Lockdown 3.0: बेजुबान भी समझने लगे छोटी दीदियों की जुबान, पढ़ें दो सहेलियों की कैसी है अनूठी सेवा
भूख से परेशान बेजुबानों के लिए सामान जुटाती हैं श्रीनगर की दो सहेलियां। हर घर से लेती हैं दो-दो रोटियां और बचा हुआ खाना जुटती है जानवरों की भीड़।
फीरोजाबाद, डॉ. राहुल सिंघई। वे उम्र में जितनी छोटी है सोच में उतना ही बड़प्पन है। कोरोना के लॉकडाउन के दिन बढ़ने के साथ-साथ एक तरफ बेबसी और लाचारी बढ़ती तो बेजुबान पीछे छूटते गए। भटकते बेजुबानों काे देख फीरोजाबाद में श्रीनगर कॉलोनी की दो बेटियों ने पहल की तो वे बेजुबानों की छोटी दीदियां बन गईं। दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली दो सहेलियां ने सेवा का नया अध्याय रच डाला। शाम ढलने के साथ दोनों मुहल्ले में थैला लेकर घूमती हैं और हर घर से रोटियां जुटाती हैं। इसके बाद रात को गली के बाहर बेजुबानों को अपने हाथ से रोटियां खिलाकर लौटती हैं। यह सिलसिला लॉकडाउन पार्ट-2 से जारी है।
जलेसर रोड पर श्रीनगर शहर का पुराना मुहल्ला है। यहां दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली गुनगुन शर्मा और बुलबुल शर्मा रहती हैं। लॉकडाउन पार्ट टू शुरू होने से पहले तक ये दोनों सहेलियां आम बेटियों की तरह थींं, लेकिन उसके बाद इनकी पहल ने इन्हें खास बना दिया। गली मुहल्लों में भटकते भूखे जानवरों को देखकर दोनों ने खाना जुटाने की योजना बनाई। पहले अपने-अपने घर से दो-दो रोटियां और बची हुई खाद्य सामग्री ली और शाम को जाकर गाय और श्वान को खिला आईं। इसके बाद मुहल्ले के हर घर से दो रोटियां लेने की योजना बनाई। गुनगुन बताती हैंं कि बेजुबान पशु तो बोल नहीं सकते कि वे भूखे हैं। बस यही सोचकर मैंने अपनी सहेली के साथ मिलकर खाना जुटाना शुरू किया। शाम को मम्मी और भाई के साथ वह अपनी सहेली के साथ गईं और गाय और श्वानों को खाना देकर लौटींं। इसके बाद सिलसिला शुरू हो गया। गुनगुन की मम्मी और परिवार वालों ने बेटियों का साथ दिया। अब सुबह ठेल वाले से सस्ती सब्जी भी ले लेती हैंं। गुनगुन और बुलबुल बताती हैंं कि अब बेजुबान जानवर भी उनके आने का इंतजार करते हैं। ठीक समय पर वे वहां पहुंच जाते हैं और हम दोनों उन्हें हाथों से रोटी और हरी सब्जियां खिलाते हैं। इस काम से बड़ा अच्छा लगता है।
समझदारी दिखाती और सिखाती हैं बेटियां
रोटी जुटाने के लिए निकलते समय दोनों सहेलियां चेहरों पर मास्क लगाकर निकलती हैं और हाथ में ग्लब्ज भी पहनती हैं। घरों से रोटी लेते समय शारीरिक दूरी का भी पूरी तरह पालन करती हैं। दोनों परिवार अपनी बेटियों की इस पहल की सराहना तो करते हैं, साथ ही मुहल्ले वाले भी इन्हें सम्मान से देखने लगे हैं।