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आगरा में दस माह की अबोध से दरिंदगी में अदालत ने सुनाया ये अहम फैसला, गवाह गया था मुकर

अपने पूर्व बयान से मुकर गया था मुकदमे के वादी का पिता। अदालत ने मेडिकल रिपोर्ट और डाक्टर के बयान के आधार पर दोषी को सुनाई आजीवन कारावास की सजा। इसके साथ ही दोषी को एक लाख रुपये के अर्थ दंड से दंडित भी किया गया है।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Tue, 23 Mar 2021 10:17 AM (IST)Updated: Tue, 23 Mar 2021 10:17 AM (IST)
आगरा में दस माह की अबोध से दरिंदगी में अदालत ने सुनाया ये अहम फैसला, गवाह गया था मुकर
अदालत ने दस माह की अबोध से दुष्‍कर्म के अभियुक्‍त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

आगरा, जागरण संवाददाता। आगरा की अदालत ने दस माह की अबोध से चार साल पहले हुई दरिंदगी में बड़ा अहम फैसला सुनाया है। मुकदमे के वादी का पिता गवाही से मुकर गया था। विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट की अदालत ने महिला चिकित्सक की रिपोर्ट और उसके बयान के आधार पर आरोपित को दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सजा सुनाई। इसके साथ ही दोषी को एक लाख रुपये के अर्थ दंड से दंडित भी किया।

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घटना 20 अगस्त 2016 की है। कागारौल थाना क्षेत्र निवासी सचिन दस माह की अबोध को उसके पिता की गोद से खिलाने के बहाने लेकर गया था। सचिन कुछ देर बाद अबोध को देने आया तो वह बुरी तरह से रो रही थी। उसके प्राइवेट पार्ट से खून निकल रहा था। अबोध के पिता ने सचिन पर उसके साथ अप्राकृतिक कृत्य करने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया था।

पुलिस ने आरोपित सचिन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करके अबोध काे मेडिकल के लिए भेजा। लेडी लायल की चिकित्सक ममता किरन ने अबाेध का परीक्षण किया। उनकी रिपोर्ट के अनुसार अबोध से अप्राकृतिक व प्राकृतिक दोनों तरह का दुष्कर्म किया गया था। आरोपित के नाबालिग होने के चलते शुरू में उसे किशोर न्याय बोर्ड भेजा गया। इसके बाद 28 जनवरी 2017 को किशोर न्यायालय ने आरोपित का विचारण व्यस्क अपराधी के रूप में किए जाने हेतु पत्रावली को विशेष न्यायाधीश पाक्साे एक्ट कोर्ट में भेज दी।

अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक विमलेश अानंद ने वादी मुकदमा, डाक्टर ममता किरन समेत छह गवाह अदालत में पेश किए।अबोध का बाबा अदालत में अपने पूर्व बयान से मुकर गया। आरोपित को क्लीन चिट देते हुए उसे पढ़ाई में होशियार बताया। बाबा का कहना था कि सचिन अबोध को उन्हें दे रहा था तो वह खूंटे पर गई, इससे उसे चोट लग गई थी।

घटना का कोई प्रत्यक्षर्शी और स्वतंत्र गवाह नहीं था। इसके बावजूद विशेष न्यायाधीश पाक्साे एक्ट वीके जैसवाल ने महिला चिकित्सक की रिपोर्ट और उसके बयान के आधार पर आरोपित को दोषी पाते हुए कहा कि उसका कृत्य दिल दहलाने वाला है। इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसा वीभत्स कृत्य समाज में भय उत्पन्न करने वाला है। विशेष न्यायाधीश ने आरोपित को अप्राकृतिक कृत्य व पाक्सो एक्ट के तहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास एवं एक लाख रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई। जुर्माने की पूरी धनराशि पीड़िता को दिलाने के आदेश दिए।  

दस महीने की अबोध की रोना ही भाषा होती है

अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस आयु की बच्ची इतनी निरीह होती है कि वह किसी भी दशा में बोल नहीं सकती। केवल रो ही सकती है। रोना ही उसकी भाषा होती है। रोने के आधार पर ही उनके माता-पिता उनके भूखा व प्यासा होने का संकेत प्राप्त करते हैं। आरोपित बच्ची को खिलाने ले जाता था। उसके द्वारा किया गया कृत्य अक्षम्य है। उसके अपराध को देखते हुए वह कड़ी से कड़ी सजा का पात्र है।


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