दो शादी के बाद भी नहीं बदली हर्षिता की जिंदगी, अब बच्चों के भविष्य के लिए ऐसे कर रही संघर्ष
Struggling Woman ट्रांसयमुना निवासी युवती सब्जी बेचकर कर रही तीन बच्चे और मां- बाप का पालन पोषण। बाल अवस्था में हुई थी पहली शादी दूसरे पति ने भी किए जुल्म। दूसरी शादी करने के बाद भी बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए मां द्वार- द्वार के दर्शन करने लगी।
आगरा, सुबान खान। नसीब, मुसीबत और संघर्ष..ये हर किसी की जिंदगी से जुड़े हैं। जिंदगी में खुशियां समेटने के लिए इंसान जिस तरह रास्ते बदलता है। इस अभागन ने भी बदकिस्तमती से पीछा छुड़ाने के लिए पति बदलते समय यही सोचा था। फिर भी नसीब नहीं बदला और मुसीबतों ने दामन थामे रखा। जुल्म और सितम से संघर्ष करते 12 वर्ष गुजर गए पर सवाल अब खुद की खुशियों का नहीं, बल्कि तीन बच्चों के भविष्य का है। आंसुओं से डबडबाती आंखों को कोई विकल्प नहीं सूझा। तो संघर्ष का रास्ता ही बदल दिया। दूसरी शादी करने के बाद भी बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए मां द्वार- द्वार के दर्शन करने लगी।
दुखों के कांटों में लिपटी मजबूर करती यह कहानी ट्रांसयमुना निवासी हर्षिता (बदला नाम) की है। उस हर्षिता की, जिसने 25 वर्ष के सफर में हर्ष का एक पल भी महसूस नहीं किया। परिजनों ने आर्थिक तंगी का हवाला देकर सातवीं में पढने वाली हर्षिता की शादी उसकी बहन के साथ बाल अवस्था में ही कर दी। 13 वर्ष की उम्र में वह आगरा कैंट के पास सोहल्ला में ससुराल पहुंच गई। बचपन के सुख भूली हर्षिता को शादी के कुछ समय बाद ही बदकिस्मती ने दूसरी ठोकर दी। पति कल्लू (बदला नाम) उसे रोजाना पीटने लगा। हर्षिता ने किसी तरह चार वर्ष गुजारे तो पति ने जुल्म का दायरा और बढ़ा दिया। हर्षिता ने उसे तलाक देकर दूसरी शादी कर ली। दूसरे पति सतीश (बदला नाम) ने उसे नए सिरे से जिंदगी शुरू करने का हौसला दिया। उसके दामन से लिपटी मुसीबतों को धौने की बात कही। उसे भी लगा कि अब किस्मत करवट बदलेगी, लेकिन ये सब बाते भी उसकी कहानी का पत्र बनने तक ही सीमित थीं। सतीश ने भी जुल्म ढाने शुरू कर दिए। शादी के एक वर्ष बाद बेटी को जन्म दिया तो उम्मीद जागी कि शायद इस किलकारी के साथ खुशियां लौट आएं पर यह भी भ्रम निकला। हर्षिता ने बताया कि बेटी सालभर की नहीं हुई थी। सतीश के जुल्मों की रफ्तार बढ़ने लगी। उसने मुसीबतों के बीच एक बेटी व एक बेटा को और जन्म दिया। इसके बाद भी पति का आतंक बढ़ता गया तो हर्षिता ने बच्चे के सहारे अकेले रहने की ठान ली। उसने कोठियों में साफ- सफाई व बर्तन पौंछा करके और मां-बाप के साथ ट्रांसयमुना मायके में जाकर रहना शुरू कर दिया। सात सौ रुपये प्रति घर से मिलने वाली रकम से ही वह बच्चों को पालने लगी। यहां तक भी अच्छी-खासी गुजर बसर होने लगी, लेकिन आचनक से कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए हुआ लाकडाउन उनकी कमाई पर ग्रहण बन गया पर हर्षिता ने हिम्मत नहीं हारी और किराए पर ठेल लेकर गली-गली सब्जी बेचनी शुरू कर दी। वह रोजाना सुबह तीन बजे उठकर बसई सब्जी मंडी से सब्जी खरीदती हैं। फिर पूरे ट्रांसयमुना इलाके में उसे बेचती हैं। इसके बाद शाम को नुनिहाई सब्जी मंडी में ठेल लगाती हैं। इससे उनकी जिंदगी का पहिया सही घूमने लगा है। अब वह बच्चों को पढ़ाने की जुगत में लगीं हैं।