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मातृवेदी के बलिदानी: 101 धमाकों से दहल उठा था रावतपाड़ा, पढ़ें आजादी से पहले की कहानी Agra News

मनकामेश्वर मंदिर पर हुआ था प्रांतीय सत्याग्रही सम्मेलन। ढाई हजार से अधिक सत्याग्रही हुए थे शामिल।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 11 Aug 2019 01:04 PM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2019 07:03 PM (IST)
मातृवेदी के बलिदानी: 101 धमाकों से दहल उठा था रावतपाड़ा, पढ़ें आजादी से पहले की कहानी Agra News
मातृवेदी के बलिदानी: 101 धमाकों से दहल उठा था रावतपाड़ा, पढ़ें आजादी से पहले की कहानी Agra News

आगरा, आदर्श नंदन गुप्त। 20 जून 1932 का दिन। आगरा शहर का हृदय कहा जाने वाला रावतपाड़ा। हर ओर पुलिस का पहरा। हर दुकान और घर की छतों पर तैनात सिपाही। श्रीमन: कामेश्वर मंदिर पर विशेष निगाह। यहां कई बड़े अफसरों की तैनाती की गई थी। यह पूरी कवायद प्रांतीय सत्याग्रही सम्मेलन रोकने को की गई थी। शाम के चार बजते ही 101 तेज धमाकों से रावतपाड़ा दहल उठा। एक के बाद एक लगातार धमाके हुए।

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पुलिस प्रशासन का ध्यान ज्यों बाजार की ओर गया, तभी  मलिखान सिंह और उनके साथी भारत माता की जय, जयहिंद, वंदे मातरम का जयघोष करते हुए एक गली से निकलकर आये और मनकामेश्वर मंदिर परिसर में पहुंच गए।

यहां आंदोलनकारी सत्याग्रहियों का प्रांतीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। मलिखान सिंह के पहुंचते ही आसपास के घरों व गलियों से निकल कर सारे लोग मंदिर परिसर में पहुंच गए। विदेशी सत्ता के होने से कार्यकर्ताओं का मनोबल निरंतर घट रहा था, उनका मनोबल को बढ़ाने के लिए यह प्रांतीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। पुलिस इसे रोकने के लिए पूरी कवायद कर रही थी, जिससे यह सम्मेलन होना मुश्किल लग रहा था। इसके लिए अलीगढ़ के शेर कहे जाने वाले ठाकुर मलिखान सिंह को बुलाया गया था। पुलिस और प्रशासन मलि‍खान सिंह को नगर में ही प्रवेश नहीं करने दे रहा था। स्थानीय कार्यकर्ताओं ने बहुत गोपनीय तरीके से योजना बनाई।  जिसका विशेष प्रबंध बाबूलाल मीतल कर रहे थे। सहयोगी थे जगन प्रसाद रावत, राधेश्याम शर्मा, कृष्ण जीवन दास। उनकी योजना के अनुसार रावत पाड़ा की गलियों में बने मकानों में गोपनीय तरीके से सत्याग्रहियों को ठहराया गया था। ठाकुर मलिखान सिंह को अलीगढ़ से बुरका पहना कर लाया गया और नमक की मंडी में कृष्ण जीवन दास के आवास पर ठहराया गया।

 पूर्व निर्धारित योजना के तहत मनमोहन वैद्य के आवास से शंख ध्वनि होते ही गली में मलिखान सिंह आयोजन स्थल की ओर चल दिये। योजना के अनुसार 101 हथगोलों को रास्ते में फोड़ा गया, जिससे अधिकारी भौचक रह गया। पुलिस, प्रशासन की घेराबंदी के बीच यह सम्मेलन डेढ़ घंटे तक चला। अध्यक्षीय भाषण होने से पहले शहर कोतवाल स्वयं भारी संख्या में पुलिस बल लेकर वहां पहुंचे।

नेताओं को किया गिरफ्तार

सम्मेलन के अध्यक्ष ठाकुर मलिखान सिंह को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन उनके हटते ही अध्यक्ष का स्थान चंद्रवती ने संभाल लिया और व्याख्यान देने लगीं। इस पर उन्हें भी हिरासत में ले लिया। इसके बाद सम्मेलन का समापन करके कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। उन्हें लॉरियों में भर कर अलग-अलग जंगल में छोड़ दिया। सरकारी कागजातों के अनुसार ढाई हजार देशभक्तों की गिरफ्तारी हुई थी।

बेरहमी से पीट कर भेज दिया जेल

जगन प्रसाद रावत, राधेश्याम शर्मा, भगवान सहाय आदि को कोतवाली ले जाया गया। पुलिस कप्तान और जिलाधीश की उपस्थिति में सभी की बर्बरता पूर्वक पिटाई करके जेल भेज दिया था।

आतिशबाजी के थे हथगोले

101 हथगोलों को उपयोग व निर्माण राधेश्याम शर्मा, भगवान सहाय, विक्रम शर्मा, आदि ने किया था। दुकानों व मकानों के आगे लगे टिन शेड पर बम फोडऩे से धमाके कई गुना तेज हो गए। जिससे यह आवाज दूर-दूर तक गई।

पुस्‍तक में भी है उल्‍लेख

महंत उद्धवपुरी महाराज ने इस सम्मेलन की कई बार चर्चा की थी। मथुरा के चिंतामणि शुक्ल द्वारा लिखित आगरा जनपद का राजनैतिक इतिहास में भी इस घटना का विस्तृत उल्लेख है।

योगेश पुरी, महंत, श्रीमन:कामेश्वर मंदिर

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