अंदर की बात: साहब का कागजी हंटर, थानों में मची है हलचल Agra News
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आगरा, यशपाल चौहान। खाकी वाले इन दिनों साहब के कागजी हंटर से परेशान हैं। साहब कागजी हंटर के पुराने मास्टर जो हैं। पिछले दिन उन्होंने कई थाने वालों के गड़े मुर्दे उखाड़ दिए। किसी को सही काम देरी से करने में तो किसी को मुकदमों का निपटारा न करने पर हंटर मिला। थाने वालों में खलबली मच गई। कई तो साहब के पास पहुंच गए। उन्होंने कह दिया कि अब उनसे हंटर नहीं झेला जाएगा। वे तो लाइन में लगने को भी तैयार हो गए। साहब ने साफ कह दिया कि वे यूं ही लाइन नहीं लगाएंगे। लाइन में लगाने से पहले वे कागजी हंटर इतने चलाएंगे कि उनकी नौकरी वाली किताब भर जाए। तेवर देखकर थाने वाले बैकफुट पर आ गए। उन्होंने साहब के आगे समर्पण कर दिया। कह दिया कि साहब जिस तरह रखोगे, वैसे ही रहेंगे। साहब ने उन्हें निश्चिंत रहने का आशीर्वाद दे दिया।
अब फेल हुई जुगाड़
जुगाड़ तो जुगाड़ है। यह कभी धोखा दे सकती है। ट्रैफिक में तीन साल से अपनी जुगाड़ चला रहे साहब की विदाई पर ऐसा ही हुआ। कुछ दिनों से बहुत जलालत झेली। कभी बसों से तो कभी चौराहों से वसूली के किस्से सामने आए। बड़े साहब की डांट पड़ी, पर साहब बेअसर रहे। ताजनगरी से साहब का लगाव बहुत था, सो वे इसे छोडऩा नहीं चाहते थे। उनका ट्रैफिक दल से जिले के खाकी वाले दल में तबादला हुआ। जुगाड़ लगाना शुरू कर दिया। खाकी के जोन वाले साहब दयालू हैं। उनके ऑफिस से तो मंसूबे पूरे हो गए। इसके बाद मंडल वाले साहब के यहां धरे रह गए। साहब ने उनका पिछला रिकार्ड देखकर यहां रोकने के बजाय मंडल के सबसे दूर के जिले में ठेल दिया। साहब दुखी हैं। सभी से दुखड़ा भी रो रहे हैं। आखिर में उनकी जुगाड़ फेल ही हो गई।
बीमारी से लाइन भली
वाहनों के पीछे लिखा देखा होगा 'दुर्घटना से देर भलीÓ। खाकी वालों में आजकल इससे मिलता जुलता स्लोगन खूब चल रहा है बीमारी से तो पुलिस लाइन भली। इसमें खाकी वालों की परेशानी का भाव झलक रहा है। पुलिस वालों की समस्या की फेहरिस्त लंबी है। ताजा समस्या कार्यशैली की है। साहब उनसे इतना काम ले रहे हैं कि उनके अपने सारे काम ठप पड़े हैं। न तो परिवार से बात कर पा रहे हैं न ही ठीक से सो पा रहे हैं। कई खाकी वालों का बीपी बढ़ गया तो कुछ के दिल तेजी से धड़कने लगे हैं। कई तो साहब के सामने ही दवा लेकर पहुंच गए। बीमारी के बहाने अपनी बात भी कह डालीं। कुछ थाने वाले साहब, थानों से हटकर लाइन में पहुंचे तो वे सुकून महसूस कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि बीमारी से तो लाइन ही भली।
फीडबैक से मची खलबली
अपराध पर काम करने वाली टीम पिछले दिनों कारनामों से सुर्खियों में आई। रेंज वाले साहब की नजर थी। इसके बाद भी कारनामे चलते रहे। साहब ने पिछले दिनों टीम के मुखिया और पांच मातहतों का गुप्त फीडबैक मांग लिया। इसमें अब तक का पूरा चिट््ठा मांगा गया था। कौन से अच्छे काम किए और कौन से बुरे? यह भी साहब ने मांगा। जैसे ही संबंधितों को जानकारी हुई खलबली मच गई। बचने को लगाने लगे सिफारिश। मुखिया ने तो रिपोर्ट देना भी शुरू कर दिया। मगर, साहब के आगेे किसी की मजाल नहीं। अभी रेंज वाले साहब ने फीडबैक लेने के बाद कोई तीर भी नहीं चलाया है। मगर, टीम वालों को डर है कि कहीं वे तीन का शिकार न बन जाएं। क्योंकि फीडबैक में कहीं न कहीं उनकी कमी निकलना तय है। अब उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर करें क्या?