Tajmahal: फिर चमचमा उठेगा ताजमहल का गुंबद, पच्चीकारी भी अाएगी सामने निखरकर
पच्चीकारी के कार्य में इस्तेमाल पत्थर आ गए थे बाहर इनको भी दोबारा लगाया जाएगा। मुख्य गुंबद पर प्वाइंटिंग का काम भी होगा बांधी गई पाड़। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण 24 लाख रुपये से शुरू कराने जा रहा है इस कार्य को।
आगरा, निर्लोष कुमार। दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताजमहल के गुंबद से प्रदूषण के दाग हटाने को मडपैक ट्रीटमेंट तो नहीं हो सका, लेकिन उसके संरक्षण का काम शुरू होने जा रहा है। गुंबद पर हो रही पच्चीकारी के निकले पत्थरों को दोबारा लगाया जाएगा अौर मसाला खराब होने से ढीले हुए पत्थरों को फिक्स किया जाएगा। गुंबद पर प्वाइंटिंग का काम भी होगा। इसके लिए मुख्य मकबबरे की छत पर पाड़ बांध दी गई है। संरक्षण कार्य पर करीब 24 लाख रुपये व्यय होंगे।
ताजमहल में मुख्य मकबरे में दोहरा गुंबद है। पहले गुंबद के ऊपर बने ड्रमनुमा स्ट्रक्चर के ऊपर दूसरा गुंबद बना हुआ है। मकबरे की छत के ऊपर बने ड्रमनुमा स्ट्रक्चर की ऊंचाई 11.45 मीटर (37.56 फुट) और उसके ऊपर बने गुंबद की ऊंचाई 22.86 मीटर (75 फुट) है। ड्रम पर हो रही पच्चीकारी के कई पत्थर निकल गए हैं और कई पत्थर मसाला खराब होने की वजह से ढीले पड़ गए हैं। ड्रम व गुंबद पर लगे संगमरमर के पत्थरों के बीच का मसाला भी कुछ जगहों से निकल गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) अब गुंबद पर संरक्षण कार्य शुरू कराने जा रहा है। इसके लिए मकबरे की छत पर मेहमानखाना की साइड में 30 फुट से ऊंची पाड़ बांध दी गई है। एक-दो दिन में यहां चरणबद्ध तरीके काम शुरू हो जाएगा। ड्रम पर हो रही पच्चीकारी के निकले पत्थरों को लगाने और प्वाइंटिंग का काम साथ-साथ किया जाएगा। ड्रम पर काम पूरा होने के बाद गुंबद के ऊपर प्वाइंटिंग का काम किया जाएगा।
मडपैक ट्रीटमेंट के साथ होना था संरक्षण
गुंबद पर संरक्षण का काम एएसआइ की रसायन शाखा द्वारा किए जाने वाले मडपैक ट्रीटमेंट के साथ ही होना था। एएसआइ के दिल्ली मुख्यालय ने वर्ष 2017 में इसके लिए निर्देश दिए थे, जिससे कि गुंबद पर पाड़ बंधने पर एक ही बार में काम किया जा सके। गुंबद पर मडपैक ट्रीटमेंट नहीं हो पाने से संरक्षण का काम भी नहीं हो पा रहा था।
झूले से की जाएगी गुंबद पर प्वाइंटिंग
गुंबद पर प्वाइंटिंग के काम को ऊपर तक पाड़ नहीं बांधी जाएगी। झूलों व रस्सी की सहायता से गुंबद पर प्वाइंटिंग का काम किया जाएगा। वर्ष 2006-07 में ताजमहल के गुंबद पर इसी तरह काम किया गया था। प्वाइंटिंग के काम में जिस जगह से मसाला निकला होता है, उस जगह मसाला भरा जाता है। मसाला नहीं भरने पर खाली जगह में पौधे उग आते हैं।
1941-44 में हुआ था संरक्षण
एएसआइ ने ताज की छत और गुंबद के संरक्षण का काम वर्ष 1941-44 के बीच कराया था। गुंबद के चटके पत्थरों को रीसेट करने के साथ पच्चीकारी के निकले हुए पत्थरों को दोबारा लगाया गया था। तब इसके संरक्षण पर करीब 92 हजार रुपये व्यय हुए थे। वर्ष 1975-76 में भी ताजमहल में मुख्य मकबरे की छत पर काम किया गया था। वर्ष 2006-07 में गुंबद पर प्वाइंटिंग की गई थी।
'ताजमहल के गुंबद पर संरक्षण का काम शुरू किया जा रहा है। यहां पच्चीकारी के निकले पत्थर दोबारा लगाए जाएंगे। गुंबद पर प्वाइंटिंग का काम भी किया जाएगा।'
-वसंत कुमार स्वर्णकार, अधीक्षण पुरातत्वविद