Ramadan in Lockdown: रमजान में वतन की खातिर 162 साल बाद वीरान मेरा आंगन
मुगलकालीन मस्जिद 1857 की क्रांति में हुई थी बंद। आगरा की सभी मस्जिदों में ग्यारह वर्ष तक नहीं हुई थी नमाज।
आगरा, सुबान खान। मैं शाही जामा मस्जिद, पाक परवरदिगार का रोशन मुकाम। सुल्तान-ए- हिंंद अकबर के शासन में शाहजहां की लख्ते जिगर जहांआरा ने 1648 में तामीर कराया। मेरे 372 वर्ष के दरमियां दूसरा अवसर है जब मेरे आंगन में सन्नाटा तारी है। करीब 162 वर्ष पहले गदर के दौरान भी ऐसा ही नजारा था। वह भी वतन का सबब था और यह भी वतन की खातिर।
162 वर्ष बाद एक मई, 2020 को रमजान का पहला ऐसा जुमा है, जब शाही जामा मस्जिद सहित शहर की तमाम मस्जिदें खाली रहेंगी। वर्ष 1857 में भारत से अंग्र्रेजों के राज को नेस्तनाबूद करने को क्रांति शुरू हुई थी। मेरठ से उठी चिंगारी 13 जुलाई को आगरा में पहुंची। उसके बाद लोगों ने घरों से निकलना बंद कर दिया। बाला दुबे की पुस्तक 'मुहल्ले आगरा के' पेज नंबर 53 पर दर्ज तथ्यों के हवाले से इतिहासविद राजकिशोर राजे बताते हैं कि तब वर्ष 1857 से वर्ष 16 मई 1864 तक मस्जिदें बंद रही थी। चार जून, 1864 को लॉर्ड जानलॉरेंस ने आदेश संख्या 1258 में मस्जिदों को खोलने का आदेश दिया गया था। तब जाकर 16 मई, 1864 को मेजर बरकट ने मौलाना मोहम्मद इस्लाम को कब्जा दिया था।
1763 में भी बंद कराई थी अजान इतिहासविद् राज किशोर राजे शहीद अहमद महारबी द्वारा लिखित पुस्तक 'मुरक्का-ए-अकबराबाद' के हवाले से बताते है कि वर्ष 1763 में महाराजा सूरजमल की मौत के बाद उनके पुत्र जवाहर सिंह गद्दी पर बैठे थे। जवाहर सिंह ने उस वक्त आगरा की सभी मस्जिदों में अजान पर पाबंदी लगा दी थी। यह 1768 तक रही।
शाही जामा मस्जिद में तीन बड़े गुंबद हैं। यह 130 फीट लंबी व सौ फीट चौड़ाई के क्षेत्रफल में बनी है। मस्जिद में एक साथ कई हजार लोग नमाज अदा कर सकते हैं। 20 वें रमजान को मस्जिद को तामील कराने वाली जहांआरा का उर्स होता है। इसके अलावा आगरा में लगभग 540 मस्जिदें हैं।
- हाजी असलम कुरैशी
अध्यक्ष, इस्लामिया लोकल एजेंसी