श्राद्ध पक्ष 2019: पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने के दिन, जानिए विधान और प्रमुख तिथियां Agra News
13 सितंबर से आरंभ श्राद्ध पक्ष 28 सितंबर को होगा समाप्त। पितरों की मुक्ति के लिए विधि पूर्वक श्राद्ध कर्म है जरूरी।
आगरा, जागरण संवाददाता। श्राद्ध यानि श्रद्धा से जो दिया जाए। आश्विन मास, कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन पितृ पक्ष कहलाते हैं । जिनमें वंशज अपने पितरों की मृत्यु तिथि पर जल, तर्पण और उनके निमित्त ब्राह्मण भोजन, वस्त्र दानादि करते हैं। पितृ पक्ष पन्द्रह तिथियों का एक निश्चित समूह है जो श्राद्धों के के लिए सुनिश्चित किया गया है। पूर्वजों को तर्पण के लिए मनाए जाने वाले श्रद्ध पक्ष शुक्रवार से शुरू हो चुका है।
हिंदुओं में व्यक्ति के गर्भधारण से लेकर मृत्यु तक अनेक प्रकार के संस्कार किए जाते हैं। उसके बाद अपने पितृों के लिए श्रद्ध करने का दायित्व उनके परिजनों का होता है। वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को पितृों की पुण्य तिथि पर श्रद्ध कर्म किया जा सकता है, लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्रद्ध करने का विधान है। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्रद्ध पक्ष कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवपूजा से पहले व्यक्ति को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। धर्म वैज्ञानिक पं. वैभव जोशी के अनुसार पितृों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजुर्गो का सम्मान और मृत्यु के उपरांत श्रद्ध कर्म किए जाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता भी है कि यदि विधि अनुसार पितृों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है। शुभ कार्य करने से पहले पितृों का आह्वान किया जाता है।
धर्म वैज्ञानिक पं. वैभव जोशी
क्या है मान्यता
पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि माना जाता है कि श्राद्ध का आरंभ होते ही पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए पृथ्वी लोक पर आते हैं इसलिए जिस दिन उनकी तिथि होती है उससे एक दिन पहले संध्या समय में दरवाजे के दोनों ओर जल दिया जाता है जिसका अर्थ है कि आप अपने पितर को निमंत्रण दे रहे हैं और अगले दिन जब ब्राह्मण को उनके नाम का भोजन कराया जाता है तो उसका सूक्ष्म रुप पितरों तक भी पहुंचता है। बदले में पितर आशीर्वाद देते हैं और अंत में पितर लोक को लौट जाते हैं। ऎसा भी देखा गया है कि जो पितरों को नहीं मनाते वह काफी परेशान भी रहते हैं।
क्या है विधान
पितृ पक्ष श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन से पहले 16 ग्रास अलग-अलग चीजों के लिए निकाले जाते हैं जिसमें गौ ग्रास तथा कौवे का ग्रास मुख्य माना जाता है। मान्यता है कि कौवा आपका संदेश पितरों तक पहुंचाने का काम करता है। भोजन में खीर का महत्व है इसलिए खीर बनानी आवश्यक है। भोजन से पहले ब्राह्मण संकल्प भी करता है। जो व्यक्ति श्राद्ध मनाता है तो उसके हाथ में जल देकर संकल्प कराया जाता है कि वह किस के लिए श्राद्ध कर रहा है। उसका नाम, कुल का नाम, गोत्र, तिथि, स्थान आदि सभी का नाम लेकर स्ंकल्प कराया जाता है। भोजन के बाद अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को वस्त्र तथा दक्षिणा भी दी जाती है।
यदि किसी व्यक्ति को अपने पितरों की तिथि नहीं पता है तो वह अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकता है और अपनी सामर्थ्यानुसार एक या एक से अधिक ब्राह्मणों को भोजन करा सकता है। कई विद्वानों का यह भी मत है कि जिनकी अकाल मृत्यु हुई है या विष से अथवा दुर्घटना के कारण मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए।
