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नया डरः अब सुहागनगरी पर मंडराने लगा सिल्कोसिस का खतरा, जानिए क्यों है इतनी घातक ये बीमारी

शहर क्षेत्र के 125 टीबी रोगियों में पाए गए जानलेवा बीमारी के लक्षण। टीबी क्लीनिक व जालमा ने किया अध्ययन अहमदाबाद भेजे गए सैम्पल। टीबी की तरह की सिल्कोसिस फेफड़ों की बीमारी है। नहीं है इस बीमारी की कोइ अलग से दवा।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 04:33 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 04:33 PM (IST)
नया डरः अब सुहागनगरी पर मंडराने लगा सिल्कोसिस का खतरा, जानिए क्यों है इतनी घातक ये बीमारी
शहर क्षेत्र के 125 टीबी रोगियों में पाए गए जानलेवा बीमारी के लक्षण।

आगरा, कार्तिकेय नाथ द्विवेदी। टीबी के लिए बदनाम सुहागनगरी फीरोजाबाद में अब सिल्कोसिस नाम की बीमारी का खतरा मंडराने लगा है। फेफड़ों में होने वाली जानलेवा बीमारी के लक्षण सवा सौ लोगों में पाए गए हैं। ये सभी कांच कारखानों से जुड़े मजदूर हैं। जिला टीबी क्लीनिक व आगरा के जालमा संस्थान के अध्ययन में पुष्टि के बाद अब नेशनल इंस्टीट्यूट फार आक्यूपेशनल डिसीज अहमदाबाद को सैंपल भेजे गए हैं। शहर में सौ से ज्यादा चूड़ी फैक्ट्रियां चलती हैं। इसके अलावा कुटीर उद्योग के रूप में घरों में चूड़ी जुड़ाई का काम होता है। जिले में टीबी के सबसे ज्यादा मरीज पाए जाते हैं। अब सिल्कोसिस की आहट के बाद परेशानियां ज्यादा बढ़ गई हैं। टीबी की तरह की सिल्कोसिस फेफड़ों की बीमारी है। सबसे बुरी स्थिति इसलिए है क्योंकि इस बीमारी की अब तक कोई अलग से दवाई नहीं है। कुछ दवाइयां है, जो ट्रायल स्तर पर चल रही हैं। जिला क्षय रोग क्लीनिक में आए टीबी (क्षय रोग) के मरीजों का टीबी क्लीनिक और आगरा के नेशनल जालमा इंस्टीट्यूट फोर लेप्रोसी के बैक्टोरियल लैब के वैज्ञानिकों की टीम ने संयुक्त रूप से अध्ययन किया। मरीजों की बीमारी के अध्ययन में 125 में सिल्कोसिस के लक्षण पाए गए। क्षय रोग चिकित्साधिकारी (डीटीओ) डा. आरएस यतेंद्र ने बताया कि इन मरीजों के खून, एक्सरे और बलगम की जांच में सिल्कोसिस की पुष्टि के बाद अब अहमदाबाद से आने वाली जांच रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।

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क्या है सिल्कोसिस और कैसे हैं जानलेवा

ये बीमारी उन स्थान पर काम करने वाले लोगों में होती है, जहां कांच, पत्थर और सीमेंट का काम होता है। बारीक कण सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंचते हैं। वहां से ये बाहर नहीं हो पाते और जमा होकर घाव बना देते हैं। इससे बैक्टीरिया का खतरनाक हमला होता है। इसमें मरीज के फेफड़ों में आक्सीजन कम पहुंचती है। मरीज का वजन घटता जाता है और 40 वर्ष की उम्र तक मौत भी हो जाती है। इस बीमारी में रिकवरी न के बराबर है। इसके अलावा सबसे बड़ी परेशानी इसकी कोई अलग से दवाई न होना है। 

बुंदेलखंड में पाई जाती थी बीमारी(

दो दशक पहले यह बीमारी बुंदेलखंड के पठार वाले क्षेत्रों में सर्वाधिक पाई जाती थी। पत्थर खनन के काम में लगे मजदूर सबसे ज्यादा सिल्कोसिस के शिकार होकर जान गंवाते रहे। जानकार बताते हैं कि सीमेंट फैक्ट्री के मजदूरों में भी यह बीमारी पाई जाती है। इसके लक्षण टीबी से मिलते-जुलते हैं। दवाइयां से टीबी खत्म हो जाती है, लेकिन इस पर दवाइयां असर नहीं करतीं।

‘पूर्व में हुए अध्ययनों में जिले में टीबी रोगियों में सिल्कोसिस की पुष्टि हुई थी। अहमदाबाद से रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट रूप से कहा जा सकेगा। फिलहाल इस बीमारी से बचने के लिए काम के दौरान मास्क ही एक कारगर उपाय है।’

डा.आरएस अत्येंद्र, जिला क्षय रोग अधिकारी, फीरोजाबाद

 


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