Karwa Chauth 2020: चांद और पिया का दीदार छलनी की ओट से, करवा चौथ की इस परंपरा के बारे में जानिए सबकुछ
Karwa Chauth 2020 करवा चौथ पर सोलह श्रंगार का जितना महत्व है उतना ही महत्व इस दिन पर होने वाले पूजन विधान का भी है। जिसमें से एक है छलनी की ओट से चांद और पति के चेहरे का दीदार करना।
आगरा, जागरण संवाददाता। सात वचनों से बंधे सात जन्मों के रिश्ते को और भी अधिक मजबूती देता है करवा चौथ का व्रत। ये बात नहीं है कि करवा चौथ व्रत रखते हैं वही सही मायने में अपने जीवन साथी से प्रेम करते हैं। रिश्ते व्रत− उपवास से नहीं बंधते लेकिन हां इन रिश्तों में इस तरह के त्योहार प्रेम की चाशनी को घोल देते हैं। करवा चौथ पर सोलह श्रंगार का जितना महत्व है उतना ही महत्व इस दिन पर होने वाले पूजन विधान का भी है। जिसमें से एक है छलनी की ओट से चांद और पति के चेहरे का दीदार करना। इस बाबत धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी से जागरण डॉट कॉम ने बात की।
पंडित वैभव ने बताया कि करवा चौथ का व्रत चार नवंबर को है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पूरा दिन निर्जला व्रत रख अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं। इसलिए ये व्रत खासकर सुहागिनों के लिए काफी महत्व रखता है। इस व्रत की शुरुआत सुबह सरगी लेने से होती है और पूरा दिन भूखे प्यासे पहकर शाम को माता पार्वती, भगवान शिव, कार्तिकेय और गणेश जी की पूजा की जाती है। सुहागिनों के अलावा कई कुंवारी लड़कियां भी अपनी भविष्य के पति के लिए ये व्रत करती हैं। इस दिन सुहागिन चंद्रमा की पूजा करती है तो वहीं कुंवारी लड़कियां तारों को पूजती हैं। शादीशुदा महिलाएं इस दिन व्रत कथा भी ज़रूर सुनती हैं। जिसके बिना इस खास व्रत को अधूरा माना जाता है। जिसके बाद सभी चांद निकले का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। इस व्रत में चंद्रमा को अघर्य देकर व्रत को खोला जाता है। इसके बाद महिलाएं छलनी से चांद के दर्शन करती हैं और पूजा कर व्रत को सम्पन्न करती हैं।
ये है वजह
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि चंद्रमा भगवान ब्रह्मा का रूप हैं। एक मान्यता यह भी है कि चांद को दीर्घायु का वरदान प्राप्त है और चांद की पूजा करने से दीर्घायु प्राप्त होती है। साथ ही चद्रंमा को सुंदरता और प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है, यही वजह है कि करवा चौथ के व्रत में महिलाएं छलनी से चांद को देखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है।
पौराणिक कथा
वहीं एक पौराणिक कथा के अनुसार एक साहूकार की बेटी ने अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था पर अत्यधिक भूख की वजह से उसकी हालत खराब होने लगी थी। यह देखकर साहूकार के बेटों ने अपनी बहन से खाना खाने को कहा लेकिन साहूकार की बेटी ने खाना खाने से मना कर दिया। भाइयों से बहन की ऐसी हालत देखी नहीं गई तो उन्होंने चांद के निकलने से पहले ही एक पेड़ पर चढ़कर छलनी के पीछे एक जलता हुआ दीपक रखकर बहन से कहा कि चांद निकल आया है।
बहन ने भाइयों की बात मान ली और दीपक को चांद समझकर अपना व्रत खोल लिया और व्रत खोलने के बाद उनके पति की मुत्यु हो गई और ऐसा कहा जाने लगा कि असली चांद को देखे बिना व्रत खोलने की वजह से ही उनके पति की मृत्यु हुई थी। तब से आज तक अपने हाथ में छलनी लेकर बिना छल-कपट के चांद को देखने के बाद पति के दीदार की परंपरा शुरू हो हुई।