अपनाएंगे ये उपाए तो बदलते मौसम में दे सकेंगे बीमारियों को मात
मौसम का यह बदलाव कहलाता है संक्रमण काल। घरेलू उपचार का प्रयोग कर बच सकते हैं इस मौसम में होने वाली बीमारियों से।
आगरा[जेएनएन]: गर्मियों की विदाई और सर्दियों का आगमन। ऋतु परिवर्तन का यह दौर यूं तो सुखद लगता है लेकिन मन को सुखद लगने वाला ये मौसम जरा सी लापरवाही के चलते मुसीबत भी बन सकता है। आयुर्वेदाचार्य डॉ. कविता गोयल के अनुसार मौसम के इस बदलाव को संक्रमण काल कहा जाता है। यानि पहली ऋतु के अंतिम सात दिन और नई ऋतु के शुरूआती सात दिन संक्रमण के दिन कहलाते हैं।
ऋतु परिवर्तन के इन दिनों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है।
खान पान दुरुस्त न रहने के कारण विभिन्न तरह का वायरल या पेट संबंधित बीमारियों की चपेट में आसानी से आ जाते हैं। खान पान में थोड़ी सी सावधानी और घरेलू औषधियों का दैनिक जीवन में प्रयोग कई गंभीर रोगों से बचा सकता है।
ऋतु परिवर्तन बिगाड़ देता है वात- पित्त
डॉ. कविता बताती हैं कि ऋतु परिवर्तन के दौरान वात और पित्त से संबंधित परेशानियां अधिक रहती हैं।
इस सीजन में अलग- अलग का बुखार शरीर को तोड़ता है। इसकी वजह से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। शरीर में संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है। यह एक से दूसरे व्यक्ति में भी फैलता है। पानी से संबंधित रोग, पित्त प्रधान रोग जैसे पीलिया आदि रोग अधिक होते हैं।
वायरल के लक्षणों को जानें
गले में दर्द, खांसी, सिर दर्द, थकान, जोड़ों में दर्द के साथ ही उल्टी और दस्त होना, आंखों का लाल होना और माथे का बहुत तेज गर्म होना आदि।
आयुर्वेदिक उपचार है अधिक कारगार
वायरल बुखार में आयुर्वेद में दो तरह से इलाज किया जाता है। तेज बुखार को सबसे पहले कम करके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखते हैं। यदि अंग्रेजी दवाओं के साथ भी आयुर्वेदिक उपचार लेते रहें तो वायरल, डेंगू, चिकिनगुनिया आदि के बाद के दुष्प्रभाव जैसे शरीर के जोड़ों में दर्द और कमजोरी को रोका जा सकता है। रस रसायन औषधियां तत्कालीन आराम देती हंै।
गिलोय बचाए वायरल से
नीम की गिलोय या बाजार में मिलने वाला अर्क गिलोय को प्रतिदिन हर व्यक्ति को पीना चाहिए। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है। संक्रमण के प्रभाव से बचे रहेंगे।
हल्दी और सौंठ का पाउडर, तुलसी, मेथी का पानी आदि घरेलू उपचार वायरल में बचाव की औषधी हैं।
पित्त की बीमारी से बचाएगी स्वच्छता
इस मौसम में अधिकांशत: बीमारियां पानी की अस्वच्छता से होती है। पानी उबाल कर पीएं। सब्जियां बहते हुए पानी में अच्छी तरह धोकर ही प्रयोग में लाएं। दूषित पानी की वजह से पेट संबंधित बीमारियां अधिक होती हैं।
पेट साफ जरूर रखें, कब्ज न होने दें। बासी खाने का प्रयोग न करें, अधिक मिर्च मसाले और तेल चिकनाई का प्रयोग भी न करें।
तेज धूप में सुखाएं कपड़ें
इस मौसम में अक्सर कपड़ों में नमी बनी रहती है, इससे खुजली आदि संक्रमण हो सकते हैं। इसलिये कपड़ों को तेज धूप में सुखाएं। विशेषकर अंदरूनी वस्त्र जरा भी सीले हुए न पहनें। 15 दिन में एक बार बच्चों के अंत:वस्त्रों को गर्म पानी में से निकालें ताकि कीटाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाएं।
तौलिया हों अलग- अलग
परिवार के प्रत्येक व्यक्ति की तौलिया अलग- अलग होनी चाहिए। ताकि एक व्यक्ति का संक्रमण दूसरे में न जाए।
नीम की पत्तियां हैं रामबाण
यदि परिवार में किसी को त्वचा रोग से संबंधित बीमारी है तो नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर, ठंडा करने के बाद स्नान कराएं। यदि शरीर पर किसी तरह के चकत्ते आदि दिख रहें हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
रसोई में छुपा है औषधियों का खजाना
हमारी रसोई में भी औषधियों का भंडार है। जुकाम में तुलसी का सेवन, खांसी के लिए मुलेठी चूर्ण शहद में मिलाकर, जोड़ों के दर्द के लिए अश्वगंधा चूर्ण रात को एक चम्मच दूध से लेकर सोएं। पेट साफ करने के लिए त्रिफला चूर्ण या मुनक्का का दूध से सेवन करें।