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Guru Nanak Dev Jayanti 2020: गुरु नानक देव का था आगरा से विशेष नाता, जानिए यहां के गुरुद्वारों का इतिहास

Guru Nanak Dev Jayanti 2020 अपनी शिक्षाओं से मानव सेवा का संदेश देने वाले गुरु के चरणों से आगरा की धरती भी पवित्र हुई है। यहां उन्होंने गुरुद्वारा गुरु का ताल गुरुद्वारा लोहामंडी गुरुद्वारा माईथान पर अल्प प्रवास कर अनुयायिओं को आशीष वचन दिए थे।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 02:43 PM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 02:43 PM (IST)
Guru Nanak Dev Jayanti 2020: गुरु नानक देव का था आगरा से विशेष नाता, जानिए यहां के गुरुद्वारों का इतिहास
मानव सेवा का संदेश देने वाले गुरु के चरणों से आगरा की धरती भी पवित्र हुई है।

आगरा, जागरण संवाददाता। एक ओंकार का संदेश देने वाले सिख धर्म के पहले गुरु नानक देव साहब का प्रकाश पर्व 30 नवंबर को है। हर बार शहरभर के गुरुद्वारों में इस दिन श्रद्धालुओं को रैला उमड़ता था लेकिन इस बार कोरोना वायरस संक्रमण ने स्थिति को बदल दिया है। इस बार यह पर्व सादगी के साथ मनाया जा रहा है। अपनी शिक्षाओं से मानव सेवा का संदेश देने वाले गुरु के चरणों से आगरा की धरती भी पवित्र हुई है। यहां उन्होंने गुरुद्वारा गुरु का ताल, गुरुद्वारा लोहामंडी, गुरुद्वारा माईथान पर अल्प प्रवास कर अनुयायिओं को आशीष वचन दिए थे।

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गुरद्वारा गुरु का ताल 

इस स्थान पर नौंवें गुरु तेग बहादुर जी ने अपनी गिरफ्तारी दी थी। मंजी साहब यहां उपस्थित हैं। गुरुद्वारा गुरु का ताल स्थित बोहरा साहब में उन्हें नजरबंद करके रखा गया था। यहीं से उन्हें हजारों सैनिकों की देखरेख में दिल्ली चांदनी चौक ले जाया गया था। जहां उनकी शहादत हुई। यहां वर्तमान में गुरुद्वारा शीशगंज मौजूद है। 

गुरुद्वारा गुरुनानक देव, नया बांस, लोहामंडी

शहर के मध्य स्थित इस गुरुद्वारे की भी अपनी ही विशेषता है। दक्षिण की उदासी (यात्रा) के दौरान गुरु नानकदेव जब अंता का बाग में तीन दिन रुके, तो यह गुरुद्वारा भी उसी बाग का हिस्सा था। यहां भी गुरु नानकदेव ने संगतों को दर्शन दिए। इस दौरान यहां स्थित पीलू के पेड़ के नीचे बैठकर उन्होंने ध्यान किया था, उस स्थान पर गुरु चरणाें के निशान मौजूद हैं। गुरु ने यहां एक महिला के बच्चों का आध्यात्मिक ज्ञान से उपचार किया, जिसके चलते यहां का नाम गुरुद्वारा दुख निवारण साहब पड़ा। हर साल यहां होली के अवसर पर पीलू वाले बाबा के नाम पर प्राचीन मेले का आयोजन होता है। यह स्थान कभी अंता का बाग नाम के विशाल बाग का अभिन्न हिस्सा था, जो अब विलुप्त हो चुका है। रोजाना देश-विदेश से संगतें आकर गुरु के चरण साहब के दर्शन कर खुद को धन्य महसूस करती हैं।

गुरुद्वारा माईथान

दक्षिण की उदासी (यात्रा) में ग्वालियर से वापसी के दौरान गुरुनानक देव साहब ने ताजनगरी की धरती को धन्य किया। तब शहर का स्वरूप एक कस्बे जैसा था। तब गुरुद्वारे के स्थान पर जस्सी नाम की महिला रहती थीं, जो भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति मानकर उनकी मूर्ति की आराधना करती थीं। गुरुनानक देव के दर्शन कर उस महिला ने परमार्थ का रास्ता पूछा, तो गुरुनानक जी ने उनके प्रति उपदेश दिया। गुरु उपदेश प्राप्त कर उन्होंने उसे प्रचारित करना शुरू किया। तभी से उन्हें लोग माता जस्सी कहकर पुकारने लगे और उनका घर सिख धर्म का केंद्र बना। उन्होंने पंथ के छठे गुरु हरगोबिंद साहब के भी दर्शन किए, तब उनकी उम्र 174 वर्ष थी। गुरु तेगबहादुर साहब को लेकर अनुयायियों की धारणा थी कि उनका सिमरन करने से वह स्वयं प्रकट होकर संगतों का दर्शन करते हैं। इसी से प्रेरणा लेकर माता जस्सी ने गुरु को भेंट करने के लिए अपने हाथों से कपड़े का थान बनाया, गुरु तेगबहादुर जी सिख धर्म के प्रचार को जब 1664-65 में रोहतक, दिल्ली, मथुरा होते हुए यहां आए तो उन्होंने गुरु को वह कपड़े का थान भेंट किया, तभी से इस जगह का नाम माईथान पड़ा। वह करीब एक माह यहां रुके। यहां पानी की समस्या बताने पर उन्होंने अपने प्रभाव से कुएं के खारे पानी को मीठे पानी में बदल दिया, जो यहां आज भी मौजूद है। उनके ही आशीर्वाद से जस्सी को माता जस्सी के नाम से जाना गया और गुरु सेवा के फल स्वरूप वह भी गुरु संगतों के बीच हमेशा के लिए अनंत काल तक याद रखी जाएंगी।

गुरुद्वारा हाथी घाट

औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके बड़े पुत्र बहादुर शाह ने गुरु गोविंद सिंह की मदद से अपने भाई तारा आजम पर विजय पाई और वह बादशाह बना। बुलावे पर गुरु गोविंद साहब उसे दर्शन देने दो अगस्त 1707 को आगरा आए और यमुना किनारे ठहरे। बहादुर शाह ने गुरु जी को 1100 सोने की मोहरें भेंट कीं। यहीं बादशाह के हाथी का पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया, जिसे गुरु साहब ने मुक्त कराया। तब बहादुर शाह ने विनती कर गुरु जी को अपने सिंहों के साथ किले में आमंत्रित किया। गुरु साहब जिस स्थान पर ठहरे, उस स्थान को आज गुरुद्वारा हाथी घाट के नाम से जाना जाता है, जहां हाथी पर बैठे बादशाह और हाथी के पैर मुंह में लिए मगरमच्छ की मूर्ति आज भी मौजूद हैं।  


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