UP Chunav 2022: फिरोजाबाद सीट, जहां सपा का अपनों ने ही बिगाड़ा गणित, पढ़ें कैसे दौड़ेगी साइकिल
UP Assembly Election 2022 1993 में मुलायम शिकोहाबाद सीट से लड़े तो जिले की चारों सीटों पर विजय पताका फहराई और मुलायम सूबे के सीएम बने। इसके बाद फिरोजाबाद सपा का गढ़ बन गया। लगातार तीन बार लोकसभा में सपा जीती और उनके पुत्र अखिलेश भी सांसद बने।
आगरा, डा.राहुल सिंघई। यूपी की सियासत के धरती पुत्र का सुहागनगरी से जमीनी नाता रहा। शिकोहाबाद का एके कालेज आज भी मुलायम की शिक्षा और कुश्ती की कहानियां सुनाता है। मुलायम के लिए यहां की सियासी जमीन काफी उर्वरक रही। रिश्तेदारियों के माध्यम से धरती पुत्र ने अपनी सियासी पकड़ मजबूत की। इसका उदाहरण है कि जब 1993 में मुलायम शिकोहाबाद सीट से लड़े तो जिले की चारों सीटों पर विजय पताका फहराई और मुलायम सूबे के सीएम बने। इसके बाद फिरोजाबाद सपा का गढ़ बन गया। लगातार तीन बार लोकसभा में सपा जीती और उनके पुत्र अखिलेश भी सांसद बने। 2017 में पारिवारिक कलह के बाद दरका सपा के सियासी गढ़ में अब वापसी चुनौती बन रही है। मुलायम के रिश्ते भी दरकने लगे हैं।
कड़ाके की सर्दी के बीच जिले में तीसरे चरण में होने वाले मतदान के लिए सियासी पारा गरमाने लगा है। राम मंदिर आंदोलन के बाद सपा के गढ़ के रूप में स्थापित हुई सियासत के को अपने ही चुनौती दे रहे हैं। देश के सबसे बड़े आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस के किनारे के खेतों में लहलहाती सरसों की फसल के साथ सियासी दलों के दावे खिलखिलाने लगे हैं। कोई जातीय गणित के आंकड़ों पर दावे कर रहा है तो कोई पिछड़ों के वोट के गणित से चुनाव का अगड़ा बनने का गणित लगा रहा है। जिले की नई नवेली सिरसागंज विधानसभा को जहां सपा का अभेद्य गढ़ कहा जाता था, वहीं इस गढ़ के सपा के सूरमा रहे मुलायम सिंह के समधी हरिओम यादव पाला बदल अब कमल खिलाने की तैयारी में हैं। हालांकि करहल से सपा सुप्रीमो अखिलेश के मैदान में उतरने के बाद यहां भी चुनौती कड़ी है। वहीं पुराने समाजवादी रघुवरदयाल वर्मा के पौत्र और पूर्व विधायक ओमप्रकाश वर्मा भाजपा के बागी डा.मुकेश वर्मा के पार्टी में प्रवेश के बाद पार्टी को अलविदा कहकर भाजपा की टिकट से चुनावी मैदान में हैं। वहीं डा.मुकेश वर्मा साइकिल पर सवार होकर चुनाव लड़ रहे हैं। इन दो विधानसभाओं में चुनौती यही दलबदल बन रहा है। सपा को पुष्पित और पल्लवित होने के गवाह रहे शिकोहाबाद के प्रसिद्ध साहित्यकार मंजर उल वासै कहते हैं कि सैफई परिवार के रिश्तों से मजबूत हुई सपा रिश्तों के दरकने के कारण ही चुनौतियों का सामना कर रही है। 2017 के बाद टूटे रिश्तों को नई डोर से जुड़ने की उम्मीदें नजर आ रही थीं, लेकिन ऐसा हो न सका। दल बदल से नए दावेदार भी समीकरण उलझा सकते हैं।
खेतों को जानवरों से बचाने के लिए साड़ियों से घेराबंदी करने वाले किसान बेसहारा गोवंश के उत्पात को मुद्दा बताते नजर आ रहे हैं। तो वहीं गैर यादव मतदाता विकास के आगे इसे तवज्जो देता नजर नहीं आ रहा। आगरा कानपुर हाईवे पर शिकोहाबाद से जाने वाले जसराना के रास्ते सपा का गढ होने की बयानी देते हैं। सपा के गठन के बाद हुए विस के छह चुनावों में जसराना में सपा का परचम चार बार लहराया। मगर अबकी बार नए चेहरे को लेकर पार्टी में विरोध के सुर चले तो भाजपा ने दांव बदलते हुए विधायक रामगोपाल का टिकट काटकर भाजपा जिलाध्यक्ष मानवेंद्र को मैदान में उतार दिया है। फरिहा के चीनी और गुड़ कारोबारी छेत्रपाल कहते हैं कि 2014 के बाद राजनीति बदल गई है। अब गढ़ नहीं विकासवाद चल रहा है, ऐसे में सपा को चुनौती तो झेलनी ही पड़ेगी। वहीं पुराने समाजवादी व रिटायर्ड प्रधानाचार्य 70 वर्षीय रामनाथ यादव कहते हैं कि अब सपा नेताजी वाली नहीं रही। कार्यकर्ताओं के सम्मान वाली पार्टी आधुनिक हो गई है और पिछले चुनावों में पार्टी ने इसी का खामियाजा भुगता है। वोटों के गणित से बसपा के लिए मुफीद मानी जाने वाली बसपा टूंडला सीट पर अबकी बार हाथी के पुराने साथी सपा से मैदान में हैं। क्षेत्र के कोटला गांव में चाट की दुकान चलाने वाले दिनेश कुशवाहा अपनी अलग बात करते हैं। कहते हैं कि पहले वोट का आधार दूसरा होता था, लेकिन अब बिजली पानी और सुरक्षा का मुद्दा हावी है। महंगाई मायने नहीं रखती, क्योंकि सबको कुछ न कुछ मिला है। मतदाता जागरूक है और दलों को चुनौती देने को तैयार भी।
अपनों के खाई सपा ने मात
मुलायम और अखिलेश का चला था जादू, बहू को मिली थी मात
अपने गढ़ में सपा अपनों से ही मात खाती रही। 1993 में शिकोहाबाद से लड़े मुलायम का ऐसा जादू चला कि चारों सीटें सपा ने जीतीं। इसके बाद 2009 में अखिलेश यादव की साइकिल दौड़ी। दो सीटों से लड़े अखिलेश ने फिरोजाबाद सीट छोड़ी तो उनकी पत्नी डिंपल मैदान में उतरी। मगर पुराने सपाई रहे सिने अभिनेता राजबब्बर ने मात दे दी।
शिवपाल ने बिगाड़ दिया 2019 में खेल
हमेशा अपनों का शिकार हुई सपा 2019 में भी मात खा गई। 2014 की मोदी लहर में सपा के राष्ट्रीय प्रमुख महासचिव प्रो.रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय लोस का चुनाव जीते। 2019 में सपा-बसपा गठबंधन में मजबूत माने जा रहे अक्षय के सामने चाचा शिवपाल खुद मैदान में कूद पड़े। अक्षय जहां 22 हजार वोट से हारे, वहीं शिवपाल को 90 हजार वोट मिले।