Air Pollution Control के अध्यक्ष आगरा में बोले, 70 के दशक की अपेक्षा कम हो गई SO2 और NO2
डा. जेएस शर्मा बोले वर्तमान में एक्यूआइ में धूल के कणों की मात्रा ज्यादा। ग्राउंड लेवल ओजोन(ओथ्री)की मानिटरिंग को नियमित करने पर दिया जोर। डा. जेएस शर्मा ने ग्राउंड लेवल ओजोन(ओथ्री)की मानिटरिंग को नियमित करने पर जोर दिया।

आगरा, जागरण संवाददाता। 1970-80 के दशक में एयर क्वालिटी इंडेक्स( एक्यूआइ) में सल्फर डाइआक्साइड(एसओटू) और नाइट्रोजन डाइआक्साइड(एनओटू) की मात्रा वर्तमान समय के मुकाबले काफी ज्यादा थी। वर्तमान में एक्यूआइ में धूल के कणों की मात्रा ज्यादा है, जो चिंता का विषय है। इंडियन एसोसिएशन आफ एयर पोल्यूशन कंट्रोल के अध्यक्ष डा. जेएस शर्मा ने जागरण से खास बातचीत में 51 साल में आए बदलावों पर चर्चा की।
डा. शर्मा ने कहा कि पहले के ईंधन में सल्फर की मात्रा काफी ज्यादा थी। तकनीकी विकास हुआ, आगरा से भट्टियां हटा दी गईं। ईंधन भी परिष्कृत हुआ। बिजली की आपूर्ति में भी सुधार आया। ज्यादातर उद्योगों का संचालन गैस में परिवर्तित हो गया। कोयले का इस्तेमाल अब सीमित रह गया है। इन सब कारणों से 1970-80 के दशक में एसओटू और एनओटू काफी ज्यादा था। उन्होंने जानकारी दी कि 1970 से 80 के बीच में एसओटू की मात्रा 16-30 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी, जो 2002-15 में चार-नौ माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हुई और अब इसकी मात्रा 6.18-6.85 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। एनओटू 2002-2015 में 15-23 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी, जो अब 9.3-26.76 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है।
उन्होंने बताया कि हर क्षेत्र में हवा का दबाव अलग होता है। इसीलिए कई बार इंडस्ट्री आसपास न होने के बाद भी एक्यूआइ अधिक आता है। उन्होंने वृंदावन का उदाहरण दिया कि वहां कोई इंडस्ट्री नहीं है, न ही दिल्ली या आगरा का प्रदूषण वहां पहुंच सकता है। इसके बाद भी वहां का एक्यूआइ अधिक आया। इसके पीछे एक प्रमुख कारण मानिटरिंग सिस्टम का उस क्षेत्र में उस समय हवा का दबाव कम या अधिक होने से होने वाले अंतर को पकड़ना है। डा. शर्मा ने ग्राउंड लेवल ओजोन(ओथ्री)की मानिटरिंग को नियमित करने पर जोर दिया।
Edited By Tanu Gupta