आगरा के ताजगंज में है मुमताज की मांं का उपेक्षित मकबरा, पर्यटकों को नहीं हो पाती पहचान
दीवान जी बेगम के मकबरे तक पहुंचने को रास्ता भी मयस्सर नहीं। आसपास हो चुके हैं अवैध निर्माण पर्यटकों को नहीं है जानकारी। मुमताज के मकबरे के दीदार को तो दुनियाभर से सैलानी आते हैं लेकिन उसकी मां के मकबरे पर स्थानीय लोग भी नहीं जाते।
आगरा, जागरण संवाददाता। शहंशाह शाहजहां ने जिस मुमताज की याद में दुनिया का सबसे सुंदर मकबरा ताजमहल बनवाया था, उस मुमताज की मां का मकबरा ताजगंज के बिल्लोचुपरा में उपेक्षित है। मुमताज के मकबरे के दीदार को तो दुनियाभर से सैलानी आते हैं, लेकिन उसकी मां के मकबरे पर स्थानीय लोग भी नहीं जाते। यहां पहुंचने को सही रास्ता भी उपलब्ध नहीं है।
ताजगंज के बसई मौजा के बिल्लोचपुरा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा संरक्षित स्मारक दीवान जी बेगम का मकबरा है। दीवान जी बेगम ख्वाजा ग्यासउद्दीन काजवानी की बेटी, मुमताज महल की मां और शहंशाह शाहजहां की सास थीं। उनका मकबरा उनके पति आसिफ खां द्वारा बनवाया गया था। मुगलकालीन दोहरे गुंबद वाले मकबरे की तरह यह बना हुआ है। इसका ऊपरी गुंबद नहीं है, समय के साथ यह कभी क्षतिग्रस्त हो गया था। उसकी केवल दीवारें बची हैं। आंतरिक कक्ष में और ऊपर कोई कब्र नहीं है। नींव की दीवार के निशानों से यह पता चलता है कि इसे वर्गाकार प्लेटफार्म पर बनाया गया था। इसके गेट पर ताला लगा रहता है और यहां एएसआइ का कोई कर्मचारी भी नहीं रहता। अगर यहां कोई पहुंच जाए तो आसपास कोई उचित साइनेज नहीं होने से मकबरे के बारे में जानकारी भी नहीं मिल पाती है।
ताजमहल के बाद हुआ निर्माण
मुमताज की मौत के बाद शाहजहां ने ताजमहल का निर्माण वर्ष 1631 से 1648 के दौरान कराया था। एएसआइ के अनुसार दीवान जी बेगम का मकबरा और उसके नजदीक स्थित मस्जिद का निर्माण आसिफ खां द्वारा 1677 में कराया गया था।
वर्ष 2014 में हुआ था संरक्षण
एएसआइ ने वर्ष 2014 में दीवान जी बेगम के मकबरे का संरक्षण कराया था। तब मकबरे के चारों ओर चहारदीवारी कराई गई थी। उसके ऊपर ग्रिल लगाई गई थी। इससे पूर्व असामाजिक तत्वों का स्मारक में डेरा लगा रहता था। वर्ष 2019 में स्मारक की चहारदीवारी से सटाकर तबेला बना दिया गया था। तब एएसआइ ने थाना ताजगंज में तहरीर दी गई थी।