Navratra 2021: आदिशक्ति के चौथे स्वरूप ने अंड रूप में की ब्रह्मांड की रचना, भूलकर भी न करें आज ये चार काम
Navratra 2021 मां कुष्मांडा की आराधना से दूर होती हैं व्याधियां। न बोलें किसी से आज के दिन अपशब्द। साथ ही छल कपट और प्रपंच जैसी बुराइयों से भी दूर रहना चाहिए। साथ ही माना जाता है कि देवी कुष्माण्डा सूर्य देव को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं।
आगरा, जागरण संवाददाता। शारदीय नवरात्रि में रविवार को देवी कुष्मांडा आदिशक्ति का चौथा स्वरूप की आराधना का दिन है। देवी भाग्वत पुराण में बताया गया है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार ही अंधकार था और सृष्टि बिल्कुल शून्य थी तब आदिशक्ति मां दुर्गा ने अंड रूप में ब्रह्मांड की रचना की। इसी कारण देवी का चौथा स्वरूप कूष्मांडा कहलाया। कूष्मांडा देवी सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली होने के कारण आदिशक्ति नाम से भी जानी जाती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि इनके तेज के कारण ही साधक की सभी व्याधियां यानी बीमारियां भी नष्ट हो जाती हैं और मनुष्य को बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा में मिष्ठान्न का भोग विशेष रूप से लगाना चाहिए। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार नवरात्र के चौथे दिन भूलकर भी किसी से अपशब्द नहीं कहने चाहिए। साथ ही छल, कपट और प्रपंच जैसी बुराइयों से भी दूर रहना चाहिए।
कौन है मां कुष्मांडा
पंडित वैभव बताते हैं कि माता को कुम्हड़े की बलि बहुत प्रिय है। मां कुष्माण्डा की आठ भुजाएं होने के कारण इन्हें अष्टभुजा वाली भी कहा जाता है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल, अमृत से भरा कलश, चक्र तथा गदा नजर आता है, जबकि आठवें हाथ में जप की माला रहती है। माता का वाहन सिंह है और इनका निवास स्थान सूर्यमंडल के भीतर माना जाता है। कहते हैं सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता अगर किसी में है तो वह केवल मां कुष्माण्डा में ही है। साथ ही माना जाता है कि देवी कुष्माण्डा सूर्य देव को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। परिवार में खुशहाली के लिए, अच्छे स्वास्थ्य के लिये और यश, बल तथा आयु की वृद्धि के लिये आज के दिन मां कुष्माण्डा का ध्यान करके उनके इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
'ऊं ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नम:'
ऐसे करें पूजा
दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कुष्मांडा की पूजा सच्चे मन से करना चाहिए। फिर मन को अनहत चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए। सबसे पहले सभी कलश में विराजमान देवी- देवता की पूजा करें। फिर मां कुष्मांडा की पूजा करें। इसके बाद हाथों में फूल लेकर मां को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें।
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु।
फिर मां कुष्मांडा के इस मंत्र का जाप करें
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां की पूजा के बाद महादेव और परमपिता ब्रह्मा जी की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद मां लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करें।
ध्यान
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्त्रोत पाठ
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