Migrated Birds: आगरा में झील के किनारों पर घटने लगी मेहमान परिंदों की संख्या
सूर सरोवर पक्षी विहार में अक्टूबर से आने शुरू हुए थे प्रवासी पक्षी। फरवरी के अंतिम सप्ताह में अपने वतन को होते हैं रवाना। ग्रेटर फ्लेमिंगो ग्रे लैग गूज बार हेडेड गूज टफ्टिड डक ब्लैक टेल्ड गेडविट नोर्दन शोवलर कामन टील आदि प्रजातियों ने डाला था यहां डेरा।
आगरा, सुबान खान। मेहमानों परिंदों से गुलजार दिखने वाले कीठम झील के किनारे धीर-धीरे सूने होने लगे हैं। दूर देश से पहुंचकर जलक्रीड़ा से मंत्रमुग्ध करने वाले प्रवासी पक्षी अब अपने वतन लौटने की प्रक्रिया में हैं। सैकड़ों की संख्या में दिखने वाली बार हेडेड गूज की संख्या भी सिमटती जा रही है।
रामसर साइट में शुमार कीठम स्थित सूर सरोवर पक्षी विहार की झील (कीठम झील) दो माह पहले 70 प्रजातियों के पक्षियों से गुलजार थी। यहां दूर देश के प्रवासी पक्षियों ने बसेरा बनाया था। सुबह-सुबह पक्षी झील के पानी की लहरों संग खेलकर भोजन का इंतजमा करते थे। फिर दिनभर किनारों पर बैठकर धूप का आनंद लेते थे, लेकिन जैसे-जैसे सर्दी कम होती जा रही है। वैसे-वैसे झील के किनारे खाली होते जा रहे हैं। ये सारे पक्षी नार्थ और सेंट्रल एशिया से उड़ान भरते हैं।
प्रवासी और अप्रवासी पक्षियों की प्रजाति
ग्रेटर फ्लेमिंगो, ग्रे लैग गूज, बार हेडेड गूज, टफ्टिड डक, ब्लैक टेल्ड गेडविट, नोर्दन शोवलर, कामन टील, यूरेशियन कूट, पाइड एवोसेट, रिवर टर्न, नोर्दन पिनटेल, कामन पोचार्ड, गेडवाल, ब्लैकविंग स्टिल्ट, स्पाट विल्ड डक, लेशर विशलिंग डक, स्पूनविल डक, बुड सेंडपाइपर, कामन सेंडपाइपर, मार्श सेंडपाइपर, ग्रीन शेंक, लिटिल रिंग्ड प्लोवर, केटिंश प्लोवर, पेंटेड स्टार्क, टैमिनिक स्टिंट, काम्ब डक, रेड क्रिस्टिड पोचार्ड, व्हाइट टेल्ड लेपविंग, वेगटेल, कामन रेडशेंक, रूफ, कामन स्नाइप, नोर्दन पिनटेल, स्पोटिड ईगल, मार्श हैरियर, कामन पिनटेल, रैड शेंक, बूली नेक्ड स्टार्क, ब्लैक हेडेड आइबिश, ग्रे हेरोन, पर्पल हेरोन, ब्लैक बिग्ड स्टिल्ट, डार्टर, सारस क्रेन, ब्लैक नेक्ड स्टार्क, ब्लूथ्रोट, टैनी पिपिट, ट्री पिपिट, ब्लिथ रीड बैबलर, ट्राई कलर मुनिया, चेस्टनट मुनिया, ग्रेट कोर्मोरेन्ट, ग्रेट इग्रिट, इंटरमीडिएट इग्रिट आदि।
फरवरी के अंत तक वापस
झील में सर्दी के समय प्रवासी और अप्रवासी पक्षियों की संख्या बढ़ती है। दूर देश के प्रवासी पक्षी अक्टूबर की शुरुआत में आने लगते हैं और फरवरी के अंतिम सप्ताह तक ठहरते हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार यहां से लौटकर पक्षी घोंसला बनाकर तैयार करते हैं। उसके बाद जुलाई-अगस्त में नेस्टिंग की प्रक्रिया में प्रवेश कर जाते हैं। अक्टूबर तक उनके बच्चे उड़ने की स्थिति में पहुंच जाते हैं।