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49 वर्षों में तीसरी बार बंद हुआ है ताजमहल, पढ़ें CoronaVirus से पहले क्‍या रहीं हैं वजह

कोरोना के चलते 31 मार्च तक के लिए बंद किए गए हैं देशभर के सभी स्मारक। 1971 में भारत-पाक युद्ध व बाढ़ के समय हो चुका है बंद।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 17 Mar 2020 03:55 PM (IST)Updated: Tue, 17 Mar 2020 03:55 PM (IST)
49 वर्षों में तीसरी बार बंद हुआ है ताजमहल, पढ़ें CoronaVirus से पहले क्‍या रहीं हैं वजह
49 वर्षों में तीसरी बार बंद हुआ है ताजमहल, पढ़ें CoronaVirus से पहले क्‍या रहीं हैं वजह

आगरा, निर्लोष कुमार। दुनिया में तेजी से बढ़ रहे कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए ताजमहल समेत देशभर के सभी स्मारक और संग्रहालय 31 मार्च तक के लिए बंद कर दिए गए हैं। 49 वर्षों में यह तीसरा मौका है, जब ताजमहल बंद किया गया है। इससे पूर्व 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान यह करीब 15 दिन बंद रहा था। 1978 की बाढ़ में ताजमहल सात दिन बंद रहा था।

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सोमवार को केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के निर्देशों के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने ऐहतियातन ताजमहल समेत देशभर के स्मारकों व संग्रहालयों को बंद करने का निर्णय लिया। 17 से 31 मार्च तक ताज समेत अन्य स्मारक 15 दिन के लिए बंद रहेंगे। इससे पूर्व ताज 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान हवाई हमलों की आशंका को देखते हुए पर्यटकों के लिए चार दिसंबर से 18 दिसंबर तक बंद रहा था। सितंबर, 1978 में सितंबर में यमुना में आई बाढ़ के दौरान भी ताजमहल सात दिन बंद रहा था।

वर्ष 1971 में ताज के संरक्षण सहायक रहे (एएसआइ से सेवानिवृत्त हो चुके) एसके शर्मा बताते हैं कि ताज यमुना किनारा पर होने की वजह से बड़ी इमारत के रूप में हवाई जहाज से नजर आता था। पाकिस्तान के जहाज इसके आधार पर एयरफोर्स की दूरी का आकलन नहीं कर सकें, इसके लिए ताज को कवर से ढक दिया गया था। चार दिसंबर से 16 दिसंबर तक युद्ध हुआ था। इसके बाद दो दिन साफ-सफाई किए जाने से पर्यटकों को प्रवेश नहीं दिया गया था। तब पेड़ों की टहनियों से ताजमहल परिसर को घने जंगल का रूप दिया गया था, जिससे कि किसी को पता नहीं चले। उस समय अन्य स्मारक खुले रहे थे।

ताजमहल के संरक्षण सहायक रहे (सेवानिवृत्त हो चुके) आरके दीक्षित बताते हैं कि वर्ष 1974 में ताज में उनकी तैनाती हुई थी। वर्ष 1978 में यमुना में बाढ़ आई थी, तब वो स्मारक में केयरटेकर के पद पर तैनात थे। उस समय ताजमहल की यमुना किनारा बनी कोठरियों में पानी भर गया था। शहरवासी ताज से यमुना में पानी को देखा करते थे। तब ताजमहल को सात दिन बंद किया गया था।

15 दिन का संयोग

49 वर्ष पूर्व 1971 में ताजमहल को पहली बार 15 दिन के लिए बंद किया गया था। यह संयोग ही कहा जाएगा कि 49 वर्ष बाद जब ताज को कोरोना वायरस के लिए बंद किया गया है, तब भी वो 15 दिन बंद रहेगा।

नहीं हो पाएगा शाहजहां का उर्स

धवल संगमरमरी हुस्न का सरताज ताजमहल सूरज की रोशनी के साथ रंग बदलता है। ताजमहल (रोजा-ए-मुनव्वरा) सिर्फ मुहब्बत की निशानी ही नहीं, इसके कई रंग हैं। इन्हीं में से एक रंग है शाहजहां का उर्स। शहंशाह शाहजहां का उर्स हिजरी कैलेंडर के रजब माह की 25, 26 व 27 तारीख को मनाया जाता है। इस बार 21 से 23 मार्च तक शाहजहां का उर्स मनाया जाना था। उर्स में पहले दिन गुस्ल, दूसरे दिन संदल और तीसरे दिन चादरपोशी की रस्में होतीं। अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि ताजमहल बंद रहने से उर्स का आयोजन संभव नहीं हो सकेगा। मंगलवार सुबह उर्स को ताजमहल में बुलाई गई बैठक भी नहीं होगी।

1666 में हुई थी शाहजहां की मौत

औरंगजेब की कैद में आठ वर्ष बिताने के बाद शाहजहां की मौत वर्ष 1666 में हुई थी। एप्रूव्ड टूरिस्ट गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमसुद्दीन बताते हैं कि शहंशाह शाहजहां वर्ष 1658 से 1666 तक औरंगजेब की कैद में आगरा किला में रहा था। मुसम्मन बुर्ज में उसने जिंदगी के अंतिम वर्ष ताज को देखते हुए बिताए। उसे मौत के बाद ताजमहल में मुमताज के बगल में दफन कर दिया गया। इसीलिए मुमताज की कब्र कक्ष के मध्य में है, जबकि शाहजहां की कब्र किनारे पर है। उसकी मौत के बाद ही उसका उर्स मनना शुरू हुआ। शाहजहां से पहले मुमताज का उर्स निर्माणाधीन ताजमहल में 22 जून, 1632 को मनाया गया था। इसका जिक्र लेखिका ईबा कोच ने अपनी किताब द कंप्लीटताजमहल एंड दि रिवरफ्रंट गार्डन्स ऑफ आगरा में किया है। 26 मई, 1633 को मुमताज का दूसरा उर्स ताजमहल में मनाया गया।

शाहजहां से पहले होता था मुमताज का उर्स

आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने अपनी किताब मुगलकालीन भारत और राजकिशोर राजे ने अपनी किताब तवारीख-ए-आगरा में मुमताज का उर्स बंद होने की जानकारी दी है। इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि छह जून, 1719 को सैयद बंधुओं ने दिल्ली की गद्दी पर रफीउद्दौला को बैठाया। जबकि आगरा किले में मित्रसेन नागर ने निकुसियर को गद्दी पर बैठा दिया। सैयद बंधुओं ने आगरा पर हमला कर निकुसियर को कारावास में डाल दिया। मित्रसेन नागर ने आत्महत्या कर ली। सैयद बंधुओं में छोटे भाई हुसैन अली ने शाही कोष पर कब्जा कर लिया, इसमें मुमताज की कब्र पर चढ़ाई जाने वाली मोतियों की चादर भी थी। मोतियों की यह चादर उर्स में हर वर्ष चढ़ाई जाती थी। उस समय इसका मूल्य चार हजार रुपये था। चादर लुटने के बाद मुमताज का उर्स मनना बंद हो गया। 


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