यूपी विधानसभा चुनाव में ब्रज के बागी बदल सकते हैं हार− जीत का समीकरण, पढ़ें विस्तृत रिपोर्ट
UP Assembly Election 2022 भाजपा सपा-रालोद गठबंधन की बढ़ रही मुश्किलें। भाजपा के लिए आगरा मथुरा में बड़ी चुनौती बनी हुई है तो अलीगढ़ और मथुरा में सपा-रालोद गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। बसपा और कांग्रेस में गतिरोध खुलकर सामने नहीं आ रहा है।
आगरा, अम्बुज उपाध्याय। राजनीतिक दलों ने अपने सूरमाओं को सूबे के रण में उतारने का जैसे-जैसे ऐलान किया है, तो संगठन में बगावती सुर उठते जा रहे हैं। दावेदारी कर रहे दिग्गज निर्दलीय मैदान में उतरने को तैयार हैं, तो कुछ समर्थकों के साथ चिंतन कर रहे हैं। पहले चरण में ब्रज की आगरा, मथुरा, अलीगढ़ जिलों की सीट पर मतदान है, जिससे अभी दूसरे जिलाें में खींचातान तो हैं, लेकिन विरोध, पत्ते खुलने के बाद समाने आएगा। भाजपा को कई सीटों पर अपनों से ही जूझने की स्थिति है, तो सपा, रालोद गठबंधन के सामने भी विरोध के सुर उठ रहे हैं। बसपा और कांग्रेस में गतिरोध खुलकर सामने नहीं आ रहा है।
भाजपा के लिए आगरा, मथुरा में बड़ी चुनौती बनी हुई है, तो अलीगढ़ और मथुरा में सपा-रालोद गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। आगरा में पूर्व सांसद प्रभुदयाल कठेरिया के सुर तल्ख हो गए हैं। वे बेटे के लिए आगरा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से भाजपा से दावेदारी कर रहे थे। पूर्व सांसद वर्ष 1991 में पहली बार फिरोजाबाद लोकसभा सीट से सांसद बने और 1996 और 1998 में भी वहीं से सांसद रहे हैं। इसके बाद वे कांग्रेस में चले गए और वर्ष 2009 में आगरा लोकसभा से चुनाव लड़े, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा ज्वाइन की और टिकट के दावेदार थे। टिकट नहीं मिलने पर वे शांत रहे, लेकिन अब वे अपने बेटे के लिए आगरा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी कर रहे थे। पार्टी ने मौजूदा विधायक हेमलता दिवाकर कुशवाह का टिकट काट राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बेबीरानी मौर्य को मैदान में उतार दिया, बेटे को टिकट न मिलने से आहत होकर पूर्व सांसद ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया और सोमवार को बेटे का नामांकन कराने कलक्ट्रेट पहुंच गए। इसके बाद बेटे ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ले ली और पार्टी ने अपने प्रत्याशी का टिकट बदल उन्हें मैदान में उतार दिया है। खेरागढ़ विधानसभा क्षेत्र भी भाजपा के लिए चुनौती बनी हुई है, यहां से पार्टी छोड़ कर एनजीओ प्रकोष्ठ के ब्रजक्षेत्र अध्यक्ष दिगंबर सिंह धाकरे निर्दलीय मैदान में आ गए हैं। उन्होंने अपने गृह क्षेत्र खेरागढ़ से राजनीति की शुरुआत कर वर्ष 2002 में निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार का सामना करना पड़ा था। उन्हें हिंदू महासभा का समर्थन भी रहा था। इसके बाद वे वर्ष 2003 में बसपा से जुड़े अौर वर्ष 2017 में आगर नगर निगम से मेयर के प्रत्याशी रहे। इस चुनाव में वे 1.43 लाख वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे। लाेकसभा चुनाव से पहले वे भाजपा में आए और तीन वर्ष से पार्टी में थे। वे केंद्रीय राज्यमंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल के करीबी भी है। फतेहपुर सीकरी विधानसभा क्षेत्र पार्टी ने पूर्व मंत्री चौधरी बाबूलाल को मैदान में उतारा है। यहां से सर्वाधिक विरोध के सुर उठ रहे हैं। पार्टी के कई पुराने दिग्गज अपनी ताल ठोकने को तैयार है, तो समर्थकों के साथ चिंतन कर रहे हैं। भाजपा किसान मोर्चा ब्रजक्षेत्र अध्यक्ष प्रशांत पौनिया अपना 24 साल का राजनीतिक समर्पण बता समर्थकों के साथ गांव-गांव