विजय दिवस आज: बाह के तीन रणबांकुरों ने पाकिस्तान के छुड़ा दिए थे छक्के Agra News
1971 के युद्ध में पाकिस्तान से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे राजबहादुर। महावीर सिंह और राधेश्याम ने भी लिया था मोर्चा।
आगरा, जागरण संवाददाता। 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में पाक को धूल चटाने में बाह के रणबांकुरों ने भी अपना योगदान दिया था। फतेहापुरा के शहीद राजबहादुर भदौरिया ने दुश्मन के बंकर में जाकर तिरंगा फहराया था। महावीर सिंह और राधेश्याम भदौरिया दुश्मन के छक्के छुड़ाकर लौटे थे।
शहीद राजबहादुर कश्मीर में तैनात थे। युद्ध में बहादुरी का परिचय देते हुए वह दुश्मन के बंकर में जा घुसे और उस पर तिरंगा फहरा दिया। लेकिन, पाक सैनिकों ने उन्हें घेर लिया। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दुश्मन से लड़ते रहे। कई गोलियां उनके सीने में जा लगीं और वह शहीद हो गए। आज भी सब लोग उनके पराक्रम को याद करते हैं।
जख्मी होने के बाद भी मैदान ए जंग में डटे रहे महावीर
सेना से रिटायर्ड बड़ागांव के महावीर सिंह गोलियां लगने के बाद भी मोर्चे पर डटे रहे थे और दुश्मनों को मौत के घाट उतारने के बाद ही दम लिया था।
बड़ागांव के 83 वर्षीय महावीर सिंह भदौरिया 1963 में सेना में भर्ती हुए थे। 1965 में पाकिस्तान 67 में चीन से युद्ध लड़ा। जब 1971 में पाकिस्तान से फिर युद्ध हुआ तो वह बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराने वाली सेना का हिस्सा बने। वह बताते हैं कि युद्ध के दौरान दुश्मन की गोली उनकी दाहिनी बांह को पार करती हुई निकल गई। खून से उनकी वर्दी लाल हो गई थी। तभी दूसरी गोली सिर को छूती हुई निकली, सिर में भी खून आया, लेकिन मोर्चा नहीं छोड़ा। करीब दस मिनट तक दुश्मनों को गोलियों से जबाव दिया। इसी बीच तीसरी गोली उनके बाएं पैर में लगी। लड़खड़ाए, जमीन पर गिरे, फिर अपने आप को संभाला। पहाड़ी का सहारा लिया और दुश्मन के ऊपर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। खून से लथपथ लड़ते रहे। जब पाक सेना के समर्पण की घोषणा हुई तो झूम उठे साथियों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया। महावीर सिंह के शौर्य से प्रेरित होकर बेटा विक्रम सिंह भदौरिया और पोता दीपक सिंह भी वायुसेना में रह कर देश की सेवा कर रहे हैं।
अकेले राधेश्याम ने ध्वस्त किये थे पाक के दस बंकर
बाह क्षेत्र के चित्रहाट क्षेत्र के गांव नवीनपुरा-खिच्चरपुरा निवासी राधेश्याम भदौरिया 1969 में 15 राजपूत रेजीमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। वह बताते हैं कि भर्ती होने के बाद 1971 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ तो उनकी तैनाती पंजाब बार्डर पर थी। डेरावाला और मौजम पोस्ट पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया, तो उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ दुश्मन की सेना पर हमला किया और दोनों पोस्ट मुक्त कराईं। दुश्मन के दस बंकर भी ध्वस्त किए। उस समय सबकुछ भूल कर केवल देश की रक्षा और दुश्मनों को धूल चटाना दिमाग में था। तीन से चार दिन तक खाना नहीं मिला। जब पता चला कि हमने दुश्मन को परास्त कर दिया है तो सभी साथी खुशी से उछल पड़े थे। सेवानिवृत राधेश्याम भदौरिया बताते हैं कि रिटायरमेंट के बाद उन्होने अपने चार बेटों को सेना में भेजा। बेटा सत्येंद्र भदौरिया सूबेदार पद से रिटायर हो गया है। छोटा सुखवीर सिंह, उससे छोटा इंद्रेश सिंह और सबसे छोटा कुलदीप सेना में सेवाएं दे रहे हैं।
बेटे और नाती भी सेना में
शहीद की पत्नी कलावती ने बेटे रमेश और सुरेश को भी सेना में भेजा। बेटों केसाथ अपने नातियों में भी सेना में जाने का जच्बा इस कदर भरा कि वह भी तिरंगे को सलाम करने से खुद को रोक नहीं सके। रमेश का बेटा दीपक सेना में नायक के पद पर तैनात है। वहीं सुरेश का बेटा विवेक मर्चेट नेवी में है।
1971 के युद्ध में 13 दिन बंद रहा था ताज
दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताज का बेमिसाल सौंदर्य। इसकी एक झलक पाने को सात समंदर पार से सैलानी खिंचे चले आते हैं। वर्ष 1971 में एक समय ऐसा भी आया था, जब देश-दुनिया से आने वाले सैलानियों को दीदार-ए-ताज से महरूम रहना पड़ा था। ऐसा भारत-पाक युद्ध के दौरान ताज को काले कैनवास से ढकने से हुआ था। ताज में पर्यटकों का प्रवेश भी इस अवधि में निषेध रहा था। युद्ध में भारत की विजय के बाद ही स्मारक को सैलानियों के लिए खोला गया था।
वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान आगरा का एयरफोर्स स्टेशन पाकिस्तानी सेना के निशाने पर था। भारतीय सेना एक साथ दो मोर्चो पर लड़ रही थी। एक ओर पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) की मुक्ति को संग्राम छिड़ा था तो दूसरी ओर पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना को रोकना था। पांच दिसंबर की रात पाकिस्तान की वायुसेना ने एयरफोर्स स्टेशन पर हमला किया था। कीठम बेस की ओर से आए पाकिस्तानी विमान ने एयरफोर्स स्टेशन पर बम गिराए थे। दो बम एयर फील्ड पर गिरने से वहां गड्ढा हो गया था। चांदनी रात में ताज के अधिक ऊंचाई से भी नजर आने की वजह से उसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा ढकवा दिया गया था। सभी कर्मचारियों को स्मारक को ढकने में लगा दिया गया था।