श्राद्ध 2019 तिथियां
13 सितंबर, शुक्रवार पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध
14 सितंबर, शनिवार पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध
15 सितंबर, रविवार पड़वा तिथि का श्राद्ध
16 सितंबर, सोमवार द्वितीया तिथि का श्राद्ध
17 सितंबर, मंगलवार तृतीया तिथि का श्राद्ध
18 सितंबर, बुधवार चतुर्थी तिथि का श्राद्ध
19 सितंबर, गुरुवार पंचमी तिथि का श्राद्ध
20 सितंबर, शुक्रवार छठी तिथि का श्राद्ध
21 सितंबर, शनिवार सप्तमी तिथि का श्राद्ध
22 सितंबर, रविवार अष्टमी तिथि का श्राद्ध
23 सितंबर, सोमवार नवमी तिथि का श्राद्ध
24 सितंबर, मंगलवार दशमी तिथि का श्राद्ध
25 सितंबर, बुधवार एकादशी तिथि का श्राद्ध
26 सितंबर, गुरुवार द्वादशी तिथि का श्राद्ध
27 सितंबर, शुक्रवार त्रियोदशी तिथि का श्राद्ध
27 सितंबर, शुक्रवार चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध
28 सितंबर,शनिवार अमावस्या तिथि का श्राद्ध
प्रतिदिन करें तर्पण
पंडित वैभव कहते हैं कि प्रतिपदा से अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष रहता है। पितृपक्ष में किये गए श्राद्ध से हमारे पितृ वर्षभर प्रसन्न रहते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध तो मृत्यु तिथियों पर ही होते हैं, लेकिन तर्पण नित्य करना चाहिए क्योंकि भूले- बिसरे सभी पितृ इससे तृप्त होते हैं।
विशेष है अमावस्या
यूं तो प्रत्येक अमावस्या पितृ कार्यों के लिए ही है किंतु अश्विन मास की अमावस्या पितरों की तृप्ति के लिए विशेष महत्वशाली होती है , क्योंकि इसे महालया या पितृ विसरजिनी अमावस्या भी कहते हैं। पितृ, जिनकी मृत्यु तिथि हमें ज्ञात नहीं, उनके निमित्त श्राद्ध, तर्पण आदि इस दिन सम्पन्न करते हैं और इसी दिन सभी पितरों का विसर्जन किया जाता है।
श्राद्ध करने से मिलने वाला फल
शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों के निमित पिंडदान करने वाला गृहस्थी दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, लक्ष्मी, सुख, मान और धन को प्राप्त करता है। पितृ कृपा से उसे शांति, सब प्रकार का सौभाग्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शनिवार को भी है पूर्णिमा
इस वर्ष 13 सितंबर से श्राद्धपक्ष शुरू होगा। प्रौढ़पदी पूर्णिमा का श्राद्ध 13, 14 सितंबर, शुक्र या शनिवार दोनों दिन कर सकते हैं। उदया पूर्णिमा शनिवार में प्रातः 9:45 तक रहेगी, जिसमें ही पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म निपटा लेना होगा।
श्रद्धासहित श्राद्ध करें
श्राद्ध नाम श्रद्धापरक है, श्रद्धारहित कर्म उल्टा फल देता है ।
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा भी है–
विधिहीनं सृष्टान्नम मन्त्रहीनं दक्षिणम ।
श्रद्धाविरहितं यज्ञम तामसँ परिचक्षते ।।
पितृस्तोत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि:।।
प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानस:।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुज:।।
पितृ स्तोत्र के अलावा श्राद्ध के समय “पितृसूक्त” तथा “रक्षोघ्न सूक्त” का पाठ भी किया जा सकता है। इन पाठों की स्तुति से भी पितरों का आशीर्वाद सदैव व्यक्ति पर बना रहता है।
पितृसूक्त
उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमा: पितर: सोम्यास:।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोsवन्तु पितरो हवेषु ।।