संपर्क के बाद कोई निर्णय लेने की बात कह रहे हैं, तो पूर्व जिलाध्यक्ष जितेंद्र फौजदार का कहना है कि समर्थक कह रहे हैं कि पार्टी आपको अवसर नहीं दे रही तो आप निर्दलीय मैदान में आए। वे वर्ष 2012 में प्रत्याशी रहे थे, लेकिन हार का सामना करना पड़ा था। यहां अगर कोई खुलकर मैदान में नहीं आया तो पार्टी को आंतरिक विरोध बहुत अधिक झेलना होगा। वहीं एत्मादपुर पर मौजूदा विधायक रामप्रताप सिंह चौहान का टिकट काट पार्टी ने हाल ही में पार्टी में आए सपा के पूर्व विधायक डा. धर्मपाल को मैदान में उतारा है। विधायक रामप्रताप का टिकट कटने पर समर्थकों ने विरोध जताया है, तो उनके समर्थन में बूथ, मंडलाध्यक्ष सहित अन्य कार्यकर्ताओं के 300 से अधिक इस्तीफे हो चुके हैं। ये मामला अभी थमा नही था कि पार्टी को शिक्षक प्रकोष्ठ के संयोजक वीरेंद्र सिंह चौहान ने अलविदा कह दिया। वे बागी होकर मैदान में आ रहे थे, कि सपा-रालोद गठबंधन ने उन्हें अपना प्रत्याशी बना दिया है। आगरा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से सपा-रालोद गठबंधन से टिकट मांग रहे पूर्व विधायक कालीचरन सुमन ने टिकट नहीं मिलने पर जिलाध्यक्ष कुसुम चाहर पर गंभीर आरोप लगाए हैं। वे भी अपने समर्थकों के साथ चिंतन कर रहे हैं, अगर बात बनी तो मैदान में उतरेंगे।
मथुरा के मांट विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांग रहे पार्टी के पुराने नेता एसके शर्मा तो मंगलवार को पार्टी छोड़ने का ऐलान करते हुए मीडिया के सामने फफक पड़े। उन्हाेंने कहा मेरे साथ धोका हुआ है। वे भी अपने समर्थकों के साथ चिंतन कर रहे है, अगर मैदान में आए तो पार्टी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी करेंगे। वे वर्ष 2017 में मांट से प्रत्याशी रहे थे, लेकिन हार का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2019 में उन्होंने लोकसभा टिकट की दावेदारी की थी, लेकिन नहीं मिलने पर शांत बैठे थे। मांट में सपा-रालोद गठबंधन की मुश्किल भी कम नहीं है। सपा मुखिया अखिलेश यादव के नजदीकी संजय लाठर और रालोद के योगेश नौहवार में टकराव की स्थित बन रही है। इस सीट से वर्ष 2012 में जयंत चौधरी चुनाव लड़े थे, वे सीट को अपने पास रखना चाहेंगे, जबकि सपा ने संजय लाठर को बी फार्म जारी कर दिया है। वहीं योगेश नौहवार ने सोमवार को नामंकन कर दिया है।
अलीगढ़ में कोल और छर्रा सीट पर सपा-रालोद गठबंधन में गतिरोध मुश्किल खड़ी कर रहा है। कोल से पार्टी ने सलमान शाहिद को प्रत्याशी घोषित किया। फिर उनका टिकट काटकर अज्जू इश्हाक को दे दिया गया। पूर्व विधायक जमीर उल्लाह भी प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। टिकट नहीं मिलने से दोनों के समर्थक सड़क पर आ गए। विरोध के बीच पार्टी नेतृत्व ने अज्जू को बी फार्म देकर अपना इरादा साफ कर दिया। उधर, छर्रा सीट पर लक्ष्मी धनगर को टिकट देकर पार्टी ने नया प्रयोग किया। माना जा रहा है कि ये प्रयोग सभी सीटों पर बघेल समाज के वोट साधने के लिए किया गया। लेकिन, इससे दावेदारी कर रहे पूर्व विधायक राकेश सिंह और पूर्व ब्लाक प्रमुख तेजवीर सिंह के समर्थक नाराज हो गए। तेजवीर सिंह के समर्थक ने तो लखनऊ में पार्टी कार्यालय के बाहर आत्मदाह का प्रयास किया, अब ये चुनौती बने हुए हैं। बरौली विधानसभा सीट से भाजपा ने जयवीर सिंह को मैदान में उतारा तो दावेदार हेमवंत के सुर तल्ख हो गए। उन्होंने पार्टी छोड़ मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया और क्षेत्र की जनता के लिए अपना आठ वर्ष का सेवा कार्य बताया। वे रघुराज सिंह उर्फ राजा भैया की जनसत्ता दल लोकतांत्रतिक पार्टी में शामिल हो गए हैं। वे अब जनसत्ता दल का प्रत्याशी बन पार्टी की मुश्किल खड़ी करेंगे।