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अपने फूलों की फिक्र में मुरझा गए बगिया से बेदखल बागवां, lockdown में जानिए क्‍या है हाल

जीते जी मुंह फेरने वाले अपनों की चिंता में डूब गए वृद्धाश्रम के बुजुर्ग। कोरोना से जंग में फोन पर दे रहे सुरक्षित रहने की सलाह।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 20 Apr 2020 02:51 PM (IST)Updated: Mon, 20 Apr 2020 02:51 PM (IST)
अपने फूलों की फिक्र में मुरझा गए बगिया से बेदखल बागवां, lockdown में जानिए क्‍या है हाल
अपने फूलों की फिक्र में मुरझा गए बगिया से बेदखल बागवां, lockdown में जानिए क्‍या है हाल

आगरा, विनीत मिश्र। हम एक शब्द हैं, तो वह पूरी भाषा है, हम कुंठित हैं तो वह एक अभिलाषा है, बस यही मां की परिभाषा है। ये एक मां की ममता है। मां का दिल बार-बार उन अपनों के लिए धड़कता है, जो जिगर के टुकड़े हैं। बेटों ने मां को ठुकरा दिया, लेकिन मां अपनों को नहीं भूल पाई। जिंदगी की सांझ वृद्धाश्रम में काट रही मां बेटों के जीवन में खुशियों का सूरज उगाना चाहती है। कोरोना से बेटे सलामत हैं, ये जानने की कोशिश मां को सोने नहीं देती। बेटे बात नहीं करते, तो मां पड़ोसियों को फोन कर उनकी खैर-खबर लेती है।

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वृंदावन की रामादेवी की उम्र साठ पार हो गई है। एक बेटा और बहू है। दोनों से बनी नहीं, तो तीन माह पहले ललिता नगर काॅलोनी स्थित आवासीय वृद्धाश्रम में आ गईं। तब से न बेटे ने बात की, न बहू ने सुधि ली। रामादेवी भी जिद्दी ऐसी कि खुद भी फोन नहीं मिलाया। कोरोना वायरस का हमला तेज हुआ, तो रामादेवी को अपनों की चिंता सताने लगी। खुद तो वृद्धाश्रम की चाहरदीवारी में सुरक्षित हैं, लेकिन जिस बेटे को जन्म दिया, वह ठीक है की नहीं, ये सवाल मन में कौंधने लगे। रामादेवी से रहा नहीं गया, तो वृंदावन में पड़ोसियों को फोन कर अपनों की हाल खबर ली। तब से हर दूसरे-तीसरे दिन बेटे-बहू की कुशलक्षेम पड़ोसियों से पूछती हैं। कहती हैं बेटे-बहू ने रहने नहीं दिया, तो कोई बात नहीं, मैं मां हूं, उन्हें कुछ हुआ, तो मैं जीते-जी मर जाऊंगी। मथुरा शहर में ही रहने वाले गोविंद ने जिदंगी के 63 वसंत देख लिए। ये उस बगिया के बागवां है, जिसे नाजों से संवारा था। लेकिन बहू आने के बाद इसी बगिया में रहना मुश्किल हो गया। तीन साल से वृद्धाश्रम में रहते हैं। पहले बच्चों से बात न करने वाले,गोविंद अब अपनों से लगातार बात करते हैं, कहते हैं बच्चे अपने साथ नहीं रखते, इसका गम नहीं है। लेकिन वह खुश हैं, तो मेरे चेहरे पर भी नूर है। वृद्धाश्रम में हरप्यारी, कोकलिया समेत साठ बुजुर्ग रहते हैं। सबकी चिंता, अपनों की सुरक्षा है। कहते हैं कि रात उनकी चिंता में कटती है और दिन सलामती की दुआ मांगते। इनमें ज्यादातर बुजुर्ग एेसे हैं, जिनके अपनों ने घर से बेदखल कर दिया। लेकिन खुद की सजाई बगिया के फूल हमेशा महकते रहें, इसकी फिक्र में ये बागवां खुद मुरझा गए हैं।


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