अंगिरसो न: पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगव: सोम्यास:।
तेषां वयँ सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम ।।
ये न: पूर्वे पितर: सोम्यासोsनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठा:।
तोभिर्यम: सँ रराणो हवीँ ष्युशन्नुशद्भि: प्रतिकाममत्तु ।।
त्वँ सोम प्र चिकितो मनीषा त्वँ रजिष्ठमनु नेषि पन्थाम् ।
तव प्रणीती पितरो न इन्दो देवेषु रत्नमभजन्त धीरा: ।।
त्वया हि न: पितर: सोम पूर्वे कर्माणि चकु: पवमान धीरा:।
वन्वन्नवात: परिधी१ँ रपोर्णु वीरेभिरश्वैर्मघवा भवा न: ।।
त्वँ सोम पितृभि: संविदानोsनु द्यावापृथिवी आ ततन्थ।
तस्मै त इन्दो हविषा विधेम वयँ स्याम पतयो रयीणाम।।
बर्हिषद: पितर ऊत्यर्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
त आ गतावसा शन्तमेनाथा न: शं योररपो दधात।।
आsहं पितृन्सुविदत्रा२ँ अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णो:।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पितृवस्त इहागमिष्ठा:।।
उपहूता: पितर: सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेsवन्त्वस्मान् ।।
आ यन्तु न: पितर: सोम्यासोsग्निष्वात्ता: पथिभिर्देवयानै:।
अस्मिनन् यज्ञे स्वधया मदन्तोsधि ब्रुवन्तु तेsवन्त्वस्मान्।।
अग्निष्वात्ता: पितर एह गच्छत सद: सद: सदत सुप्रणीतय:।
अत्ता हवीँ षि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिँ सर्ववीरं दधातन ।।
ये अग्निष्वात्ता ये अनग्निष्वात्ता मध्ये दिव: स्वधया मादयन्ते ।
तेभ्य: स्वराडसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयाति ।।
अग्निष्वात्तानृतुमतो हवामहे नाराशँ से सोमपीथं य आशु:।
ते नो विप्रास: सुहवा भवन्तु वयँ स्याम पतयो रयीणाम् ।।
रक्षोघ्न सूक्त ।
कृणुष्व पाज: प्रसितिं न पृथ्वीं याहि राजेवामवाँ२ इभेन ।
तृष्वीमनु प्रसितिं द्रूणानोsस्ताsसि विध्य रक्षसस्तपिष्ठै:।।
तव भ्रमास आशुया पतन्त्यनुस्पृश धृषता शोशुचान:।
तपुँ ष्यग्ने जुह्वा पतंगानसन्दितो वि सृज विष्वगुल्का:।।
प्रति स्पशो वि सृज तूर्णितमो भवा पायुर्विशो अस्या अदब्ध:।
यो नो दूरे अघशँ सो यो अर्न्तयग्ने मा किष्टे व्यथिरा दधर्षीत्।।
उदग्ने तिष्ठ प्रत्या तनुष्व न्यमित्राँ२ ओषतात्तिग्महेते।
यो नो अरार्तिँ समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यतसं न शुष्कम्।।
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याध्यस्मदाविष्कृणुष्व दैव्यान्यग्ने ।
अव स्थिरा तनुहि यातुजूनां जामिमजामिं प्र मृणीहि शत्रुन्।।
अग्नेष्ट्वा तेजसा सादयामि ।
“श्रद्धया दीयते यत्त तत्त श्राद्धम “
प्रगति में बाधक होते हैं पितृ दोष
पंचमुखी महादेव मंदिर के महंत पं. गिरीश अश्क कहते हैं कि ज्योतिषशास्त्र में पितृ दोष काफी अहम माना जाता है। जब जातक सफलता के नजदीक पहुंचकर भी सफलता से वंचित होता हो, संतान उत्पत्ति में परेशानियां आ रही हों, धन हानि हो रही हों तो पितृ दोष से पीड़ित होने की प्रबल संभावना रहती हैं। इसलिये पितृ दोष से मुक्ति के लिए भी पितृों की शांति आवश्यक मानी जाती है।
यमुना के घाटों पर होगा जल तर्पण
पितृ पक्ष में ब्राrाणों को भोजन कराने के अलावा यमुना में जल तर्पण करने का भी विधान है। पं. राधेश्याम श्रोत्रिय ने बताया कि पितृ पक्ष शुक्रवार से प्रारंभ हो रहे हैं। इस पखवाड़े में पितृों को जल तर्पण करने का भी विधान है। स्नान करने के बाद प्रात: जौ, तिल और चावल से कुश (घास) के माध्यम से पितृों को पवित्र जल का तर्पण किया जाता है। यह तर्पण बल्केश्वर और हाथी घाट पर खास तौर से पखवाड़े में प्रतिदिन लोग करेंगे।