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20 साल बाद साबित हुई बेगुनाही, कैद में कट गई पूरी जवानी, पढ़ें इस बेगुनाह की दर्दभरी दास्‍तां

सेंट्रल जेल में दो दशक से निरुद्ध विष्णु खो चुका है अपने माता-पिता और दो भाइयों को। आर्थिक रूप से कमजोर विष्णु के पास अपनी पैरवी के लिए न रुपये थे और ना ही कोई वकील। ऐसे में जेल-प्रशासन ने मदद की।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Tue, 02 Mar 2021 09:39 AM (IST)Updated: Tue, 02 Mar 2021 09:39 AM (IST)
20 साल बाद साबित हुई बेगुनाही, कैद में कट गई पूरी जवानी, पढ़ें इस बेगुनाह की दर्दभरी दास्‍तां
बेगुनाह होने के बावजूद 20 साल सजा काटने के बाद सेंट्रल जेल से ललितपुर का विष्‍णु रिहा होने वाला है।

आगरा, अली अब्‍बास। जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम, वो फिर नहीं आते। फिल्म आपकी कसम का यह चर्चित गीत जेल में 20 साल से निरुद्ध विष्णु की जिंदगी पर सही साबित होता है। दुष्कर्म के मामले में निर्दोष करार देने के बाद वह जल्दी ही आजाद हो जाएगा। मगर, उसकी 20 साल की जवानी हमेशा के लिए कैद रहेगी। जेल में बिताए जवानी के 20 साल दोबारा लौटकर नहीं आएंगे। चहारदीवारी के बीच बीस साल के इस सफर में उसके माता-पिता और दो भाइयों का साथ हमेशा के लिए छूट चुका है। वह जिस भरे-पूरे घर काे छोड़कर गया था। वो अब उजड़ा चुका है।

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ललितपुर के थाना महरौली के गांव सिलावन का रहने वाले विष्णु (46 वर्ष) पुत्र रामेश्वर के खिलाफ वर्ष 2000 में दुष्कर्म एवं एससी/एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज हुआ था। वह तभी से जेल में है। अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाने के बाद अप्रैल 2003 में उसे केंद्रीय कारागार में स्थानांतरित कर दिया गया। यहां पर वह 17 साल से निरुद्ध है। जेल की मेस में लगातार काम करके निपुण रसाेइया बना चुका है।

वह जिस समय जेल में आया परिवार में उसके पिता रामेश्वर के अलावा मां सखी और चार भाई थे। विष्णु पांच भाइयों में चौथे नंबर पर है। उसका भरा-पूरा परिवार था। वर्ष 2013 में उसके पिता की मौत हो गई। इसके एक साल बाद ही वर्ष 2014 में उसकी मां भी चल बसीं। माता-पिता की मौत के बाद कुछ साल बाद ही उसके बड़े भाई राम किशोर और दिनेश का भी निधन हो गया। दोनों शादीशुदा थे। जेल की चहारदीवारी में रहने के दौरान परिवार के चार सदस्यों की मौत ने अंदर तक हिला दिया था। मुलाकात को आए छोटे भाई महादेव ने जब भी उसे अपनों की मौत की खबर दी। वह उस दिन खाना नहीं खाता था।

छोटा भाई है सबसे ज्यादा नजदीक

विष्णु पांच भाई थे। बड़े भाई रामकिशोर, उनसे छोटे दिनेश,सत्य नारायण, वह खुद और महादेव। पांचों भाइयों के कोई बहन नहीं है।

मगर, विष्णु के सबसे नजदीक महादेव है। दोनों बचपन में एक साथ खेले थे। विष्णु से मिलने भी वही आता है। परिवार और गांव के लोगों की कुशलता की जानकारी उसे दे जाता है। कोरोना काल के चलते एक साल से महादेव से उसकी मुलाकात नहीं हुई। वह जेल पर आता है, उसके लिए सामान देकर चला जाता है। पिछले दिनों जेल प्रशासन के माध्यम से विष्णु और स्वजन को उसकी जल्दी रिहाई होने का पता चला तो बेहद खुश हुए।

जेल की ओर से की गई थी अपील

आर्थिक रूप से कमजोर विष्णु के पास अपनी पैरवी के लिए न रुपये थे और ना ही कोई वकील। ऐसे में जेल-प्रशासन द्वारा उसकी ओर से अपील की व्यवस्था की गई। विधिक सेवा समिति की ओर से अधिवक्ता ने उसके मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की। इस पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने बंदी विष्णु की रिहाई के आदेश दिए। देखा जाए तो उसकी रिहाई में जेल-प्रशासन द्वारा की गई अपील की व्यवस्था ने उसकी रिहाई में अहम भूमिका निभाई।

जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम

जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम, जो जीवन से हार मानता उसकी हो गई छुट्टी। यह विष्णु का पसंदीदा गाना है। जिसे वह साथी बंदियों के बीच में अक्सर गुनगुनाता है। ये सिर्फ उसी का नहीं बल्कि आजीवन कारावास की सजा काटते अधिकांश बंदियों का पसंदीदा है। इस गाने में छिपा जीवन दर्शन उन्हें जिंदगी में आगे बढ़ने का हौसला देता है।

अपना ढाबा खोलने के लिए करना होगा काम

जेल में रहने के दाैरान निपुण रसोइया बन चुके विष्णु की योजना रिहाई के बाद अपना ढाबा खोलने की है। मगर, उसके पास जमा पूंजी नहीं है। इसलिए वह बाहर आने के बाद पहले ढाबे पर काम करेगा। पूंजी जमा करने के बाद अपना ढाबा खोलेगा।


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