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Shree Krishna Janmashtami 2020: कान्हा की बाल लीलाओं की गवाही देती हैं गिरिराज शिलाएं, जानिए महत्व

Shree Krishna Janmashtami 2020 गोवर्धन पर्वत पर प्रकट हुए कृष्ण स्वरूप श्रीनाथजी। राजस्थान के नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी का स्वरूप गोवर्धन पर्वत की शिला का ही स्वरूप है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 12:10 PM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 12:10 PM (IST)
Shree Krishna Janmashtami 2020: कान्हा की बाल लीलाओं की गवाही देती हैं गिरिराज शिलाएं, जानिए महत्व
Shree Krishna Janmashtami 2020: कान्हा की बाल लीलाओं की गवाही देती हैं गिरिराज शिलाएं, जानिए महत्व

आगरा, रसिक शर्मा। बहुत से श्रद्धालुओं को नहीं पता होगा कि द्वापरयुगीन पर्वतराज गोवर्धन की शिलाओं में कृष्ण कालीन लीलाओं के चिन्ह आज भी कृष्ण कालीन द्वापर युग की गवाही दे रहे हैं। राजस्थान के नाथद्वारा स्थित श्रीनाथजी का स्वरूप गोवर्धन पर्वत की शिला का ही स्वरूप है।

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'गिरिराजजी' यानी कृष्णकालीन वो पर्वत जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं पूजा और ब्रजवासियों की रक्षा को अपने बाएं हाथ की कानिष्ठा अंगुली पर धारण किया था। गोवर्धन पर्वत रहस्य और दिव्यता का अद्भुत संग्रह है। मन्नतें मांगने के लिए देश ही नहीं दुनिया भर के लोग इस दर पर मस्तक झुकाने आते हैं। इंद्र का मान मर्दन करने वाले कन्हैया की लीला का वर्णन आज भी गिरिराज की शिलाओं पर अंकित है। विदेशी आस्था को ब्रज वसुंधरा की तरफ मोड़ता गोवर्धन पर्वत श्रद्धालुओं को महंगी और लग्जरी गाडिय़ों को छोड़कर नंगे पैर 21 किलोमीटर चलने को मजबूर कर देता है।

द्वापरयुगीन स्वर्णिम लम्हों को सहेजे गिरिराज शिलाएं आज भी तेजोमय हैं। गिरिराज शिलाओं पर दर्जनों चिन्ह बने हैं जो राधाकृष्ण की लीलाओं की गवाही दे रही हैं। बालपन में भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज महाराज को ब्रज का देवता बताते हुये इंद्र की पूजा छुड़वा दी। जिससे देवों के राजा इंद्र ने कुपित होकर मेघ मालाओं को ब्रज बहाने का आदेश दिया। सात दिन सात रात तक मूसलाधार बारिश हुई। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गिरिराज पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण करके ब्रज को डूबने से बचा लिया। इंद्र कान्हा के शरणागत हो गए। उस समय इंद्र अपने साथ सुरभि गाय, ऐरावत हाथी और गोकर्ण घोड़ा लाए। सांवरे का माधुर्य रूप और तिरछी चितवन, मनमोहक मुस्कान देखकर गाय का मातृत्व जाग उठा, उसके थनों से दूध की धार निकलने लगी। दूध की धार के चिन्ह आज भी आन्यौर और पूंछरी के मध्य गिरिराज पर्वत ने सहेज कर रखे हैं। गोकर्ण घोड़ा, ऐरावत हाथी, सुरभि गाय के उतरने पर उनके पैरों के निशान शिलाओं में दिखाई पड़ते हैं। बाल सखाओं के साथ माखन मिश्री खाकर उंगलियों के बने निशान सहेजे कृष्ण रूपी पर्वत पर भक्ति को शक्ति प्रदान करता है।

शेर के स्वरूप मे बैठे बलदाऊ अपनी सरकार चलाते हैं। खासकर ब्रजवासी अपनी पीड़ा दाऊ दादा के दरबार में सुनाते हैं और बलभद्र ने किसी को अपने दरबार से खाली हाथ नहीं लौटाया। यही विश्वास और भक्ति गोवर्धन पर्वत के चारों ओर इक्कीस किमी में मानव श्रंखला बनाए रखती है। मन्नतें पूरी होने का विश्वास लोगों को सात समंदर पार से तलहटी खींच लाता है।

यहां प्रकट हुए श्रीनाथजी

मंदिर सेवायत गोविंद मुखिया के अनुसार करीब 550 वर्ष पूर्व आन्यौर की नरो नामक लड़की की गाय का दूध गिरिराज शिला पर झरने लगा। उसे जब इस बात का पता चला तो उसने गिरिराज शिला पर आवाज लगाई, अंदर कौन है। अंदर से जवाब में तीन नाम सुनाई दिए, देव दमन, इंद्र दमन और नाग दमन। इसी शिला से श्रीनाथ जी का प्राकट््य हुआ और सबसे पहले उनकी बाईं भुजा का दर्शन हुआ। करीब 450 वर्ष पूर्व पूरनमल खत्री ने जतीपुरा में गिरिराज शिलाओं के ऊपर मंदिर का निर्माण कराया।  


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