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International Human Rights Commission Day: सोमवती को 17 साल से अपने अधिकार का इंतजार Agra News

जगदीशपुरा से वर्ष 2002 में छह महीने के अंतराल में गायब हो गए थे तीन भाई। आयोग में शिकायत पर पांच साल बाद दर्ज हो सकी रिपोर्ट पर नहीं मिले बेटे।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 05:29 PM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 05:29 PM (IST)
International Human Rights Commission Day: सोमवती को 17 साल से अपने अधिकार का इंतजार Agra News
International Human Rights Commission Day: सोमवती को 17 साल से अपने अधिकार का इंतजार Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। थानों पर मानव अधिकारों का हनन किस तरह किया जाता है, इसे सोमवती से बेहतर कोई नहीं जानता। वह 17 साल से घर से गए तीन बेटों की वापसी का इंतजार कर रही है। इस उम्मीद में कि शायद पुलिस उन्हें खोज निकाले। इससे कि जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर वह अपनी आंखों के बंद होने से पहले बेटों को देख सके।

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जगदीशपुरा के गढ़ी भदौरिया निवासी सोमवती (65वर्ष) के पांच बेटे और एक बेटी हैं। सोमवती के अनुसार वर्ष 2002 में उसके तीन बेटे एक-एक करके घर छोड़ गए। सबसे पहले बड़ा बेटा आनंद गया। जो उस समय 16 वर्ष का था। इसके पांच महीने बाद दूसरा बेटा रवि (11) और छह महीने बाद रूपेश (14) घर से बिना बताए चला गया। सोमवती के अनुसार बेटों को खोजने के लिए वह पांच साल तक थाने के चक्करकाटती रही। पुलिस हर बार उसे कोई न कोई बहाना बनाकर वहां से भेज देती।

इस दौरान वह पति गुरु दत्त के साथ अपने स्तर से बेटों को लगातार खोजती रही। वर्ष 2007 की बात है, पुलिस के रवैये से खिन्न होकर वह थाने के बाहर बैठकर रोने लगी। इस दौरान वहां पहुंचे सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने उनकी पीड़ा सुनी। उन्होंने इसकी शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में की। आयोग के निर्देश पर पांच साल बाद वर्ष 2007 में बेटों के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज की। मामला अधिकारियों के संज्ञान में आने के बाद पुलिस ने खोजबीन का प्रयास किया। मगर, बेटों का पता नहीं चला।

करीब एक साल तक खोजने के बाद पुलिस ने मुकदमे में एफआर लगा दी। पुलिस ने भले ही फाइल बंद कर दी हो। उन्होंने बेटों के लौटने की उम्मीद नहीं छोड़ी है। एक बेटे और एक बेटी की शादी कर चुकी हैं। तीन और बेटों के सिर पर सेहरा देखने के लिए उनका आज भी इंतजार कर रही हैं।

तुम्हारे बच्चे ज्यादा हैं इसलिए खोते हैं

'तुम्हारे बच्चे ज्यादा हैं, इसलिए खोते हैं। तुम उनका ध्यान नहीं रख पातीं। सोमवती के अनुसार थाने पर एक पुलिसकर्मी द्वारा उनसे कहे इन शब्दों की चोट से दिल पर लगे जख्म 17 साल बाद भी नहीं भरे हैं। एक बार तो पुलिस ने उनसे बच्चों को खोजने के लिए रकम खर्च करने कहा।

बेटों की तलाश में भटकते पिता की रेबीज से हो गई मौत

बेटों की तलाश में भटक करके घर लौटते पिता को कुत्ते ने काट लिया। बेटों के गायब होने से डिप्रेशन के शिकार हो गए पिता ने इलाज नहीं कराया। रेबीज के चलते उनकी मौत हो गई।

थानों से गायब हो गए मानवाधिकार के बोर्ड

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर एक दशक पहले सभी थानों में बोर्ड लगे थे। इनमें थाने आने वाले पीडि़तों और आरोपितों को उनके अधिकारों से संबंधित जानकारी लिखी होती। अधिकांश थानों से यह बोर्ड गायब हो चुके हैं।

एक हजार से अधिक शिकायतें

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में इस वर्ष एक हजार से अधिक शिकायतें पहुंची। इनमें पुलिस द्वारा उत्पीडऩ करने और थाने में सुनवाई नहीं की शिकायतें हैं।  


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