थीं। ये कड़वी सच्चाई है जिसे स्वीकारना होगा और सबक लेना होगा। कन्या भ्रूण हत्या को रोकना होगा। लड़का-लड़की में भेद नहीं करना है। लड़की अब किसी से कम नहीं हैं, न किसी से पीछे। दुनिया का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां लड़कियों ने परचम न फहराया हो। 10-संभल कर चलें, सुरक्षित चलें
आंकड़ों के मुताबिक देश में वर्ष 2019 में सड़क दुर्घटनाओं में करीब 1.49 लाख लोगों की जान चली गई। जो वर्ष 2018 के मुकाबले 1600 कम थी। सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि जानलेवा हादसे राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग के साथ ही छोटी सड़कों पर हुए। हादसों में सबसे ज्यादा मौत दोपहिया वाहन चालकों की हुई। मरने वालों में 18 वर्ष से 45 वर्ष की आयु वर्ग के लोग ज्यादा थे। कहने का आशय ये है कि हम सड़क पर चलते समय यातायात का पालन करें। खुद सुरक्षित रहें और आसपास वाले वाहन को भी सुरक्षित सफर करने दें। हेलमेट लगाने, सीट बेल्ट बांधने जैसी जरूरी बातों का ध्यान रखें। यातायात नियमों का पालन करें। क्योकि घर पर आपका इंतजार रहता है।