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यहां किन्‍नर भी निभाते हैं मोहर्रम की रस्‍मों- ओ- रिवाज, 32 वर्षों से रख रहे ताजिया Agra News

ख्वासपुरा और आजम पाड़ा से निकलते हैं किन्नरों के ताजिया। मुराद पूरी होने पर 32 वर्ष से जारी है गुरु की परंपरा।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 12:19 PM (IST)Updated: Mon, 09 Sep 2019 11:01 PM (IST)
यहां किन्‍नर भी निभाते हैं मोहर्रम की रस्‍मों- ओ- रिवाज, 32 वर्षों से रख रहे ताजिया Agra News
यहां किन्‍नर भी निभाते हैं मोहर्रम की रस्‍मों- ओ- रिवाज, 32 वर्षों से रख रहे ताजिया Agra News

आगरा, सुबान खान। क्या जलवा करबला में दिखाया हुसैन ने, सजदे में जाकर सिर कटाया हुसैन ने। नेजे पे सिर था और जुबां पे अय्यातें, कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने। हजरत इमाम हुसैन के सफर को बयां करतीं ये पंक्तियां हर शख्स गुनगुनाता रहा है। अब हजरत इमाम हुसैन की याद-ए-शहादत (शहादत की याद ) किन्नरों की इबादत बन गई है।
ताजनगरी के ख्वासपुरा और आजम पाड़ा में वैसे तो मुस्लिम समुदाय काफी तादात में है, लेकिन यहां रहने वाले किन्नरों की मुराद ऐसी पूरी हुई कि उन्होंने मुहर्रम मनाना शुरू कर दिए। ख्वासपुरा में हरी बाई ने वर्ष 1987 में ताजिया रखने का सिलसिला शुरू किया था, लेकिन इसका सबसे ज्यादा सवाब मासूम बच्चों को दिया जाता है। जिस प्लाट को हरी बाई ने खरीदा था, उस पर छोटे बच्चे मेहंदी (ताजिया का छोटा रूप) रखते थे। हरी बाई ने वहां पर तो मकान बना लिया, लेकिन बच्चों की परंपरा को बंद नहीं किया। उन्होंने 32 वर्ष पूर्व रस्म-ओ-रिवाज के साथ ताजिया रखा। यहां पर गली-मुहल्ले ही नहीं, बल्कि शहरभर से लोग पहुंचते हैं। लंगर तस्कीम होता है। शाहगंज के आजम पाड़ा में किन्नरों की ताजिया की कहानी वाकई मन्नतों से जुड़ी है। करीब बीस बरस पहले हाजी पदमा की गुरु फिरोज ने किसी ताजिया पर जाकर मुराद मांगी थी। मुराद पुरी हुई, तो फिरोज ने उसी दिन ताजिया रखने की ठानली ली। आठ वर्ष पूर्व फिरोज का तो इंतकाल हो गया है, लेकिन उनकी मुराद से शुरू यह सिलसिला अब हाजी पदमा ने संभाल रखा है।

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मुहल्ले के लोग करते हैं जियारत
जमाते अब्बासी हिंदू के सचिव मुनव्वर हुसैन अब्बासी ने बताया कि किन्नरों के ताजिया की सभी धर्मो के लोग जियारत करते है। नौ मुहर्रम को ताजिया पर हुजूम उमड़ता है। दस मुहर्रम को ताजिया ख्वाजा की सराय स्थित करबला में सुपुर्द-ए-खाक किए जाते हैं। इनके ताजिया की खास बात ये है कि करबला में मुहल्ले के लोग लेकर जाते हैं। किन्नर उनके साथ जाते हैं, लेकिन करबला में दफन नहीं करते हैं।

पहली मुहर्रम को छोड़ते हैं चारपाई
किन्नर हरी बाई ने बताया कि मुहर्रम की पहली तारीख को ही चारपाई छोड़ देते हैं। सभी लोग नीचे बैठते और सोते हैं।

देवी की मूर्ति भी
दुर्गा पूजा पर पंडाल सजाकर देवी की अराधना करते हैं। हरी बाई ने बताया कि इस मौके पर देवी की मूर्ति स्थापित करते हैं। हिंदू समुदाय के लोग यहां पर पूजा करने आते हैं।


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